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February 3, 2021
किशनगढ़ और अजमेर में विधायक बने विधाता
सुरेश टाक अपने जानी दुश्मन प्रदीप अग्रवाल की बने जान, उनको सभापति बनाने के लिए कर रहे हैं खींचतान
बहन अनीता भदेल और भाई भाऊबली देवनानी की पसंद टकराई तो भाभी ब्रजलता की क़िस्मत में कुर्सी आई
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
किशनगढ़ में सभापति और उपसभापति को लेकर तथा अजमेर में मेयर व उप मेयर को लेकर दोनों ही पार्टियों में तहलका मचा हुआ है। अजमेर में भाजपा की ओर से बृज लता भाभी जी की का मेयर बनना तय है , फिर भी कांग्रेस की बासी कढ़ी में उबाल का ग्राफ ऊंचा है ।आनासागर की बारहदरी पर बने ख़ामाख़्वाह के दरवाज़ों की तरह कांग्रेसी पार्षद उछल उछल के जिस्म से बाहर निकल रहे हैं ।उनकी संख्या बल हारी हुई फ़ौज़ में शामिल है फिर भी भाटी जी की तरफ़ से न जाने क्या सोच कर द्रोपदी जी को चुंनव मैदान में उतार दिया गया है।कांग्रेस के जयपुरिया नेता भी हारी हुई बाज़ी को जीत में बदलने का नाटक कर रहे हैं।
इधर किशनगढ़ में विधायक सुरेश टाक किशनगढ़ विकास मंच में अपनी क़रारी शिकस्त के बाद भी ठंडे नहीं पड़े हैं ।कांग्रेसी पार्षद प्रदीप अग्रवाल की अप्रत्याशित जीत के बाद उनके राजनीतिक तेवर बदले हुए हैं। उन्होंने प्रदीप अग्रवाल से सभापति का फार्म भरवा दिया है ।उन्हें यक़ीन है कि भाजपा के छह नाराज़ और गुस्साए पार्षद पार्टी से बग़ावत कर उनके साथ हो जाएंगे।
सुरेश टाक विधायक से विधाता बनने को तैयार बैठे हैं। जिस प्रदीप अग्रवाल को हराने के लिए वे मुंह धो कर बैठे हुए थे ,जिन्हें प्रेस कॉन्फ्रेंस में वे पानी पी पीकर कोस रहे थे, अब उनके साथ खड़े हैं ।राजनीति और प्यार में दोस्त दुश्मन, नैतिकता सिद्धांत सब धरे रह जाते हैं
किशनगढ़ में भाजपा का बोर्ड बनना तय था, तय है मगर भाजपा में सशक्त नेता सुरेश दरड़ा को सभापति का उम्मीदवार नहीं बनाए जाने पर वे विद्रोही हो गए ।इसी विद्रोह को लेकर सुरेश टाक भाजपा पार्षदों की क्रॉस वोटिंग के जरिए अतिरिक्त उत्साह में हैं। उन्हें यक़ीन है कि कांग्रेस के 17, विकास मंच के 6,एक निर्दलीय और आरएलपी के एक पार्षद को मिलाकर वे आंकड़ा 26 तक ले जाएंगे । क्रॉस वोटिंग से उन्हें भाजपा के 6 पार्षद मिलने की उम्मीद है ,इस तरह इस काल्पनिक गणित से वे प्रदीप अग्रवाल को सभा पति बनाने में सफल हो जाएंगे । ऐसा होना यद्यपि नामुमकिन है मगर जब सुरेश टाक और प्रदीप अग्रवाल जो कल तक जानी दुश्मन थे आज जानी दोस्त हो सकते हैं तो राजनीति में कुछ भी हो सकता है ।फिलहाल यह निश्चित है कि भाजपा के दिनेश राठौर सभापति बने या प्रदीप अग्रवाल दोनों ही स्थिति में विधायक सुरेश टाक की छवि पर तो बट्टा लग ही चुका है।
इधर अजमेर में मेयर और उपमेयर को लेकर बहन अनीता भदेल और भाई बाहुबली के चक्कर में भाभी ब्रजलता की लॉटरी खुल रही है।
मेयर तो जैसा मैंने अपने ब्लॉग में एक महीने पहले ही लिख दिया था कि भाभी ब्रजलता हाड़ा ही महापौर बनेगी और उनको मैंने अग्रिम बधाई भी दे दी थी।अब उनका मेयर बनना तय हो चुका है।
भाऊ पूरे चुनावी काल में तो बिल्कुल शांत रहे औऱ अंत में अपनी राजनीतिक कुशलता से भोली बहन अनिता को दिन में तारे दिखा गए।
यदि बहन अनिता खुलकर डॉ प्रियशील हाड़ा का साथ देतीं तो इस बार भाऊ को पटखनी दे सकती थीं। और शुरुआत भी हुई तो ऐसे ही थी। अनिता ने डॉ हाड़ा को आश्वस्त किया था कि यदि उनके सलाह से टिकट वितरण किया जाएगा तो भाभी ब्रजलता हाड़ा को महापौर बनने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
टिकट वितरण में डॉ हाड़ा ने अधिकतर टिकट अनिता के कहे अनुसार ही फाइनल करे । उनका ऐसा मानना था कि वास्तव में अनिता को ज्यादा पता है कि कौन प्रत्याशी जीतने की स्थिति में रहेगा।
परंतु फिर ना जाने ऐसा क्या हुआ जो बहन अनिता महापौर के लिए भाभी ब्रजलता हाड़ा के खिलाफ खुलकर सामने आ गईं।उन्होंने हाईकमान को यहां तक कह दिया कि ब्रजलता हाड़ा के अलावा किसी को भी मेयर बना दिया जाए उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। मेरी सलाह है कि डॉ हाड़ा को गहराई में जाकर बहन अनिता की इस दूरी का कारण तो जरूर जानना चाहिए। नही तो मैं तो जानकर बताऊंगा ही...!!
यदि अनिता ब्रजलता का खुलकर समर्थन करतीं तो निश्चित रूप से भाऊ के लिए टेंशन पैदा कर सकती थीं। हाड़ा को मेयर बनाकर उनके ही समर्थन से वे अपने किसी चहेते को शहर अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठा सकती थीं। ऐसा करने से मेयर और शहर अध्यक्ष दोनो ही अनिता के खाते के कहलाते।
अब उपमहापौर पद पर भी अनिता का पटखनी खाना तय ही है। अब उपमहापौर बनाने में भाऊ अकेले नहीं होंगे। उनके साथ शहर अध्यक्ष हाड़ा भी हैं।।अब तो भाऊ जिसे चाहेंगे वो ही उपमहापौर बनना तय है।
अनिता के खाते से उपमहापौर के दावेदार देवेंद्र सिंह शेखावत और एक अप्रत्याशित नाम नीरज जैन का भी लिया जा रहा है। नीरज जैन के लिए जिला प्रशासन से जिस प्रकार अनिता भदेल ने लड़ाई लड़कर नीरज को विजयी घोषित करवाया वो भी बहुत चर्चा में था। अभी भी गणेश चौहान का एक वोट से हारना जाँच के घेरे में आ सकता है।वे पूरी जान लगा रहे हैं
दूसरी तरफ भाऊ के खाते में रमेश सोनी, ज्ञान सारस्वत ही मुख्य रूप से उपमहापौर के प्रत्याशी हैं।चुनाव संयोजक व पूर्व महापौर धर्मेंद्र गहलोत भी इस बार सक्रिय नज़र आ रहे हैं ।उन्होंने महापौर प्रत्याशी में भी हाड़ा का नाम आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाई और अब उपमहापौर के लिए भी वे अजय वर्मा, वीरेन्द्र वालिया के लिए अड़ सकते हैं।
ऐसा लग रहा है कि उपमहापौर के लिए ज्यादा कशमकश होगी। अब हाईकमान और संघ क्या करता है या किसकी राय को महत्वपूर्ण मानता है ये अभी दो चार दिन में ही कहा जा सकता है ।
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