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May 8, 2018
मुझे याद है बचपन में मेरे पिताजी मुझे स्टेशन रोड पर अपने एक मित्र की पान की दुकान पर ले जाया करते थे । जहां पर संत आसाराम बापू की एक बहुत बड़ी तस्वीर लगी हुई थी। जिसके नीचे उनका यही उपदेश लिखा हुआ था। सचमुच बड़ा अद्भुत था वह ज़माना जब आसाराम बापू के हजारों लोग अनुयाई हुआ करते थे। *अजमेर से आसाराम बापू का बड़ा गहरा रिश्ता रहा है ।दिल्ली गेट के तांगा स्टैंड पर तांगा चला कर अपने जीवन की शुरुआत करने वाले आसाराम बापू ने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन भाग्य आसाराम को पूरे देश भर के धार्मिक जन सैलाब के साथ जोड़ कर रख देगा , और एक दिन वही भाग्य ऐसी जबरदस्त पटकनी देगा की मरने तक जेल में सड़ना पड़ेगा* । आसाराम बापू का प्रकरण धर्म की आड़ में गलत व्यवहार करने वाले संतों के लिए तो सबक है ही परंतु उससे बड़ा सबक उस आम जनमानस के लिए भी है जो इन बाबाओं और संतों को अपना भगवान मानकर आंखें मूंदकर बस उनके पीछे चलने लगता है । आज भी देश भर में ऐसे संतों की भरमार है । जिन के कच्चे चिट्ठे अगर खुल के सामने आ जाएं तो उनका भी शायद बुरा हाल होगा । यह संत महात्मा और बाबा धर्म के व्यवसाय को ऐसी हद तक ले जाते हैं की वह खुद कब इस धन के नशे में मदांध होकर कब अधर्म की राह पकड़ लेते हैं शायद उन्हें खुद भी पता नहीं चलता। जहां पर उनसे सरकारें तक प्रभावित होने लगती है। *आम आदमी यह समझने को बिल्कुल भी तैयार नहीं है कि ऐसे लोगों का मंतव्य केवल अपने स्वार्थ सिद्धि होता है और धर्म प्रचार नहीं* । यह सब दरअसल इसलिए शुरू होता है जब राजनेता हज़ारों अनुयायियों के वोटों के लालच में धर्मगुरुओं के चरण छूने लगते है। जिससे इन संतों के मन में भी दुनयावी सत्ता का लोभ पनपने लगता है । और यह चमक दमक का लोभ उन्हें भी गंदी राजनीति के दलदल में इस कदर खींच कर ले जाता है जहां भ्रष्ट आचरण की आज कोई भी हद नहीं रह गयी है। *आज कल आये दिन अखबार नेताओं द्वारा बलात्कार और दुष्कर्म की खबरों से सने रहते हैं। इसी चरित्रिक दोष का संक्रमण इस कलयुग में अब संतों में भी दिखने लगा है* ।
एक चीज और बताना चाहूंगा अजमेर के निवासियों को विशेष तौर पर की *अजमेर में भी कई ऐसे धर्म गुरु और संत घूम रहे हैं जिनका स्वरूप तो साधु जैसा है परंतु जीवन दिनचर्या और क्रियाकलाप स्वादु जैसी है। किसी को सत्ता का स्वाद लग चुका है ,तो किसी को प्रसिद्धि का। आमतौर पर राजनीतिक मंच पर आराम से आप ऐसे स्वादु स्वभाव के संतों को इन दिनों अजमेर में देख सकते हैं* । मंच चाहे भाजपा का हो या कांग्रेस का या किसी भी राजनीतिक दल का अजमेर भर में कई संत अपना अपना मठ छोड़ कर सत्ता सुख के लालच में ऐसे राजनीतिक मंचों पर अक्सर दिखाई देते हैं। *ऐसे संतो को यह समझना होगा कि साधु का काम दुनिया से दूर रहकर दुनिया पर नजर रखना है , और वक्त पड़ने पर पथ भ्रष्ट लोगों को अपने उपदेशों से सही दिशा में ले कर आना है । राजनीति और सत्ता का लोभ साधुओं को शोभा नहीं देता* । साथ ही आम आदमी को भी यह समझना होगा कि धर्म की *किताबें रट कर कथावाचन करने वाला हर व्यक्ति साधु नहीं है । साधु को भगवान हज़ारों लोगों की श्रद्धा ही बनाती है। सच मानिए की इतने सारे लोगों के विश्वास का बोझ उठाना सिर्फ भगवान के ही बस का है , किसी भी इंसान के बस का नहीं* । साधु अपने आप में एक स्वभाव है ।एक प्रवृत्ति है केवल बाहरी आवरण भर नहीं है। हजारों लोगों की श्रद्धा के घोड़े पर बैठकर अपने हित साधन में लगे साधुओं को पहचान कर चिन्हित करना इस युग में बहुत जरूरी दिखाई दे रहा है। *आसाराम बापू को केवल दुष्कर्म का पाप नहीं लगा है अपितु उनके हज़ारो लाखों अनुयायियों के विश्वास तोड़ने और उन्हें लज्जित महसूस करवाने का भी पाप लगा है* । अब तो यही कहना पड़ेगा कि अपने स्वर्णकाल में जब बापू सदैव प्रसन्न रहे और ईश्वर की सर्वोपरि भक्ति का परिचय देते रहे तो आज ईश्वर के इस फैसले को स्वीकार कर के इस हाल में भी प्रसन्न रहने का प्रयत्न करें तभी सिद्ध होगा कि वह ईश्वर की सर्वोपरि भक्ति कर रहें हैं।
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