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#मधुकर कहिन:  आखिर मुख्यमंत्री क्यों नहीं बैठ कर बात करतीं राजस्थान रोडवेज़ कर्मचारियों से ?

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September 29, 2018

#मधुकर कहिन

 आखिर मुख्यमंत्री क्यों नहीं बैठ कर बात करतीं राजस्थान रोडवेज़ कर्मचारियों से ?

 राजस्थान रोडवेज़ को घाटे का उपक्रम मान कर्मचारियों के हितों में कटौती आखिर कितनी उचित ?


नरेश राघानी


 *राजस्थान रोडवेज की हड़ताल न हुई कमबख्त चमेली की शादी हो गई।* पिछले 15 दिनों से राजस्थान भर के रोडवेज कर्मी केंद्रीय बस स्टैंड पर अलग अलग तरह से प्रदर्शन कर रहे हैं । *कभी कोई मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की तस्वीर के आगे देसी दारू और अंग्रेजी दारू रख के नाच गाने करता है , कभी कोई सद्बुद्धि यज्ञ करता है* ,कभी कोई कुछ कहता है , कभी कोई कुछ। लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगती । *राजस्थान रोडवेज कर्मचारी वसुंधरा राजे को दिल से ऐसी ऐसी दुआएं दे रहे हैं कि मां कसम उसकी एक प्रतिशत दुआ भी यदि वसुंधरा राजे को लग गई तो इस बार उनका सरकार से बाहर होना तय है ।*  राजस्थान रोडवेज वैसे भी काफी समय से चर्चाओं में है । यह उपक्रम सरकार के लिए ऐसा खर्चीला बेरोजगार बेटा बन चुका है जिस पर सरकार को यह लगने लगा है कि चाहे कितना भी खर्च करो यह फायदे का सौदा साबित होने से इनकार कर रहा है। उस पर हजारों की तादाद में राजस्थान रोडवेज कर्मी बेचारे जो इतने वर्षों से राजस्थान सरकार की सेवा में जमे हुए हैं , जिनका कोई दोष भी नहीं दिखता है । फिर भी भुगतना पड़ रहा है।अब जिसने अपनी लगभग पूरी उम्र राजस्थान रोडवेज की सेवा में दे दी हो वह अगर सरकार से कोई उम्मीद रखता है तो इसमें वह कोई अतिशयोक्ति नहीं कर रहा है । अपितु अपना हक की मांग रहा है । अब यह बात अलग है कि सरकार को राजस्थान रोडवेज भले ही घाटे का उपक्रम दिखाई दे रही हो जिसके परिणाम स्वरूप लगभग रोडवेज का पूरा कार्य निजी हाथों में सौंपने को तैयार बैठी है।  इसमें उस बेचारे राज्य कर्मचारी की उम्र भर की निष्ठा को दरकिनार करना आखिर कहां तक वाजिब है ? सरकार को चाहिए कि भले ही पूरा काम निजी हाथों में सौंप दिया जाए और इस बेरोजगार बेटे को कमाऊ बेटा बनाने का अपना पूरा प्रयास करे । लेकिन उन बेचारे राज्य कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखना भी उतना ही आवश्यक है , जितना की राजस्थान रोडवेज को फायदे में लाना । अब ऐसे तो आप आंखें बंद कर लीजिए तो आपको कोई समस्या दिखाई नहीं देगी,  परंतु उससे समस्या दूर थोड़ी ना हो जाएगी । समस्या तो राज्य कर्मचारियों को साथ बैठकर उनकी व्यथा सुनकर हल निकालने से ही हल होगी। एक मुख्यमंत्री को इस तरह से अपने ही कर्मचारियों से आंखें चुराना बिल्कुल भी शोभा नहीं देता है । क्योंकि राज्य भर के लोगों ने जिनमें राज्य कर्मचारी भी शामिल है मुख्यमंत्री को अपना मत और समर्थन देकर ही मुख्यमंत्री बनाया है । तो उनका उम्मीद करना बिल्कुल वाजिब है। सरकार को तुरंत राजस्थान रोडवेज कर्मचारियों की मांगों पर शांति पूर्वक विचार करके समझौते की स्थिति पैदा करनी चाहिए। *अब सातवा वेतन आयोग लागू करना ,पुरानी खटारा बसों की जगह नई बसों  का क्रय करना  तथा गत 15 जुलाई से  सेवानिवृत्त रोडवेज कर्मियों को उनकी ग्रेच्युटी का भुगतान  शुरू करवाना यह कोई ऐसी बड़ी मांगे नहीं है  की जो सरकार बैठकर  बातों से रास्ता निकाल कर पूरी न कर सके। बस  इच्छा शक्ति होनी चाहिए।* क्योंकि इस रोज रोज के आंदोलन से तो सरकार की साख भी गिर रही है , जो कि आने वाले चुनाव में बहुत ही भयंकर प्रतिकूल परिणाम भी दे सकती है ।


जय श्री कृष्णा


नरेश राघानी

प्रधान संपादक 

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