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December 20, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में बीडीएस (BDS) प्रवेश घोटाले पर कड़ा रुख अपनाते हुए 11 निजी डेंटल कॉलेजों पर कुल 110 करोड़ रुपये का भारी जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन कॉलेजों ने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए अयोग्य अभ्यर्थियों को प्रवेश दिया। हालांकि, मानवीय आधार पर कोर्ट ने उन छात्रों की डिग्रियां रद्द होने से बचा ली हैं, जिन्होंने अपना कोर्स पूरा कर लिया है।यह फैसला जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई की पीठ ने 18 दिसंबर को शैक्षणिक सत्र 2016-17 में हुए बीडीएस एडमिशन फर्जीवाड़े पर सुनाया। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए छात्रों के करियर को राहत दी, लेकिन दोषी संस्थानों और राज्य सरकार पर सख्त टिप्पणी की।
2 साल की नि:शुल्क सेवा अनिवार्य
कोर्ट ने डिग्री को नियमित तो किया, लेकिन इसके साथ एक बड़ी शर्त भी रखी। डिग्री प्राप्त कर चुके छात्रों को राजस्थान राज्य में दो साल तक नि:शुल्क (Pro-bono) सेवा देनी होगी। इसके लिए उन्हें आठ सप्ताह के भीतर शपथ पत्र दाखिल करना होगा, जिसमें वे प्राकृतिक आपदाओं, स्वास्थ्य आपात स्थितियों या महामारी के समय राज्य को बिना किसी पारिश्रमिक के सेवाएं देने का वचन देंगे। यह राहत केवल कोर्स पूरा कर चुके छात्रों के लिए होगी, अधूरे कोर्स वालों को कोई राहत नहीं दी गई है।
कॉलेजों की लालच भरी मनमानी पर कोर्ट सख्त
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि नीट (NEET) के न्यूनतम पर्सेंटाइल को कम करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है, जो डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (DCI) की सलाह से ही ऐसा कर सकती है। लेकिन राजस्थान सरकार ने अपने स्तर पर पहले 10 पर्सेंटाइल और फिर 5 पर्सेंटाइल की छूट दे दी। कोर्ट ने इसे अवैध करार दिया।
कोर्ट ने यह भी पाया कि निजी कॉलेजों ने इस छूट से भी आगे बढ़कर शून्य या नेगेटिव अंक वाले छात्रों को प्रवेश दे दिया, जो नियमों का खुला उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि यह सब हर सीट भरने के लालच में किया गया, जो दंत चिकित्सा शिक्षा के मानकों का मजाक उड़ाने जैसा है।
जुर्माने की राशि सामाजिक कल्याण में होगी उपयोग
कोर्ट ने प्रत्येक अपीलकर्ता डेंटल कॉलेज पर 10-10 करोड़ रुपये और राजस्थान राज्य पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। यह राशि राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा होगी। इससे प्राप्त ब्याज का उपयोग वृद्धाश्रमों, नारी निकेतन, वन स्टॉप सेंटर और बाल देखभाल संस्थानों के रखरखाव व उन्नयन में किया जाएगा, जिसकी निगरानी राजस्थान हाईकोर्ट के पांच न्यायाधीशों की समिति करेगी।
कोर्ट की स्पष्ट चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि यह राहत भविष्य के लिए नजीर नहीं बनेगी। गलती कॉलेजों और राज्य सरकार की थी, जिसका खामियाजा छात्रों को नहीं भुगतना चाहिए, लेकिन नियमों की अनदेखी किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।
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