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May 19, 2018
दूसरा सबसे बड़ा दल होने के बावजूद कांग्रेस बजाय समर्थन लेकर सरकार बनाने के, समर्थन देकर सबसे छोटे दल के नेता को मुख्यमंत्री बना रही है। इसका क्या अर्थ हुआ ? ज़रा सोचें इसे । इसका यही अर्थ हुआ कि *राहुल गांधी तो फेल हो गए स्पष्ठ बहुमत लाने में , लेकिन कांग्रेस की जोड़ तोड़ करने वाली अनुभवी टीम फिर पास होती नजर आ रही है। अशोक गहलोत ,गुलामनबी आज़ाद और मलिकार्जुन खड़गे ने राहुल का ढोला हुआ रायता समेटने में लगभग सफलता हासिल कर ली है और यह साबित कर रही है कि सिर्फ युवा जोश से नहीं अनुभवी होश से भी काम लिया जाता है।*
सरकार तो बन ही जाएगी अब किसी की भी बनें। आखिर इसी लिए तो देश में चुनाव होते है।
इस बार अपुन की सोच का एंगल ज़रा अलग है ...बताऊं क्या ? यह कि -कोई यह तो बताए भाई की यह किस तरह का लोकतंत्र है ? क्या यह मतदाता के साथ धोखा नहीं है ? क्योंकि मतदाता ने जिस दल को सबसे कम वोट दिए उसी दल का मुख्यमंत्री बन रहा है। *सत्ता ऐसे हाथों में सौंपी जा रही हैं जो कि वोटर की पसंद के पायदान पर सबसे कम अंक प्राप्त करने वाली पार्टी है* । दूसरे शब्दों में यदि यह कहें कि सबसे कम लोकप्रिय पार्टी या व्यक्ति जनता पर शासन करने हेतु बतौर मुख्यमंत्री थोपा जा रहा है। *यह जनमत का मखौल नहीं तो और क्या है ?* लोकतंत्र के लिए यह जोड़ तोड़ की राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही , परंतु इस जोड़-तोड़ से आने वाले कुछ दिनों में जब तक कोई सरकार नहीं बन जाती तब तक कर्नाटक में लोकतंत्र की हत्या के ऐसे ऐसे फार्मूले इजाद किये जायेंगे जो कि बेचारे आम वोटर की सोच समझ से बहुत परे की बात है । *कांग्रेस की राजनैतिक जीत होने के बावजूद भी जो गत हुई है उस पर मनन करने की ज़रूरत है। यह जीत इज्जत कमा कर नहीं इज्जत गवा कर हासिल होने वाली जीत है। जिसमें कांग्रेस बिना जनादेश की परवाह किये ब्लैक मेल का शिकार होकर खुद का नहीं अपितु एक कमज़ोर दल का मुख्यमंत्री जनता के माथे पर थोप रही है* ।
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