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क़लमकार: मेरे दर्द ,मेरी मजबूरियों को समझें मैं कोई शक्ति पुंज नहीं जो चमत्कार वाली चुटकी बांट सकूं_

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April 27, 2021

मैं भी आम आदमी की तरह कोरोना का शिकार हो सकता हूँ,बिना बेड, बिना आक्सीजन के मर सकता हूँ


आज के मेरे ब्लॉग को पूरा पढ़ें


मेरे दर्द ,मेरी मजबूरियों को समझें

मैं कोई शक्ति पुंज नहीं जो चमत्कार वाली चुटकी बांट सकूं_

मैं भी आम आदमी की तरह कोरोना का शिकार हो सकता हूँ,बिना बेड, बिना आक्सीजन के मर सकता हूँ_

मुझे माफ़ कर देना मदन, मैं तुम्हारी भाई को नहीं बचा पाया_

सुरेन्द्र चतुर्वेदी

मुझे अपने अजमेर जिले से बेहद प्यार है ।एक जिम्मेदार शायर लेखक और पत्रकार होने के दायित्व को मैं बेहद सही तरह से, ज़िम्मेदार होते हुए निभा रहा हूँ।

पिछले डेढ़ साल से कोरोना से लोहा लेने के लिए मेरी लंबी लड़ाई चल रही है। मेरे ब्लॉग्स ढाई लाख से ज्यादा लोग हर रोज़ पढ़ रहे हैं ।यह सारी बातें मैं वाहवाही लूटने के लिए नहीं बल्कि यह बताने के लिए कर रहा हूँ कि आजकल लोग मुझे कोरोना का मसीहा समझकर दिन में चैन नहीं लेने दे रहे और रात की नींद उड़ा रहे हैं।

आई रात अस्पतालों के कोविड वार्ड से दो दो , तीन तीन बजे फोन आ रहे हैं। वार्ड में गैर ज़िम्मेदार स्टाफ सोता रहता है ।मरीज रोते रहते हैं।घरवाले चीख़ते रहते हैं। ऑक्सीजन के लिए घरवाले पसीना बहा देते हैं। उनकी कोई नहीं सुनता। मरीज़ की तड़प तड़प कर मौत हो जाती है। पूरे मामलों का वीडियो बना कर मेरे पास भेज दिया जाता है।

मुझे नींद से उठाकर अस्पताल बुलाया जाता है। माज़रा देखने के लिए ।ज़िला प्रशासन तक उनकी शिक़ायत पहुंचाने के लिए ।मुझसे जो कुछ बन पड़ता है, मैं करता भी हूँ मगर अधिकतर मामलों में मेरा कुछ भी करना नाकाफ़ी ही सिद्ध होता है। मैं कुछ नहीं कर पाता और मरीज़ मर जाता है।उसके ही साथ मेरे अंदर का पत्रकार भी।

लोग यह कहते सुनाई देते हैं कि डॉक्टरों की नालायकी,स्टाफ़ की बेरहमी से उनका मरीज़ मर गया। कुछ मुझे भी लपेट लेते हैं। यह कहकर कि मेरी पत्रकारिता का उन्हें रत्ती भर भी सहयोग नहीं मिला।

मित्रों !!!! पत्रकार कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं होता!!! पत्रकार के पास मंत्रियों जैसे अपरिमित अधिकार भी नहीं होते!!! वे भी उतने ही कमज़ोर , निहत्थे और शक्तिहीन होते हैं जितने आप सब!!

पत्रकारों के माता -पिता, बहन- भाई, पत्नी -बच्चे ,कोरोना वार्ड में ही तड़प तड़प कर दम तोड़ देते हैं। पत्रकार निरीह और नपुंसक मुद्रा में उन्हें मरने से रोक नहीं पाता।

पत्रकारों को देव तुल्य बाहुबली या शक्तिपुंज मानने वाले मेरे दोस्तों!! आपकी कोई ग़लती नहीं ।हम ही अपने आपको समाज से अलग सिद्ध करने में लग जाते हैं। प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहकर समाज हमारी छवि शक्तिशाली लोगों जैसी बना देता है ।जो समाज में आमूलचूल परिवर्तन कर सकने की ताकत रखते हैं।

हो सकता है कुछ पत्रकारों को अपने बारे में यह मुग़ालता भी हो मगर मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं संसार का सबसे निम्न श्रेणी का पत्रकार हूँ।खोखले शब्दों को हथियार बनाकर हर आदमी की लड़ाई लड़ता ज़रूर हूँ मगर शब्दों से किसी को रोटी नहीं दे पाता। दवा नहीं दे पाता।ना ही दे पाता हूँ जिंदगी।

कल रात 3 बजे बिहारीगंज के एक परिचित मित्र का फोन आया। उसके छोटे भाई की तबीयत बिगड़ती रही ।स्टाफ जगाने पर भी नहीं जागा। किसी ने उनकी एक नहीं सुनी। डॉक्टरों को बुलाए जाना ,वह भी देर रात में तभी संभव होता है जब मरीज़ मालदार हो या किसी बड़े अधिकारी का रिश्तेदार या किसी राजनेता का विश्वासपात्र !

मित्र हाथ पैर मारता रहा।सोते हुए बदतमीज़ स्टाफ के वीडियो बनाता रहा। भाई ने अंत में दम तोड़ दिया ।जब तक उसकी सांसे चल रहीं थी मित्र ,मुझसे बार-बार अपने भाई की जिंदगी के लिए भीख मांग रहा था। मुझसे कह रहा था कि मैं कुछ करूं ।अस्पताल आकर सोते हुए स्टाफ को जगाऊँ। अधिकारियों से तत्काल हस्तक्षेप के लिए कहूँ... और मैं ईश्वर से प्रार्थना के अलावा कुछ नहीं कर पाया ।मित्र का भाई गुज़र गया और मेरे अंदर का पत्रकार भी।

पिछले लंबे समय से कोरोना को केंद्र में रखकर में ब्लॉग्स लिखता रहा। मेरे ईमानदार ब्लॉग्स का प्रशासन पर गहरा असर भी पड़ता रहा ।कई बार मेरे ब्लॉग्स को ध्यान में रखकर सरकार और प्रशासन ने कार्यवाही भी की।

शायद यही वजह रही कि राज्य के कई जिलों में लोग मुझे कोरोना का योद्धा समझ बैठे ।उनकी यह भूल अब मेरे कमज़ोर और नपुंसक योद्धा होने की गवाही देने लगी है ।

लोग मुझे फोन करते हैं कि उनके परिचितों के वैक्सीन लगवा दूं ।कोई फोन करता है कि कोरोना की जांच नहीं कर रहे ।मैं कह कर करवा दूं। कई बार पुलिस वाले लोगों की गाड़ियां पकड़ लेते हैं ।लोग मुझे फोन करके गाड़ियां छुड़वाने का दबाव बनाते हैं। कुछ लोग कोरोना में लगी ड्यूटी कैंसिल करवाने के लिए फोन करते हैं। कुछ कोरोना वार्ड में हो रही है व्यवस्थाओं में सुधार लाने के लिए डॉक्टरों पर दबाव डालने को कहते हैं। कुछ लोग पुलिस कप्तान और जिला कलेक्टर से संबंधित कार्यों के लिए फोन करते हैं

आजकल लाल, पीले, हरे पास बनवाने का मौसम चल निकला है। जिले के बाहर जाने के लिए भी कुछ लोगों को पास चाहिए। लोग इन सबके लिए भी फोन कर रहे हैं।

भाईयों और बहनों !! मैं आपके हर काम के लिए तत्पर रहता हूँ मगर प्लीज! आप मुझे मसीहा मानकर मेरे क़द और मेरी औक़ात को बड़ा करने की कोशिश ना करें! शहर में बेहद शक्तिशाली पत्रकारों की कमी नहीं! उनके पीछे तो नामधारी अखबार और टी वी चैनल्स भी जुड़े हैं। मैं तो शहर का सबसे निम्नतम श्रेणी का बेरोज़गार मजदूर हूँ। थैंक्यू में पत्रकारिता करता हूं। मेहरबानी करके आप मुझसे किसी चमत्कार की उम्मीद ना करें !! प्रशासन से मेरी कोई सी भी जान पहचान नहीं !! किसी भी अस्पताल में मेरी नहीं चलती!! मैं कोरोना के खिलाफ लिखता ज़रूर हूँ मगर मुझे भी कोरोना से डर लगता है। मैं भी मास्क लगाता हूँ। बार-बार आपकी तरह साबुन से हाथ देता हूँ। भीड़ में जाने से भी डरता हूँ फिर भी मुझे कोरोना हो सकता है। मैं भी आम मरीजों की तरह अस्पताल में भर्ती हो सकता हूँ। उनकी ही तरह मुझे भी बेड नहीं दिए जा सकते ! उनकी तरह ही ऑक्सीजन के अभाव में मेरी भी मौत हो सकती है।

प्लीज मुझे अपनी ही तरह का मजबूर इंसान मानें। ब्लॉग्स लिखने से मैं मसीहा नहीं हो जाऊंगा! यह आप भी समझ ले मैं तो जानता ही हूँ।


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