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October 24, 2017
भ्रष्ट अफसर एवं नेताओं को बचाने के लिए प्रदेश में लागू नए कानून में मीडिया कवरेज पर भी एक तरह से पाबंदी लगा दी गई। अदालत में दायर इस्तगासे पर सरकार की मंजूरी मिले बिना संबंधित अफसर या नेता की पहचान उजागर करने पर कानून में दो साल की सजा का प्रावधान किया गया है। जबकि, महाराष्ट्र सरकार के बिल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है। दूसरा, महाराष्ट्र सरकार ने अभियोजन स्वीकृति के लिए 90 दिन की मियाद तय की है, लेकिन राज्य सरकार की ओर जारी अध्यादेश में मियाद 180 रखी गई है।
- उधर, गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि कानून तोड़ने वालों को जेल जाना पड़ेगा। सरकार की मंशा है कि किसी ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की प्रतिष्ठा का बचाना मात्र है।
- न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या किसी लोक सेवक के खिलाफ इस कानून के तहत जब तक केस चलाने की मंजूरी नहीं मिल जाती तब तक संबंधित व्यक्ति का नाम, पता, फोटो, परिवार का ब्यौरा उजागर नहीं किया जा सकेगा। यानी सोश्यल मीडिया, समाचार पत्र या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में खबर प्रकाशित या प्रसारित नहीं की जा सकेगी। कानून का उल्लंघन करने पर दो साल की सजा का प्रावधान किया गया है। लेकिन, महाराष्ट्र सरकार ने ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
यह दो बड़े अंतर महाराष्ट्र व राजस्थान के कानून में
राजस्थान में : कानून में किसी भी लोकसेवक के खिलाफ कोर्ट के माध्यम से पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज होगा ही नहीं। इसके लिए 180 दिन के अंदर सरकार या तो अभियोजन स्वीकृति देगी या यह बताएगी कि मामला दर्ज होने योग्य है या नहीं।
महाराष्ट्र में : यहां संबंधित सक्षम अधिकारी की अनुमति के लिए सिर्फ 90 दिन का समय दिया गया है। सक्षम अधिकारी को इस अवधि में कारण सहित मंजूरी या नामंजूरी देनी होगी। इसके बाद ही प्रकरण जांच के लिए भेजा जा सकेगा।
फिर भी सरकार का दावा : महाराष्ट्र की तर्ज पर बिल
भास्कर : महाराष्ट्र के बिल में मीडिया पर पाबंदी एवं दो साल की सजा का प्रावधान नहीं है?
कटारिया : महाराष्ट्र की तर्ज पर ही बिल लाया गया है। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की गई थी, लेकिन आज तक उस मामले में कोर्ट ने निर्णय नहीं दिया है। सजा उन्हीं लोगों को मिलेगी, जो कानून तोड़ेगा। कानून मत तोडि़ए, सजा भी नहीं मिलेगी।
भास्कर : अभियोजन स्वीकृति के लिए 180 दिन का समय क्यों, महाराष्ट्र में 90 दिन है?
कटारिया : सरकार में भ्रष्टाचार से जुड़े कई ऐसे मामले हैं जिनमें दो ढाई साल से अभियोजन स्वीकृति नहीं मिल रही है। हमने कम से कम 180 दिन की समय सीमा तो तय कर दी है।
भास्कर : विपक्ष का आरोप है कि यह काला कानून है? अघोषित आपातकाल लागू कर दिया ?
कटारिया : कोई आपातकाल नहीं है। यह सिर्फ ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ अफसरों की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए उठाया गया कदम है। सदन में रखा ही इसलिए गया है कि इस पर खुलकर चर्चा हो सके। विधायकों के सुझावों का ध्यान रखा जाएगा।
भास्कर : सरकार ने राष्ट्रपति की मंजूरी क्यों नहीं ली?
कटारिया : यह सवाल उठाना ही गलत है। अध्यादेश राष्ट्रपति की मंजूरी से लागू किया गया है। बिल पारित होगा तो फिर मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाएगा।
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