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August 16, 2019
*यू लव अजमेर बट अजमेर हेट्स यू*
*हाँ अजमेर तुमसे नफ़रत करता है*
*(पूरा पढ़ें और सोचें)*
*सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
"आई लव अजमेर" का नारा लगाने वाले इस शहर को..... कौन कितना प्यार करता है.... इस विषय पर मैं आज का ब्लॉग लिखने जा रहा हूँ।मेरे हिसाब से अजमेर ख़ुद भी अपने आप से प्यार नहीं करता और तो उसे क्या करेंगे❓ बेसहारा! लाचार !किस्मत का मारा !अजमेर ख़ुद अपने आप से शर्मिंदा है। क्या राजनेता ,क्या सरकार, क्या अधिकारी, क्या समाज सेवी संस्थाएं ,सभी ने अजमेर के साथ जो सलूक किया उसे भुलाया नहीं जा सकता ।अजमेर के ज़ख़्मों को नमक छिड़कने के बाद अब" आई लव अजमेर "...का नारा उछाला जा रहा है। हरामी लोगों का जमावड़ा अजमेर के ज़ख़्मों को नाखून से खुरच रहा है।
रोज शहर के चौराहों पर महापुरुष खड़े किए जा रहे हैं ।अजमेर यू.आई.टी .के पूर्व चेयरमैन ओंकार सिंह लखावत ने अपने कार्यकाल में अपने योग्य चारण होने का परिचय देते हुए तारागढ़ की पहाड़ी पर सम्राट पृथ्वीराज की प्रतिमा स्थापित करवाई थी।आठ फ़ीट क़द के पृथ्वी राज को उन्हीने मात्र चार फीट के टट्टू नुमा घोड़े पर बैठा दिया। इतने बड़े शूरवीर का अपमान देख कर अजमेर रोयेगा नहीं तो क्या करेगा❓
एक समय था जब नगर परिषद ने महाराणा प्रताप का स्मारक बनाने की योजना बनाई थी ।उस समय ज़िला कलेक्टर टी.आर.वर्मा हुआ करते थे। नगर परिषद के आयुक्त लंफट ,बदमाश और भृष्ट आयुक्त विष्णु दत्त व्यास हुआ करते थे। नर हरि शर्मा प्रशासक थे।इन सब ने मिल कर महाराणा प्रताप का स्मारक जयपुर रोड की पहाड़ी पर बनाने का फैसला किया। सभी लोग अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर मुम्बई ऐश करने गए और एक मूर्ति बनाने वाली फर्म को लाखों रुपए का एडवांस भुगतान कर आए।मेरे पास इसके सबूत हैं।बाद में राणा प्रताप की मूर्ति और स्मारक कागजों की कब्र में दफन होकर रह गया। मूर्ति बनाने वाली कंपनी लगभग 4 लाख रुपये हजम कर गई ।ये रहा "आइ लव अजमेर"का एक किस्सा।
लोग हर काल मे अजमेर को प्यार करने का ढोंग करते हुए उसके जख्मों पर तेजाब छिडके जा रहे हैं। यही वजह है कि अजमेर उनसे नफ़रत करता है ।नफरत करता है उन लोगों से जो पृथ्वी राज को टट्टू पर बैठा देते हैं ।नफरत करता है उन सरकारों से जो आती हैं अजमेर को जीम कर चली जाती हैं । कोई सरकार अजमेर को बसाने वाले राजा के बारे में सवाल नहीं पूछती....कोई बात नहीं सोचती... पृथ्वीराज अजमेर के आखिरी शासक थे। मैं उनको नमन करता हूँ।उनके स्मारक बनाए जाने पर भी ख़ुश हूँ मगर क्या अजमेर को प्यार करने का ढोंग करने वाले उन कमीनों से ....अजमेर यह बात पूछ सकता है कि उसे बसाया किसने था❓किसने जन्म दिया था अजमेर को❓
बहुत कम लोग होंगे जिनको यह पता होगा कि अजमेर को बसाने वाले राजा पृथ्वी राज नहीं थे।वो *अर्णोराज* थे। वो *अर्णोराज* ही थे जिन्होंने आनासागर बनवाया था।
आज कौन सा राजनेता है ,जो उनकी जयंती मनाता है। उनके स्मारक बनता है ।नगर निगम शहर में जगह-जगह चौराहों पर महापुरुषों की मूर्तियां लगवा रही है मगर किसने आज तक अजमेर को बसाने वाले *अर्णोराज* की मूर्ति बनवाई ❓ ये सवाल मैं नहीं पूछ रहा है।अजमेर पूछ रहा है। साढ़े चार लगाकर आनासागर या पुष्कर घाटी पर सेल्फी पॉइंट बनाने वाले चालक और धूर्त लोग ...अफ़सर ...क्या ये सोचते हैं कि उनसे अजमेर प्यार करने लगेगा।
आज किसी स्कूल का नाम, किसी अस्पताल का नाम,किसी चौराहे के नाम,किसी इमारत का नाम *अर्णोराज* के नाम से नहीं जुड़ा।क्या अजमेर ऐसे अहसान फरामोशों की निकम्मी फ़ौजों से प्यार करेगा❓
अपने पिता के साथ इस निकम्मी पीढ़ी के एक नेता ओंकार सिंह लखावत ने और भी शर्मनाक बात की। ओंकार सिंह लखावत ने अपनी जिंदगी का सबसे शर्मनाक काम ये किया कि अजमेर के पिता की डेढ़ फीट की मूर्ति आनासागर चौपाटी पर बना दी।
इतना घटिया काम अजमेर को प्यार करने के नाम पर किया गया। हाँ में सर्छ कह रहा हूँ।आप चाहें तो चौपाटी पर जाकर देख सकते है।वहां मीरा बाई और *अर्णोराज* की डेढ़ डेढ़ फीट की मूर्तियां "आई लव अजमेर "....कहने वालों को रोने के लिए बुला रही हैं। जसके लिए पदम श्री डॉ सी.पी देवल अक्सर कहते सुनाई पड़ते हैं....
*देख्यो रे देख्यो ,अजमेरा थारो राज,
पौन बिलात की मीरा बाई,डेढ़ बिलात को अर्णोराज*
लखावत ने आनासागर की चौपाटी पर मीरा जी और अर्णोराज को मात्र डेढ़ फुट की मूर्ति बनवाकर ही कर्तव्य पूरे कर लिए। जिसने अजमेर को जन्म दिया क्या ये उस महान राजा का अपमान नहीं था❓ वो चाहते तो सम्राट पृथ्वीराज के साथ अर्णोराज की भव्य मूर्ति भी बनवा सकते थे। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया ।उन्होंने क्या उनसे पहले या बाद में आज तक भी किसी ने नहीं किया। कितने ही सांसद आए गए,कितने ही
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