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March 26, 2021
बिजयनगर के लिए विधायक राकेश पारीक का होना न होना बराबर
सरकारी अस्पताल के हाल पशु चिकित्सालय से भी गए बीते
बेहतर है इस हाल में अस्पताल के लगा दिए जाएं ताले
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
बिजयनगर के सरकारी अस्पताल के हाल वैसे ही हैं जैसे विधायक राकेश पारीक के। पिछले नगर पालिका चुनाव में जिस तरह भाजपा का बोर्ड बना वह जैसे पहले से ही बनना तय था। यहाँ का सरकारी अस्पताल जिस तरह की आपाधापी के संक्रमण से ग्रस्त था, उसे देखकर पूरा शहर पहले से ही धार बैठा था कि विधायक राकेश पारीक की अकर्मण्यता को वह सबक सिखा कर ही मानेगा ।
चुनाव से पहले मैंने अपने ब्लॉग में लिख दिया था कि बिजयनगर के सरकारी अस्पताल की बदहाली शहर में कांग्रेस का मटियामेट कर देगी।
बिजयनगर के लोगों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनका इकलौता सरकारी अस्पताल उनके किसी काम का नहीं ।और तो और शहर के लोगों को वहाँ प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं ।हर छोटी मोटी बीमारी के लिए मरीज़ों को अजमेर या आस पास के शहरों की तरफ भागना पड़ता है।
यदि अस्पताल का दौरा किया जाए तो यह सत्य सामने आ जाएगा कि यह अस्पताल किसी पशु चिकित्सालय या किसी डिस्पेंसरी से भी गया बीता है।
बिजयनगर के विधायक राकेश पारीक के राजनीतिक हालात जिस तरह बदहाली का बोझ ढो रहे हैं ,उसी तरह यहाँ का अस्पताल भी बुरे दौर से गुज़र रहा है। चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा से राकेश पारीक के संबंध यदि आत्मीय होते तो शायद यह नौबत नहीं आती ।अपने राजगुरु सचिन पायलट की चंपी करते-करते पारीक इतने शक्ति हीन हो चुके हैं कि अस्पताल में अपनी इच्छा से वे ज़रूरत के मुताबिक डॉक्टर भी नहीं लगा पा रहे।
मैंने जो ब्लॉग चुनावों से पहले लिखा था वह आज भी वैसे का वैसा लिखा जा सकता है। वही के वही हाल हैं।बल्कि उससे भी बुरे।
विधायक राकेश पारीक का होना ना होना बिजयनगर के लिए बराबर है। आइए आपको फिर से पढ़ा देता हूं मेरा पिछला ब्लॉग जिसे पढ़कर आप ही फैसला करें कि इस शहर के लोगों का जीना किस कदर हराम हो चुका है।
देखिए ! मेरे आठ महीने पहले लिखे ब्लॉग के अंश।
विधायक राकेश पारीक जिनको शिक़ायत रहती है कि उन्हें अधिकारी नहीं पहचानते, बिजयनगर के लोगों की शिकायत है कि वे राकेश पारीक को ही नहीं पहचानते ।अस्पताल की बदहाली के लिए वे अपने विधायक को दोषी मानते हैं ।सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक होते हुए भी उन्होंने कभी अपने अस्पताल की सुधि नहीं ली। अस्पताल के लिए आवाज़ नहीं उठाई।
आज अस्पताल की हालत यह है कि वह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से गया गुज़रा होकर रह गया है। इस बार के निकाय चुनाव में यदि कांग्रेस हारी (हारना तय भी है) तो उसका प्रमुख कारण यह अस्पताल ही होगा।
विधायक राकेश पारीक को तो शायद पता भी नहीं होगा कि बिजयनगर नगर पालिका मुख्यालय का यह अस्पताल आसपास के 100 गांवों से जुड़ा है। सरकारी फाइलों में अस्पताल 100 बेड का है मगर मैंने जाकर देखा तो यहां 50 बेड भी व्यवस्थित नहीं । बाकी 50 बेड कहां गए इसका जवाब ना तो अस्पताल प्रबंधन के पास है ना सरकार के पास। विधायक के पास तो होगा ही क्या?
नसीराबाद की तरह यहां भी डॉक्टरों की संख्या ऊँट के मुँह में जीरा वो भी ज़हरीला है। फिजिशियन यहां लंबे समय से नहीं हैं। महिला रोग विशेषज्ञ भी यहां पता नहीं कब हुआ करती थी। आज तो स्थिति ये है कि इस अस्पताल में आने वाले मरीजों का इलाज़ डॉक्टर्स नहीं करते बल्कि उन्हें रैफर का पर्चा थमा कर के अस्पताल से चलता कर देते हैं। उन्हें साफ कह देते हैं कि जान बचानी है तो भीलवाड़ा अजमेर जाकर इलाज़ कराओ ।यहां हमारे वश की बात नहीं। हम कोई रोग विशेषज्ञ नहीं। हमने इस रोग की पढ़ाई नहीं की। न इन रोगों का इलाज़ करने के लिए हम प्रमाणित माने जाते हैं।
उनकी बात सुनकर लगता है कि अफीम की खेती करने वालों से मेथी पालक उगाने को कहा जा रहा है। एक समय था जब इस अस्पताल में महिला विशेषज्ञ हुआ करती थीं। तब आसपास के गांवों की महिलाओं के हर माह 60 से अधिक प्रसव हुआ करते थे ।अब यहां प्रसव के लिए महिलाओं को भीलवाड़ा या अजमेर के जनाना अस्पताल भेजा जाता है।
सरकारी अस्पताल की इस मजबूरी का स्थानीय निजी अस्पताल जम कर लाभ उठा रहे हैं ।मोटी रकम देकर गरीब महिलाओं को अपना इलाज़ करवाना पड़ रहा है।
फिजीशियन नहीं होने से सबसे ज्यादा समस्या हार्ट के मरीजों की है। विगत एक साल में यदि रिकॉर्ड खंगाला जाए तो 100 से अधिक लोगों की मौत रैफर होने के बाद अन्य शहरों को जाते हुए रास्ते में हुई ।
दुख की बात तो यह है कि इस अस्पताल में सरकार ने सोनोग्राफी मशीन की सुविधा उपलब्ध करा रखी है मगर स्टाफ़ नहीं होने से इस सुविधा का लाभ रोगी नहीं उठा पा रहे । डॉक्टर कमीशन खोरी की चपेट में आकर बाहर से सोनी सोनोग्राफी करवा रहे हैं।
नसीराबाद की तरह यहां भी नाक कान गले का कोई डॉक्टर नहीं। हाँ, दाँतो के डॉ ज़रूर एक कि जगह दो हैं।सालों पहले जब बिजयनगर की विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा हुआ करती थीं इस अस्पताल में हर रोज़ 500 मरीजों का पंजीकरण होता था मगर अब यह नाम मात्र का रह गया है ।खांसी जुकाम तक के मरीजों को रेफर किया जा रहा है। डॉक्टर कोरोना महामारी के चलते मरीजों से दूरी बनाकर चल रहे हैं। श्रीमती पलाड़ा के ज़माने में अस्पताल में ऑपरेशन भी होते थे। अन्य चिकित्सा लाभ भी मिलते थे। सत्ता परिवर्तन के साथ ही क्रमोन्नत किए 75 बेड सिर्फ कागजों में रह गए हैं।
इस बारे में स्थानीय प्रभावशाली लोगों ने आवाज़ भी उठाई है । श्याम नागौरी ,चतर सिंह पीपाड़ा, बृजेश तिवारी ,संजय सांड, परमेंद्र सिंह, तरुण कच्छावा आदि ने प्रभारी मंत्री लालचंद कटारिया व चिकित्सा मंत्री डॉ शर्मा को पत्र लिखकर रिक्त पदों को भरने की मांग की है।
विधायक राकेश पारीक का मीडिया कर्मियों से कहना है कि वे सुविधाओं का विस्तार करवा रहे हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति की कार्रवाई चल रही है ।विधायक राकेश पारीक कहां जाकर, क्या कार्रवाई कर रहे हैं वही जाने मगर सितंबर 2019 से श्री गोपाल जोशी एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ मधु जोशी के बाद अब तक कोई विशेषज्ञ क्यों नहीं लगाया गया है,इस बात का जवाब पारीक के पास नहीं होगा।
क्या राजस्थान में फिजीशियन, नाक, कान, गले के डॉक्टर और स्त्री रोग विशेषज्ञ बचे ही नहीं हैं क्या सरकार के खातों में इन विभागों के डॉक्टरों की कमी आ गई है यदि ऐसा है तो तत्काल इस तरफ कदम उठाए जाने चाहिए। यदि डॉक्टरों के उचित समायोजन से व्यवस्था हो सकती है तो वह भी किया जाना चाहिए ।
हो सकता है मेरी इस बात से राकेश पारीक खिन्न हो जाएं मगर उनको हकीकत समझ कर तुरंत अपनी सरकार के आगे ज़िद करके बिजयनगर के अस्पताल को केकड़ी जैसा बनवाना चाहिए। जब वे सत्ता में रहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे तो बाहर आकर क्या करेंगे। ये सवाल मैं नहीं जनता उनसे पूछ रही है।
दोस्तो! किशनगढ़ को हाल ही में ज़िला अस्पताल बनाए जाने की घोषणा हुई है।वहाँ निर्दलीय विधायक सुरेश टांक ने ये कर दिखाया जबकि राकेश पारीक तो सत्ता धारी पार्टी के हैं।उनका पुरुषार्थ तो और भी दमदार होना चाहिए।
पता चला है कि इस अस्पताल के कई डॉक्टर्स और नर्सिंग कर्मी सेवा निवृत्त होने वाले हैं,ऐसे में इस अस्पताल के ताले लगाना ही उचित होगा।
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