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March 18, 2021
थाने में लगा बेल- पत्र और बेचारा पत्रकार
नसीराबाद थाने का आभार! जो किया सिर्फ़ मौखिक अभद्र व्यवहार
पुलिस कप्तान शर्मा जी का आभार कि उन्होंने समझा पत्रकार का दर्द,बैठाई जांच
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
नसीराबाद में एक पत्रकार के साथ थाने में दुर्व्यवहार हुआ। अब पत्रकारों में भारी रोष व्याप्त है ।पहली बात तो ये कि पत्रकारों को क्या पता नहीं था कि पुलिस थानों में कभी किसी प्रकार का आदर सत्कार नहीं होता ? औरों का तो फिर भी ग़लती से हो जाए, पत्रकारों का तो भूलकर भी नहीं होता!
थाने में बेलपत्र का पेड़ देखकर पत्रकार पियूष जिंदल ने शायद समझ लिया कि थाने में पुलिस अधिकारी शिवभक्त पलाडा जैसे होंगे!! हो गई ना उनकी ग़लतफ़हमी दूर!
बेलपत्र तोड़ने की इजाज़त लेने से कुछ नहीं होता ! थानों में जो होता है वह किसी क़ानून क़ायदे से नहीं होता!!
पीयूष भैया !! आपकी ही ग़लती थी जो आप थाने में चले गए! नसीराबाद में आपको क्या और किसी पवित्र जगह बेलपत्र का पेड़ नज़र नहीं आया? पुलिस थाने में लगा बेल पत्र ही क्या भगवान शिव पर चढ़ाना ज़रूरी था? भाई मेरे, थानों में लगा बेलपत्र का पेड़ दिखावटी होता है। उसकी आड़ में बेल पत्र पत्र- पुष्प अर्पित किए जाते हैं ।वहां लगे बेल पत्रों से भगवान शिव ख़ुश नहीं होते! वहां के भगवानों को तो तुमने देख लिया ! हे तात! यह तो अच्छा हुआ कि आपके साथ सिर्फ़ मौखिक अभद्रता ही हुई ,वरना थानों में पत्रकारों के साथ बहु कंबल परेड का प्रावधान है। कई पत्रकार थानों में सबूत मांगने जाते तो साबुत हैं मगर आते टेढ़े मेढ़े और टूटे फूटे होकर हैं।
पियूष जिंदल जी ! आप जिंदा लौट आए इसके लिए पुष्कर जाइए! और बाबा बैजनाथ जी के शिवलिंग पर वहीं से बेलपत्र तोड़कर चढ़ाइए! थानों के बेलपत्र तोड़ना आध्यात्मिक दृष्टि से यूँ भी ठीक नहीं।
आपको पता नहीं कि पुलिस का परिवार अपराधी चलाते हैं! यदि मुल्क में अपराध कारित ही ना हो तो पुलिस की क्या ज़रूरत ?अपराध होना बंद हो जाए तो पुलिस विभाग के ताले लग जाएँ! जितने अपराध बढ़ेंगे उतना ही पुलिस विभाग मजबूत होगा। यहां आपको बता दूं कि पुलिस तंत्र को आधुनिक बनाया जा रहा है। अपराधियों से ज्यादा विभाग का आधुनिक करण किया जा रहा है। इसके लिए अजमेर में अभय कमांड चल रहा है ।कैमरों से शहर की निगरानी हो रही है।
कैमरे सिर्फ़ सड़कों पर लगे हुए हैं पुलिस थानों में नहीं ! सोचो !पीयूष भैया ! थानों में कैमरे क्यों नहीं लगाए जाते
इस सवाल का उत्तर आपको तभी मिल गया होगा जब आपने नसीराबाद थाने में लगे बेलपत्र को छुआ होगा! मैं मानता हूं कि बेलपत्र तोड़ना उस वक़्त अपराध नहीं, जब आप ने बेलपत्र तोड़ने की इजाज़त ले ली हो, लेकिन शायद आपको पता नहीं कि जब सास घर में मौजूद हो तो बहू से ली गई इजाज़त काम नहीं आती। आपकी ग़लती शायद यही थी कि आपने सासु जी के होते हुए बहू की सहमति से बेलपत्र तोड़ने का प्रयास किया ।
आपको अब तो महसूस हो रहा होगा कि जिस थाने में लोगों के हाथ पैर तोड़ दिए जाते हो वहां बेलपत्र तोड़ने की परंपरा कतई बर्दाश्त नहीं की जा सकती !
मेरा दावा है कि यदि आप थाने से तोड़े गए बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ाते तो वह भी पूछ लेता कि बेटा ! ये बेल पत्र कहीं नसीराबाद थाने के तो नहीं?
जिले के पत्रकारों!! आप सब लोग इतना जो हल्ला मचा रहे हो ठीक नहीं !! पुलिस थाने में अव्वल तो बेलपत्र होते ही नहीं ! वहां पत्रं पुष्पं से काम चलता है ।नसीराबाद की तर्ज पर यदि किसी थाने में बेलपत्र का पेड़ लगा भी दिया गया हो तो वह केवल थाना अधिकारियों पर चढ़ाने के लिए होता है।
मित्रों !! थाने में जब कार्रवाई करने के बदले औरत की अस्मत मांग ली जाती हो तो आप बेल पत्रों की पवित्रता थानों से क्यों जोड़ना चाहते हो ?
एक थानेदार की पत्नी से उसके बेटे ने पूछा मां ! यह बलात्कार क्या होता है ? माँ ने कहा बेटा! अपने पापा से पूछना। उन्हीं के थाने में होता है ।
अजमेर के पुलिस अधीक्षक जगदीश चंद्र शर्मा नो डाउट निहायत ही संवेदनशील और ईमानदार अधिकारी हैं। उन्होंने नसीराबाद थाने में जिंदल के साथ हुए कथित दुर्व्यवहार के प्रति जांच भी बैठा दी है। उम्मीद की जा सकती है कि जांच में सत्य सामने आ जाएगा।
....मगर मुझे डर है कि यदि जिस सिपाही ने बेलपत्र तोड़ने की इजाज़त दी थी, उसने इजाज़त वाली बात से मना कर दिया तो पत्रकार जी का क्या होगा?
थाने में चोरी का मामला भी दर्ज़ हो सकता है ! और फिर यह बात भी आपसे पूछे जा सकती है कि थाने में बेलपत्र का पेड़ उसका थोड़े ही है जिससे आपने इजाज़त ली! जिस पेड़ पर किसी का मालिकाना हक़ ही ना हो,उससे इजाज़त लेने का क्या औचित्य
बेलपत्र का पेड़ थाने की संपत्ति है ।सरकारी संपत्ति। पुलिस विभाग उसका मालिक है। बेलपत्र के पत्ते तोड़ने के लिए आपको लिखित में गृह मंत्रालय से आवेदन करना चाहिए था। वहां से आप को मंजूरी मिल जाती तब ही आप पेड़ को तोड़ने के असली हक़दार माने जाते !
पत्रकारों !! मेरी मानो तो थानों में लगे किसी भी पेड़ से कुछ भी तोड़ने की हिमाक़त ना करो! तोड़ने का हक़ सिर्फ़ पुलिस विभाग को है। वह जिसे,जब चाहे तोड़ सकता है।
मैं पुलिस कप्तान जगदीश चंद्र शर्मा का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने पत्रकारों के दर्द को समझा और जांच बिठाई।
मैं नसीराबाद के उन पुलिस अधिकारियों का भी आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने पियूष जिंदल द्वारा की गई कार्यवाही पर गहराई से संज्ञान नहीं लिया ।उनके साथ सिर्फ़ मौखिक अभद्रता से ही काम चला लिया ।उन पर दैहिक कार्रवाई नहीं की।
इसके साथ ही पत्रकार भाइयों से आग्रह करता हूँ कि वे थानों में लगे बेल पत्रों को पवित्र न मानें, वे मंदिरों पर नहीं अधिकारियों पर ही चढ़ाए जाते हैं।इति श्री मम व्यंग्य समाप्तह
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