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September 11, 2018
आज एक निजी पारिवारिक समारोह में गया । जहां पर हमारे घनिष्ठ मित्र के एनआरआई जवाई भी मौजूद थे । बातों में बात चली कि क्या कांग्रेस का पेट्रोल और डीजल के भाव को लेकर आगामी बंद शांतिपूर्वक सफल होगा ? या कुछ हिंसा होगी ? उसमे एक अन्य मित्र ने कहा कि नहीं साहब जनता बहुत परेशान है पेट्रोल पर भारी कर अदा कर रही कर रहे आम आदमी को इस चीज से बहुत तकलीफ पहुंच रही है इसलिए इसमें किसी हिंसा की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और स्वेच्छा से ही लोग इस बंद का समर्थन करेंगे जिसका श्रेय कांग्रेस ले जाएगी । बात में दम दिखाई भी दे रहा था लेकिन तभी हमारे मित्र के एनआरआई जवाई राजा बिल्कुल तलवार लेकर मैदान में आकर जैसे भिड़ गए और पेट्रोल के दाम वृद्धि के समर्थन में अपने अजीब-अजीब तर्क देने लगे । कहने लगे की सारे देश की समस्याओं का हल क्या सिर्फ 5 साल में हो जाएगा ? सरकार को और समय देना चाहिए हमें ताकि संपूर्ण समस्याओं का निपटारा किया जा सके। मैं चुपचाप बैठा यह सारा वार्तालाप सुन रहा था और सोच रहा था की इन महाशय के पास तो ईश्वर का दिया हुआ सब कुछ है। और इनको तो शायद भारत देश में आम आदमी द्वारा दिए जाने वाले भारी भरकम कर का भी बोझ नहीं उठाना पड़ता है , इसलिए इनको यह सब बहुत सरल लग रहा है । अभी मैं यह सोच रहा था उसके बीच जवाई जी ने बम दे मारा और बोलो कि आखिर हमें प्रति लीटर 10 प्रतिशत ही तो ज्यादा देना पड़ रहा है । विपक्ष जीएसटी के दायरे में लाकर केवल 10 प्रतिशत ही यो कीमत घटा पायेगा । जो की एक लीटर प्रतिदिन की खपत करने वाले आम नागरिक को केवल 8 रुपये प्रतिदिन यानी कि कुल 240 रुपये महीना ही तो ज्यादा देना पड़ रहा है । अब 240 रुपये के फर्क के लिए सरकार बदल दूं ? यह तो कोई समझदारी वाली बात नहीं हुई । फिर विपक्ष में भी प्रधानमंत्री के सामने ऐसा कौन सा योग्य चेहरा बैठा है जिसको देश की बागडोर आम आदमी मात्र 240 रुपये महीने के नुकसान को बचाने के लिए सौंप दें । मैं महोदय की एक बात से बिल्कुल इत्तेफाक रखता हूं कि हां वाकई नरेंद्र मोदी के सामने इस वक्त कांग्रेस कोई भी ऐसा बड़ा चेहरा नहीं दे पा रही है जिसको मोदी के समकक्ष योग्य मान लिया जाए। परंतु ₹240 वाली बात सुनकर मुझे उस एनआरआई की सोच और समझ पर तरस आ रहा है औरत तरस क्यों आ रहा है कि उस महान पुरुष को मात्र ₹240 दिखाई दे रहे हैं , यह नहीं दिखाई दे रहा है कि पेट्रोल और डीजल के दामों की वृद्धि केवल निजी गाड़ियों और एक 1 लीटर पेट्रोल रोज के खर्चे तक सीमित नहीं है । इसके पीछे माल भाड़ा और ट्रांसपोर्टेशन चार्जेस भी बढ़ते हैं जिसकी वजह से खाद्य सामग्री और जीवन यापन का सामान भी उसी अनुपात में महंगा हो चला है। जो कि चिंताजनक बात है। एक चिंता जनक बात यह भी है कि इन दिनों बड़े सुनियोजित ढंग से सोशल मीडिया पर बाकायदा अभियान चलाकर लोगों को जातिवादी चश्मे पहनाए जा रहे हैं , जिनकी वजह से लगभग हर जाति विशेष में कट्टरता में बढ़ोतरी हुई है । और इसी कट्टरता का अनुचित लाभ उठाकर सत्ता के कीड़े इस देश को खोखला करने में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। मेरा मानना है कि आम आदमी द्वारा इस बंद को केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से ना देखा जाए अपितु जेब पर पड़ रहे अनुचित भार और महंगाई की मार को भ8 ध्यान में रखा जाए। अहम बात यह है की देश निर्माण की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले राजनेताओं को इस बात का ख्याल नहीं रहा है कि आखिर किन हदों तक आम आदमी की कमर पेट्रोल डीजल की वजह से बढ़ी हुई महंगाई की मार झेल सकती है । कहने को तो इस देश का मिडिल क्लास बहुत सहनशील है परंतु अति हर बात की बुरी होती है। *यदि इसी तरह से महंगाई आम आदमी की कमर तोड़ती रही और नेता लोग देश निर्माण का हवाला दे कर जनता का शोषण करते रहे तो वह दिन दूर नहीं है कि संसद में बैठे इन गैरज़िम्मेदार नेताओं को आम लोगों की भीड़ संसद से उठा कर बाहर फेंक देगी।*
जय श्री कृष्णा
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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