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अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़: संस्कृत शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए जल्द ही 2400 पदों पर की जाएगी भर्ती  - संस्कृत शिक्षा मंत्री

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August 4, 2017

जयपुर। संस्कृत शिक्षा मंत्री किरण माहेश्वरी ने कहा कि संस्कृत शिक्षा में अध्यापकों की कमी को दूर करने और संस्कृत को और अधिक समृद्ध बनाने के लिए जल्द ही 2400 पदों पर शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार संस्कृत शिक्षा को रोजगारन्नोमुखी बनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। इसलिए विभाग प्राध्यापकों के 134 और वरिष्ठ-अध्यापकों के 690 पदों की भर्ती के लिए भी राजस्थान लोक सेवा आयोग को अर्थना भेज चुका है।

माहेश्वरी शुक्रवार को रवीन्द्र मंच पर आयोजित राज्यस्तरीय विद्वत्सम्मान-समारोह-2017 को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि संस्कृत भारत की एकता, अखंडता, संस्कार निर्माण, विश्व कल्याण और मानवमात्र के योग क्षेम को धारण करने वाली है। उन्होंने कहा कि अन्य भाषाएं व्यक्ति का केवल बाह्य स्वरूप प्रदर्शित करती है लेकिन संस्कृत साहित्य की आध्यात्मिक चेतना व्यक्ति के अन्तःकरण को परिष्कृत व सुसंस्कारित करती है।

शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी ने संस्कृत को देववाणी और विज्ञानवाणी बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यदि हम वास्तव में संस्कृत शिक्षा का भला करना चाहते हैं तो इसे जनमानस की भाषा बनाना होगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी तो है ही विश्व की सभी भाषाआें का मूल भी है। उन्होंने कहा कि संस्कृत के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नासा के वैज्ञानिकों को भी 15 दिन संस्कृत का अध्ययन करने को कहा गया है। 

इस अवसर पर अतिरिक्त मुख्य सचिव राजहंस उपाध्याय ने कहा कि संस्कृत को आमजन की भाषा बनाने के लिए इसका सरलीकरण बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि विद्वतजन जितना इसको सरल बनाएंगे लोगों में इसका आकर्षण खुद ब खुद बढ़ने लगेगा। राजस्थान संस्कृत अकादमी की अध्यक्षा डॉ. जया दवे ने कहा कि संस्कृत भाषा अमर है और रहेगी। इसका संरक्षण और विस्तार करके ही हम अपना दायित्व निभा सकते हैं। राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति  विनोद शर्मा ने कहा कि संस्कृत देववाणी और अमृतभाषा है। लोगों में संस्कृत के प्रति जागरुकता बढ़ रही है। आने वाले वर्षों में संस्कृत का विस्तार होना तय है। संस्कृत शिक्षा के निदेशक  विमल कुमार जैन ने सभी विद्वत्जनों का आभार जताया।

इस अवसर पर अतिथियों ने राज्यस्तरीय विद्वत्सम्मान से भी विद्वानों को नवाजा। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष यह पुरस्कार चार श्रेणियों मंे दिया गया है। प्रथम श्रेणी में संस्कृत-साधना-शिखर-सम्मान स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज (प्रतिनिधि) पुष्कर, अजमेर को दिया गया। इसमें 1 लाख रुपए का पुरस्कार, श्रीफल और शॉल भेंट किया गया। संस्कृत-साधना-सम्मान के लिए अजमेर के पं. सत्यनारायण शास्त्री और चित्तौड़गढ़ के  कैलाश चन्द्र मूंदडा का चयन किया गया। इस पुरस्कार के तहत उन्हें 51 हजार रुपए का चैक और श्रीफल और शॉल भेंट किया गया। 

संस्कृत-विद्वत्सम्मान तीसरा पुरस्कार है, जिसके तहत बीकानेर के डॉ. विक्रमजीत, जोधपुर के डॉ. सत्यप्रकाश दुबे, टोंक की डॉ. अनीता जैन, जयपुर के डॉ. शम्भूनाथ झा, डॉ. सन्दीप जोशी और झुंझुनू के डॉ. हेमन्त कृष्ण मिश्र को 31 हजार रुपए का चैक दिया गया। चौथा पुरस्कार संस्कृत-युवप्रतिभा पुरस्कार के तहत राजसमन्द के  उमेश द्विवेदी, जयपुर के डॉ. देवेन्द्र चतुर्वेदी,  दुर्गा प्रसाद शर्मा,  सुमित शर्मा और अलवर के  लोकेश कुमार शर्मा को पुरस्कृत किया गया, जिसके तहत विद्वानों को 21 हजार रुपए का चैक और चैक और श्रीफल और शॉल भेंट किया गया। 

उल्लेखनीय है कि संस्कृत-साधना-शिखर-सम्मान की एक लाख रुपए की राशि  गोविन्द देव गिरि जी महाराज के परिजनों ने पथमेड़ा स्थित गौशाला को दान देने की घोषणा की। इसी तरह चित्तौडगढ़ के  कैलाश चन्द्र मूंदडा ने भी अपनी पुरस्कार की 51 हजार रुपए की राशि को निम्बाहेड़ा के कल्ला वैदिक विश्वविद्यालय के गं्रथालय को देने की घोषणा की।  

इस समारोह विभिन्न विश्वविद्यालयों में संस्कृत विषय में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों व माध्यमिक-शिक्षा-बोर्ड के प्रवेशिका तथा वरिष्ठ-उपाध्याय परीक्षाओं में प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले कुल 17 विद्यार्थियों को भी पुरस्कृत किया गए। इसके अलावा  पहली बार बार संस्कृत-शिक्षा-विभागीय विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में भौतिक एवं शैक्षिक दृष्टि से सहयोग करने वाले राजस्थान के दो भामाशाहों  बजरंग लाल तापड़िया, सुप्रीम फाउंडेशन ट्रस्ट, जसवन्तगढ़, नागौर और  नेमीचन्द तोषनीवाल,  सीतादेवी चैरिटेबल ट्रस्ट, कोलकाता को विशेष सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समाजसेवी अमित गोयल और संस्कृत शिक्षा से जुड़े अधिकारीगण उपस्थित रहे।

समारोह में सभी वक्ताओं ने अपना उद्बोधन मंगलाचरण सेे शुरू किया और पूरा भाषण संस्कृत भाषा में ही दिया। समारोह में वार्षिक पत्रिका ‘श्रावणी‘ का लोकार्पण भी किया गया। पूरा पांडाल विद्वानों और गुणीजनों से भरा था। 

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