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May 8, 2018
वैसे तो इस देश में पैसा कमाना ही बड़ा मुश्किल हो चुका है। फिर भी कोई जुगाड़ तुगाड़ कर के अगर कोई पैसे कमा भी ले तो उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं रही है कि जो मुद्रा वह घर में कमा कर लाया है वह बाजार में चल जाएगी।
कभी कोई नोट बंद तो कभी कोई नोट चालू *10 के सिक्कों का हाल देख कर तो ऐसा लगता है जैसे 10 का सिक्का मार्केट में से कमाकर नहीं मोहन जो दड़ो की खुदाई में निकले किसी घड़े में से निकाल कर लाया हो आम आदमी* । कल शाम एक पान की दुकान पर गया जहां मैंने गुटखा खरीदने के लिए जेब में हाथ डाला मैंने पाया कि या तो 2000 का नोट था यहां 10 के सिक्के । पान वाले की तरफ बढ़िया अनुकंपा भरी निगाह से देखते हुए मैंने 10 के सिक्के उसके हाथ में दे दिए जिस पर उसने कहा - साहब यह 10 के सिक्के नहीं चल रहे हैं क्यूँ मुझ गरीब की लुटिया डुबोने पर तुले हो ? मैंने कहा- *क्यों भाई यह भी भारत की ही मुद्रा है, मैं कोई इसको इरान से कमाकर तो लाया नहीं हूं !!!* जो आप इसको लेने से इनकार कर रहे हैं । तो वह दुकामदार फूट-फूट कर अपनी गाथा ऐसे सुनाने लगा जैसे की मैंने उसके किसी पुराने ज़ख्म को कुरेद दिया हो । वह भरे गले से कहने लगा भाई साहब हम छोटे दुकानदारों और सब्जी वालों के लिए 10 का सिक्का जी का जंजाल बन कर रह गया है। बैंक वाले तक इसको लेने से इनकार करते हैं और मार्केट में अगर हम आप जैसे किसी व्यक्ति से ले भी ले तो क्या मजाल कि हमारे से कोई और ले ले। मतलब हद होती है किसी बात की । इस लेन देन के बीच देश की मुद्रा का जो आए दिन अपमान हो रहा है वह आज तक आजादी के बाद कभी भी नहीं देखा गया। समझ नहीं आता *आखिर यह देश जा किस तरफ रहा है ? कमाना मुश्किल , टैक्स भरना है मुश्किल, फिर जैसे तैसे टैक्स भर भी दो तो आयकर अधिकारी नोटिस नोटिस खेलने लगते हैं। इन सब बाधाओं को पार करके थोड़ा बहुत धन बचा कर अगर घर ले भी आओ तो खर्च करना भी मुश्किल* । अब बाजार में इस तरह यदि मुद्रा ही चलने से इनकार कर देगी तो फिर आदमी बताइए आखिर इतनी तकलीफ और परेशानी है किस बात के लिए उठाए ? *इस से तो बेहतर शायद वही दिन थे जब पौराणिक काल में रोटी के बदले कपड़ा, कपड़े के बदले मकान ,मकान के बदले दुकान लोग ले लिया करते थे* । सफलता और विकास की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली सरकार खुद पर तो छोड़िए देश की मुद्रा पर भी अगर जनता का विश्वास कायम न रख सकी है, तो फिर ऐसी लंगड़ी सरकार का क्या फायदा ?
मजे की बात तो यह है कि अजमेर के कलेक्टर गौरव गोयल बड़ा खम ठोक कर मीडिया के सामने कहते हैं कि जो भी 10 के सिक्के लेने से इंकार करेगा उस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वहीं उनकी नाक के नीचे बिल्कुल सामने SBI बैंक में बैंक कर्मचारी खुलेआम कहते हैं की सिक्के गिनना हमारा काम नहीं है । कलेक्टर क्यों नहीं सीधा सिक्का कलेक्शन केंद्र खोल देते कलेक्ट्रेट में ? ताकि जनता अपने सिक्के वहां जमा करवाये और सरकारी अधिकारी जाकर बैंक में सिक्के जमा कराएं और आम लोगों की कम से कम इस परेशानी से निजाद हो । कुछ भी कह लो कलेक्टर जैसी ताकत और कुर्सी का ही बस 10 के सिक्के पर नहीं चल रहा है तो आपकी और हमारी तो औकात ही क्या है ?
यदि किसी का बस नहीं चल रहा तो *सरकार क्यों नहीं आदेश दे देती कि जिसके पास 10 के सिक्के हो वह सीधा-सीधा अपने घर से थैली भरकर निकले और आकर सहर्ष श्रमदान की भावना से आना सागर में डाल दें। ताकि आना सागर का स्तर थोड़ा और ऊपर आ जाए। आखिर सरकार का इतना सारा पैसा लगाकर बनाए गए सिक्के किसी तो काम आने चाहिए ना भाई* ?
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