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November 4, 2017
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश के 10 संसदीय सचिवों पर तलवार लटक गई है. सुप्रीम कोर्ट ने बिमोलांगशु रॉय VS स्टेट ऑफ आसाम एंड अदर्स के फैसले में साफ कर दिया है कि राज्य सरकारों को संसदीय सचिव की नियुक्ति की पावर ही नहीं है. जिसके बाद राजस्थान हाई कोर्ट में इस आदेश की पालना करवाने के लिए जनहित याचिका दायर हो गई है.
साल 2012 में प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी. जिसने अपने 13 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था. तब भाजपा की ओर से हाई कोर्ट में रिट लगाकर कहा गया था कि सरकार को संसदीय सचिव बनाने का अधिकार ही नहीं है. सरकार ने संविधान के उल्लंघन के साथ-साथ जनता के पैसे का भी दुरुपयोग किया है. लेकिन जैसे ही साल 2013 में भाजपा सत्ता पर काबिज हुई, उसने चुपचाप अपने आप को इस रिट से अलग कर लिया. क्योंकि अगर रिट वापस लेती तो सवाल उठते. रिट लगाने वाले कोर्ट में हाजिर ही नहीं हुए. जिससे रिट अपने आप ही खारिज हो गई. उसके बाद भाजपा ने भी अपने विधायकों को खुश करने के लिए 10 संसदीय सचिव बना डाले. लेकिन इस साल 26 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले में साफ कर दिया कि राज्य सरकारों को संसदीय सचिव नियुक्त करने का कोई अधिकार ही नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद अब इस मामले में राजस्थान हाई कोर्ट में भी जनहित याचिका दायर हो चुकी है. याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता दीपेश ओसवाल बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया है कि राज्य सरकारें संसदीय सचिवों की परिकल्पना ही नहीं कर सकती हैं. संसदीय सचिवों की नियुक्त करना तो दूर की बात है. ऐसे में हमनें हाई कोर्ट से अपील की है कि वह प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की पालना में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को तुरंत प्रभाव से रद्द करें.
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