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May 30, 2018
नरेश राघानी
जब से केंद्र सरकार ने लाल किले की कमान डालमिया ग्रुप के हाथ में रखी है । जिसके तहत लाल किले की देखरेख साफ-सफाई और मेंटेनेंस का पूरा काम 25 करोड़ में डालमिया ग्रुप देखेगा। तब से बिल्कुल उसी तर्ज पर अजमेर में भी काम शुरु हो गया है। जिस तरफ देखिए चौराहों और स्मारकों का यही हाल है। महापुरुषों की प्रतिमाएं मेंटेन करने के लिए प्रशासन के पास शायद पैसे नहीं बचे है। इसीलिए अजमेर में स्थित लगभग सभी स्मारक और चौराहों को किसी न किसी बहाने औद्योगपतियों को मेंटेनेंस हेतू दे दिया गया है ।
अजमेर के बड़े-बड़े दिग्गज नेता गाल बजाते नहीं थकते कि अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाया जा रहा है । लेकिन स्मार्ट सिटी के ओवर स्मार्ट अधिकारी लोगों को शायद दिवांगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा के पीछे प्रतिमा से 10 गुना बड़ा सद्गुरु लिखा हुआ दिखाई नहीं देता, उन्हें तो शायद बजरंगगढ़ स्थित शहीद स्मारक के पीछे समृद्धि बिल्डर्स का बोर्ड भी दिखाई नहीं देता होगा , ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार से गांधी भवन चौराहे पर महात्मा गांधी की प्रतिमा के नीचे घिसी बाई मित्तल मेमोरियल ट्रस्ट का बोर्ड कई वर्षों से उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है।
यहां आए दिन सरकार के मंत्री और सरकार के नुमाइंदे बातें करते हैं करोड़ों अरबों रुपए से अजमेर को स्मार्ट बनाने की, लेकिन अजमेर के ऐसे प्रमुख स्थलों का मेंटेनेंस करवाने के लिए चरणों में पड़ जाते हैं ऐसे औद्योगिक घरानों के जिनको यह स्मारक लगभग उपहार स्वरुप दे दिया जाता है। मानो खुले आम विज्ञापन हेतु चौक ले लो भाई !!! फिर जंचे जो करो। शुरू शुरू में तो यह चौराहे मेंटेन किए जाते हैं और कुछ समय बाद जब उन धन्ना सेठों का विज्ञापन से पेट भर जाता है तो वही महापुरुषों की मूर्तियां उपेक्षा का शिकार हो जाती हैं और हिन्द सेवा दल जैसे कर्मठ लोग उन्हें प्रतिमाओं को धोते हुए और मेंटेन करते नजर आते हैं।
अपनी तो यह समझ से बाहर है कि आखिर जरूरत क्या है ऐसे निजीकरण की सरकार की ? अगर वाकई स्मार्ट सिटी के नाम पर करोड़ों रुपये की घोषित रकम अजमेर के उद्धार हेतु दी गई है, तो फिर क्या जरूरत है ऐसे बेशर्म निजीकरण की जिसके चलते दिवांगत नेताओं की इज़्ज़त से खिलवाड़ हो रहा है। सबसे बड़े और ताजा उदाहरण के तौर पर जेएलएन अस्पताल वाले चौराहे को पहली नज़र देखने से ही ऐसा लग रहा है जैसे यह जगह सतगुरु नामक कंपनी मालिक को रजिस्ट्री कर के बेच दी गयी है !! ऐसा लगता है कि यह कोई स्मारक नहीं बल्कि निजी कंपनी का बड़ा सा विज्ञापन बोर्ड हो जिस के निकट स्व. प्रधानमंत्री की प्रतिमा जबरदस्ती आकर खड़ी हो गयी है। जहां *गरिमा को ताक पर रख कर स्व. प्रधानमन्त्री की प्रतिमा से भी बड़ा उस निजी संस्थान का विज्ञापन साफ़ देखा जा सकता है | जो की शर्मनाक है* |
*कहने का मतलब यह है कि आखिर क्या हम हमारे बच्चों को यह संदेश देना चाहते है ? कि बेटा कोई बात नहीं पैसे से कुछ भी खरीदा जा सकता है , फिर चाहे एक दिवांगत प्रधानमंत्री की इज़्ज़त ही क्यों न हो ...*
जय श्री कृष्णा
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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