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अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़: डोकलाम पर भारत से तनातनी के बीच अब नेपाल को अपने साथ लाने में जुटा चीन

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August 6, 2017

डोकलाम को लेकर भारत के साथ चल रही तनातनी के बीच चीन अब इस मसले पर नेपाल को अपने साथ लाने की कोशिश में जुट गए हैं. इसी के तहत चीनी राजनयिकों ने नेपाली अधिकारियों को इस मुद्दे पर अपना पक्ष बताया है.

अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया ने राजनयिक सूत्रों के हवाले से प्रकाशित रिपोर्ट में बताया कि डोकलाम मुद्दे पर चीन के मिशन उपप्रमुख ने अपने नवनिर्वाचित नेपाली समकक्ष के साथ शिष्टाचार भेंट में डोकलाम मुद्दे पर चर्चा की और इसे लेकर चीन के रुख से अवगत कराया.

बता दें कि भारत बातचीत के जरिये डोकलाम मसला हल पर जोर दे रहा है. वहीं चीन इस बात पर अड़ा है कि डोकलाम मुद्दे पर किसी भी तरह की अर्थपूर्ण वार्ता के लिए भारत को पहले वहां से अपने सैनिक हटाना होगा.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, चीन और नेपाल के अफसरों के बीच काठमांडू और बीजिंग में भी ऐसी ही बैठकें हुई हैं. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि भारत इस मसले को ट्रैक-2 डिप्लोमेसी के जरिये भी सुलझाने की कोशिश कर रहा है. सूत्रों के मुताबिक, भारत ने कुछ हफ्ते पहले अमेरिकी राजनयिकों से इस मुद्दे पर चर्चा की थी.

बता दें कि नेपाल के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करने का चीन का यह फैसला दो वजहों से अहम माना जा रहा है. पहला तो यह कि भारत इस विवादित क्षेत्र में चीन और नेपाल के साथ ट्राइजंक्शन शेयर करता है. वहीं दूसरी वजह यह है कि भारत बीते कुछ वक्त से पड़ोसी मुल्क नेपाल पर प्रभाव बनाए रखने को लेकर संघर्ष कर रहा है.

नेपाल दरअसल चीन और भारत के साथ दो ट्राइजंक्शन शेयर करता है. पहला पश्चिमी नेपाल के लिपुलेख में और दूसरा पूर्वी हिस्से स्थित जिनसंग चुली में स्थित है. विवादित कलापनी इलाके में पड़ने वाले लिपुलेख इलाके पर भारत और नेपाल दोनों ही दावा करते रहे हैं, जिसे लेकर नेपाल पहले से ही चिंतिंत रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में अपनी चीन यात्रा के दौरान लिपुलेख पास के जरिये चीन के साथ व्यापार बढ़ाने का फैसला लिया था. इस कदम को लेकर नेपाल में काफी नाराजगी देखने को मिली थी और वहां संसद में मांग उठी कि भारत-चीन संयुक्त बयान में लिपुलेख का जिक्र हटाया जाए, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय नियमों के खिलाफ है. नेपाली संसद ने यह भी जानना चाहा था कि क्या यह समझौते नेपाल की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को कमतर तो नहीं कर रहा.

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि भारत और चीन के बड़े नेता इस महीने नेपाल की यात्रा करने वाले हैं. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जहां BIMSTEC की बैठक के लिए अगले हफ्ते काठमांडू जाएंगी, वहीं, चीन के उप प्रधानमंत्री वांग यांग भी 14 अगस्त को शीर्ष नेताओं से मुलाकात करने नेपाल में होंगे. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि सुषमा और यांग, दोनों ही डोकलाम विवाद पर चर्चा करेंगे.

सुषमा स्वराज जहां नेपाली प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की अगले महीने होने वाली भारत यात्रा का खाका खींचेंगी. दरअसल नेपाल में एक बड़ा भारत विरोधी तबका मौजूद है और भारतीय अधिकारी जानते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के समर्थक डोकलाम मुद्दे पर भारत को घुसपैठिए की तरह पेश कर सकते हैं.

वहीं सुषमा के ठीक बाद होने वाली चीनी उप प्रधानमंत्री की यात्रा पर भी सबकी नजरें टिकी होंगी, क्योंकि इसमें चीन के वन वेल्ट वन रोड (OBOR) प्रॉजेक्ट में नेपाल के शामिल होने के फैसले के आगे का रास्ता तय हो सकता है. भारत की आपत्तियों के बावजूद नेपाल ने इस परियोजना में शामिल होने की रजामंदी दी थी.


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