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January 12, 2021
व्हाट्सएप की निजता ने जहां नई बहस को जन्म दिया है, वहीं तकनीकी कंपनियों की हरकत से उनकी मंशा का अंदाजा लगाया जा सकता है। फेसबुक और ट्विटर ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अकाउंट बंद कर दिया।
चुनाव हारने के बाद ट्रंप के रवैये पर आपत्ति हो सकती है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या एक निजी कंपनी का मालिक इस कदर ताकतवर हो सकता है कि वह अमेरिका जैसे देश के राष्ट्रपति को प्रतिबंधित करने की हिमाकत कर सके।
दिलचस्प है कि ये वही कंपनियां हैं जिन्हें ट्रंप के चार साल तक इन प्लेटफॉर्मों के प्रयोग करने पर कोई आपत्ति नहीं थी। निजी कंपनियों की यह करतूत आने वाले दिनों में उनके तानाशाही भरे बर्ताव की ओर इशारा करती है।
खुद को मिनी डेमोक्रेसी कहने वाली कंपनियों के अरबपति मालिकों ने ट्रंप का अकाउंट बंद करके ताकत दिखाने के साथ ही अपनी निरंकुशता भी उजाकर कर दी है। ट्विटर के संस्थापक जैक डॉर्सी और फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग द्वारा ट्रंप के खिलाफ उठाए कदम के पीछे कोई बड़ा रहस्य नहीं है। सब जानते हैं कि उन पर ट्रंप को जवाबदेह का दबाव वर्षों से था जो पिछले हफ्ते कैपिटल हिल में हिंसा के बाद ज्यादा बढ़ गया।
इस दौरान पूर्व डेमोक्रेट राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा से लेकर खुद कंपनियों के कर्मचारियों ने ट्रंप के अकाउंट हमेशा के लिए बंद करने की पैरवी की थी। कहने को तो ये कंपनियों लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत फैसले लेती हैं,
लेकिन उनके इस कदम में खतरे निहित हैं। जानकारों का कहना है कि ट्विटर-फेसबुक ने ट्रंप को निजी तौर पर बेदखल करके वही दिखाया है जो राजनेता, अभियोजक और कई बिचौलिये वर्षों से करना चाह रहे थे। यही वजह है कि एक बड़ा धड़ा और ट्रंप समर्थक दोनों कंपनियों के इस कदम को मनमाना नियंत्रण करार दे रहे हैं तो उदारवादी लोग प्रतिबंध को जायज ठहरा रहे हैं।
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