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June 13, 2017
रिपोर्ट- दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि राष्टीय राजधानी में जलाशयों पर अतिक्रमण नहीं किया जा सकता और इनका संरक्षण किया जाना है। दक्षिण दिल्ली के बदरपुर इलाके में एक जलाशय के संरक्षण से जुड़ी जनिहत याचिका पर सुनवाई के दौरान कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने यह टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि जलाशय का संरक्षण करना, रखरखाव करना और प्रयोग किया जाना है। इसने कहा कि याचिका के साथ लगाई गई तस्वीरों से पता चलता है कि बड़े जलाशय के ईर्द—गिर्द बस्तियां हैं। इसके अलावा यह दयनीय अवस्था में है। पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार और दिल्ली विकास प्राधिकरण ने उक्त भूमि और जलाशय के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह से पल्ला झाड़ लिया है। अदालत ने अपने हाल के आदेश में कहा कि राष्टीय राजधानी दिल्ली की सरकार ने यह कहकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है कि जमीन डीडीए को हस्तांतरित कर दी गई है। डीडीए का कहना है कि यह जमीन कोई जलाशय नहीं है बल्कि जे जे क्लस्टर है। यह हलफनामा तब दिया गया है जब राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में स्पष्ट है कि यह जमीन जौहड़ है। पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि जलाशय का संरक्षण, रख-रखाव किया जाना हैऔर इसका इस्तेमाल जलाशय की ही तरह करना है। वहां अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जा सकती। पीठ ने डीडीए को निर्देश दिया कि हलफनामा दायर कर जलाशय का दायरा, इसकी क्षमता और इसे बहाल करने में अधिकारियों के प्रयास के बारे में जानकारी दी जाए। अदालत ने कहा कि अगर इलाके से बस्तियों को हटाना है तो दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड से विचार-विमर्श के बाद ही किया जाना चाहिए।
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