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March 22, 2018
आखिर क्यों असफल साबित हो रहा राहुल गांधी का शक्ति अभियान
नरेश राघानी
बीते दिनों अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक क्रांतिकारी संगठनात्मक कार्यक्रम शुरू किया। जिसे शक्ति अभियान के नाम से संबोधित किया जा रहा है। जिसके तहत कांग्रेस संगठन के भीतर आम मतदाता और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के बीच खड़ी नेताओं की दीवार गिराकर सीधा कांग्रेस मानसिकता से जुड़ने हेतु आम मतदाताओं से संपर्क साधने की कोशिश की गई । इसके लिए WhatsApp के माध्यम से लोगों के वोटर ID कार्ड मंगवाकर पंजीकरण किया गया ताकि वाकई ज़मीनी जुड़ाव पैदा किया जा सके।
निसंदेह यह बहुत ही अच्छा प्रयास था परंतु यह प्रयास केवल संगठन के अंदर जुड़े पदाधिकारियों के पंजीकरण तक ही सीमित रह गया । जिला कांग्रेस कमेटियों ने अपने अपने स्तर पर इस कार्यक्रम से लोगों को जोड़ने हेतु बैठकों का आयोजन तो किया परंतु उन बैठकों में केवल कांग्रेस संगठन में पहले से ही जुड़े पदाधिकारियों के अलावा कोई भी नहीं पहुंच पाया ।और कई जगह तो कांग्रेस संगठन के पूरे पदाधिकारी भी इस मुहिम से नहीं जुड़ पाए हैं तो आम लोगों और कांग्रेस मानसिकता के अन्य लोगों के जुड़ाव की तो बात ही क्या करें।फिर देहात में बैठे किसान मतदाता को तो अपना अस्तित्व ही खतरे में दिखाई दे रहा है तो वह बेचारा वाट्स पर राहुल गांधी से बात करे या पहले अपने बच्चों की रोटी का इंतजाम कर।।
दूसरा पहले से ही गुटों में बटी कांग्रेस के नेताओं ने शक्ति अभियान को भी गुटबाजी का शिकार होने दिया इसी वजह से यह अभियान केवल हर जगह केवल जिला अध्यक्षों द्वारा खानापूर्ति कर देने तक ही रह गया है।
सूत्रों के अनुसार अजमेर शहर में इस अभियान से केवल 3 से 4 हज़ार लोग ही जुड़ पाए हैं। जिसमें अधिकांश लगभग लोग तो कांग्रेस संगठन के पदाधिकारी ही है। जो कहीं न कहीं छोटे बड़े पदों पर या किसी भी तरह से कांग्रेस के प्राथमिक सदस्य रहते हुए कांग्रेस पार्टी में काम करते रहे हैं।
हालांकि शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन, दीपक हासानी और कुछ निष्ठावान कांग्रेस पदाधिकारी जैसे विपिन बेसिल, अंकुर त्यागी, श्याम प्रजापति , शिव बंसल , विजय नागौरा, आरिफ हुसैन ,अशोक बिंदल, प्रताप यादव,मयंक टंडन,सोनल मौर्य, शैलेन्द्र अग्रवाल,सबा खान, अनुपम शर्मा , यासिर चिश्ती , एस एम अकबर, शैलेश गुप्ता, शैलेश गर्ग,सुरेश गुर्जर, रमेश सैनानी, कुलदीप कपूर, सभी ने जी जान से प्रयास किया है, लेकिन फिर भी शक्ति कार्यक्रम आम लोगों का कार्यक्रम नहीं बन पाया उसकी वजह शायद उन्ही बड़े नेताओं की इस कार्यक्रम के प्रति उदासीनता है ।जिनको राहुल गांधी बीच में से हटाकर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से सीधा संवाद करना चाहते हैं। आम लोगों में इस कार्यक्रम के प्रचार प्रसार की कमी भी शायद इसी वजह से ही नज़र आती है।
यह हाल केवल अजमेर का नहीं है अपितु देश में लगभग हर जगह का है । क्योंकि संगठन किसी भी जिले में हो उसमें काम करने वाले चेहरे और पूरी तरह से जी जान झोंकने वाले लोग उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। बाकी तो कांग्रेस संगठन की एक पुरानी कहावत ही यहां पर चरितार्थ होती नजर आ रही है, कि कांग्रेस में कार्यकर्ता कम और नेता ज्यादा है । तो एक आम कार्यकर्ता की हैसियत से सीधा राहुल गांधी के WhatsApp नंबर पर जुड़ने की तकलीफ आखिर इन तथाकथित नेताओं से भरे संगठन में कोई क्यूँ उठाता भाई ? क्योंकि सभी तो यहां तो सारे ही कैप्टेन हैं सिपाही तो है ही नही। इस तरह से वोटर आई डी लेकर जुड़ने से तथाकथित नेताओं की इज़्ज़त जो खराब हो जाती ।
खैर 4 प्रदेशों में सिमट चुकी कांग्रेस के नेताओं को अब यह बात अच्छी तरह समझनी होगी कि कि संगठन में पद प्राप्त करना सिर्फ गाड़ी पर प्लेट लगाने तक का विषय नहीं है। अपितु किसी कार्य विशेष के संपादन की जिम्मेदारी उठाना भी है। जिसमें कुछ लोगों को छोड़कर कांग्रेस संगठन का एक बड़ा हिस्सा मापदंडों पर खरा नहीं उतर पाया है और बस खानापूर्ति कर के शीर्ष नेतृत्व के प्रयासों की धज्जीयाँ उड़ा रहा है ।
जय श्री कृष्णा
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