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December 3, 2020
भारत ने कहा है कि आतंकवाद समकालीन दुनिया में युद्ध छेड़ने के साधनों में से एक के रूप में उभरा है और यह दो विश्वयुद्धों के दौरान धरती पर संहार का खतरा पैदा कर रहा है। दूसरे विश्वयुद्ध के अंत की 75वीं बरसी पर संयुक्त राष्ट्र में भारत ने कहा कि इस तबाही को रोकने के लिए वैश्विक कार्रवाई जरूरी है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन के पहले सचिव आशीष शर्मा ने कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के 75 वर्ष पूरे होना, हमें संयुक्त राष्ट्र के मकसद और इसके आधारभूत सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को पुन: पुष्ट करने का मौका देता है। संयुक्त राष्ट्र का मकसद युद्ध के अभिशाप से आने वाली पीढ़ियों को बचाना है। उन्होंने जोर दिया कि आतंकवाद समकालीन विश्व में युद्ध छेड़ने के तरीके के रूप में सामने आया है इससे दुनिया में ठीक उसी तरह के नरसंहार का खतरा है, जो हमने दोनों विश्व युद्धों के दौरान देखे थे। आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है और विश्व स्तर पर की जा रही कोशिशों के जरिये ही इससे निपटा जा सकता है। उन्होंने देशों से अपील की कि वे युद्ध छेड़ने के समकालीन प्रारूपों से लड़ने और अधिक शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित दुनिया सुनिश्चित करने के लिए खुद को समर्पित करें।
भारत उपमहाद्वीप के 25 लाख जवान लड़े
आशीष शर्मा ने कहा, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के सैन्यकर्मियों ने सबसे अधिक संख्या में भाग लिया। औपनिवेशिक शासन के अधीन होने पर भी भारत के 25 लाख जवान द्वितीय विश्वयुद्ध में उत्तरी अफ्रीका से यूरोप तक लड़े। उन्होंने कहा, भारतीय सेना इतिहास का सबसे बड़ा स्वयंसेवी बल है, जिसके 87,000 जवानों की जान गई या वे लापता हो गए और लाखों गंभीर रूप से घायल हुए।
साथियों का बलिदान भुला नहीं सकते
भारत ने कहा, हम एशियाई, अफ्रीकी और अरब भाइयों के बलिदानों को भी नहीं भुला सकते, जो मित्र ताकतों की आजादी के लिए लड़े और मारे गए। शर्मा ने दुनिया को बचाने के लिए लड़ने वाले सभी देशों के बहादुर लोगों को सलाम करते हुए कहा कि औपनिवेशिक जगत के हजारों स्वयंसेवकों के युद्ध में योगदान के बावजूद उन्हें उचित सम्मान एवं मान्यता नहीं दी गई, यह निराशाजनक है
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