Post Views 791
October 3, 2018
मधुकर कहिन
क्या अजमेर उत्तर में तीसरी बार सिंधी समाज का टिकट काटने का जोखिम उठा सकती है कांग्रेस ?
उत्तर में 2 बार मूंह की खा चुकी कांग्रेस क्या वाकई इस बार सिंधी दावेदारी को लेकर गंभीर है ?
नरेश राघानी
पिछले कुछ समय से जब से विधानसभा चुनाव के दावेदारों की आपसी खींचतान शुरू हुई है तब से अजमेर उत्तर की सीट पर दावेदारी की चर्चा बड़े जोरों पर हैं ।एक समाचार पत्र ने यह लिख दिया की अजमेर उत्तर से प्रदेश कांग्रेस सदस्य और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रबल दावेदार दीपक हासानी का नाम अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी ने अपने पैनल में जयपुर भेजा ही नहीं है। अपितु उस जगह कांग्रेस नेता गिरधर तेजवानी का नाम इस पैनल में डाला दिया गया है। आपको बता दें कि गिरधर तेजवानी कुछ समय पहले ही पत्रकारिता छोड़ कर कांग्रेस में राजनीतिक तौर पर सक्रिय हुए हैं । इससे पहले तेजवानी ने अपना पूरा जीवन पत्रकारिता को समर्पित किया है। 2013 से पहले वाले विधानसभा चुनाव के दौरान तेजवानी और भाजपा पृष्ठ भूमि के सिंधी नेता कंवल प्रकाश ही कांग्रेस प्रत्याक्षी डॉ गोपाल बाहेती की हार का प्रमुख कारण बनकर उभरे थे । तब तक तेजवानी की छवि मात्र पत्रकार और सिंधी समाज के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में ही थी। तेजवानी का सिंधी समाज में योगदान दीपक हासानी से कम नहीं रहा है । बस कोई कमी है तो वह यह है कि गिरधर तेजवानी आर्थिक रूप से चुनावी खर्च सहन करने में असमर्थ दिखाई देते हैं । वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से हैं। फिर खुद पत्रकार जगत से रहने की वजह से अजमेर के पत्रकारों में भी तेजवानी की अच्छी खासी पैठ है। इसी वजह से किसी अखबार का एक दम से यह लिख देना की गिरधर तेजवानी का नाम पूरे शहर भर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं और सिंधी समाज की आशाओं के बिल्कुल विपरीत कांग्रेस के पैनल में दीपक हासानी की जगह भेजा गया है !!!! कोई खास आश्चर्य की बात नहीं है ।
यह मात्र तेजवानी के पत्रकार मित्रों की मित्रता के कमाल के अलावा और कुछ नहीं है।
परंतु यदि इस खबर में 1% भी सच्चाई है तो यह सिंधी समाज के लिए घोर चिंता का विषय है। इसलिए नहीं इसमें तेजवानी का नाम है और हासानी का नाम नहीं है , आखिर हैं तो दोनों ही सिंधी समाज से । लेकिन इसलिए है क्योंकि वासुदेव देवनानी जैसे मजबूत भाजपा नेता के सामने आर्थिक रूप से कमज़ोर प्रत्याक्षी का नाम पैनल में शामिल करना एक बार फिर कांग्रेस की सिंधी समाज का भला करने की नीयत पर सवालिया निशान खड़ा करता है । यह तो बस खानापूर्ति करने के लिए नाम चला देने वाली बात हुई । मेरा भी यही मानना है की राजनीति पूरी तरह से छवि का खेल है परंतु फिर भी धनबल की शक्ति को सत्ता के खेल में कम आंकना भारी भूल साबित हो सकता है। जातीय सम्मीकरण और योग्यता के पैमाने पर निश्चित तौर से चाहे तेजवानी हो या हासानी अंततः दोनों ही सिंधी समुदाय से है । परंतु इस तरह का रवैया अपने आप में कांग्रेस पार्टी की नीयत को उजागर कर रहा है।
जहां एक तरफ वैश्य समुदाय मजबूती से एकजुट दिखाई दे रहा है , वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के इस तरह के रवैये से सिंधी दावेदारों के बीच खलबली मची हुई है।
चर्चा यह भी है कि कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में चल रही उठा पटक के तहत डॉ श्रीगोपाल बाहेती के विरोधियों ने बाहेती की जगह कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन को बतौर वैश्य नेता स्थापित करने की ठान रखी है । जिसके चलते यह भी संभावना है कि वैश्य वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में विजय जैन को अजमेर उत्तर से मौका मिल जाए
खैर !!! राजनीति है साहब इसका क्या कहें ? मुद्दे की बात यह है कि कांग्रेस को पिछले दो चुनावों में जो करारी मात अजमेर उत्तर से मिली है उस मात का प्रमुख कारण ही दोनों बार सिंधी समाज की उपेक्षा रहा है । फिर जब सन 1957 से लेकर 2013 तक लगातार जब एक क्षेत्र में सिंधी समाज का ही व्यक्ति विधायक चुनकर आता रहा है, तो आखिर क्यों कांग्रेस इस क्षेत्र से जबरदस्ती प्रयोगवाद के चलते बार-बार एक ही गलती दोहरा रही है ? वैसे भी कांग्रेस के पास कोई स्थाई नीति या रिती तो है नहीं जिसके तहत टिकट दिए और नहीं दिए जाते हो ।
उदाहरण के तौर पर जब जब कांग्रेस आलाकमान गला फाड़ फाड़ कर कह रहा होता है कि दो बार चुनाव हारे व्यक्ति को हम टिकट नहीं देंगे तो डॉ बाहेती का नाम एक नहीं दो दो विधानसभा क्षेत्रों से पैनल में शामिल मिलता है । या फिर जब कांग्रेस जब कहती है कि 20000 से ज्यादा वोटों से हार चुके व्यक्ति को टिकट नहीं देंगे तो दक्षिण से हेमंत भाटी का नाम पैनल में शामिल हो जाता है। इस से यह साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस में वाकई योग्य नेताओं का टोटा पड़ गया है।इसलिए बौखलाई हुई निरंकुश कांग्रेस बस कुछ भी मतलब कुछ भी की तर्ज पर काम कर रही है।
सामान्य वर्ग से देखा जाए तो अजमेर उत्तर से राजपूत समाज के प्रबल दावेदार महेंद्र सिंह रलावता भी बहुत योग्य और अनुभवी हैं। क्षेत्र में सभी लोग उनसे भली भांति परिचित हैं।लेकिन कांग्रेस आलाकमान को बस ... घूम फिर कर जाने क्यों बार बार सिर्फ वही डॉ बाहेती ही नज़र आते हैं ।
फिर भी इतिहास देखें तो सबसे मजबूत स्थिति देवनानी के सामने किसी सिंधी की ही बैठेगी। यदि कांग्रेस भी किसी सिंधी को मैदान में उतारेगी तो मुक़ाबला रोचक होगा अन्यथा इतना माहौल कांग्रेस के पक्ष में होते हुए भी देवनानी को आराम से जीत हासिल हो जाएगी ।
अब देखना यह है सिंधी समुदाय को ताक में रखने के चक्कर में दो दो बार मूंह की खाने के बावजूद भी कांग्रेस आलाकमान के चाणक्यों को कितनी राजनैतिक अक्ल आयी है ? या आयी भी है या नहीं।
जय श्री कृष्णा
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
www.horizonhind.com
9829070307
© Copyright Horizonhind 2025. All rights reserved