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क़लमकार: कुँवर राष्ट्रदीप सिंह, ख़ाकी वर्दी वाला मसीहा

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September 17, 2020

खोए हुए बेटे को माँ तक पहुंचाने वाला संवेदनशील अधिकारी

कुँवर राष्ट्रदीप सिंह, ख़ाकी वर्दी वाला मसीहा
खोए हुए बेटे को माँ तक पहुंचाने वाला संवेदनशील अधिकारी
पढ़ें आज का ब्लॉग और हो जाएं मेरे साथ_
                            सुरेन्द्र चतुर्वेदी
                     अजमेर के पुलिस कप्तान कुंवर राष्ट्रदीप सिंह के बारे में मेरी राय शुरू से ही साफ़ सुथरी रही है। बाक़ी और कुछ भी हो वे हैं एक संवेदनशील और साहसी अधिकारी!!  या तो फ़ैसला लेते नहीं और अगर ले लें तो उसे परिणाम तक पहुंचाए बगैर दम नहीं लेते ।
                         कोरोना के शुरुआती दौर में जब तत्कालीन जिला कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा अपने चेंबर में छिपे रहकर कोरोना से लड़ाई लड़ रहे थे, तब कुंवर राष्ट्रदीप सिंह बिना कोरोना संक्रमण की परवाह किए मुस्लिम मोची मोहल्ले तक के लोगों को आगाह कर रहे थे ।रात दिन उनकी मौजूदगी सक्रिय देखकर पुलिस महकमा पूरी तरह से चाक-चौबंद हो गया था ।वह अजमेर ही नहीं केकड़ी, ब्यावर, नसीराबाद,पुष्कर, किशनगढ़ उपखंडों में जाकर  पुलिस फोर्स को सक्रिय कर रहे थे। तब भी लोग उन पर फूल बरसाते थे।
                      मुझे याद है कि उस समय दो ही लोगों को पब्लिक सर्वाधिक पसंद कर रही थी ,एक तो कुंवर राष्ट्रदीप सिंह तो दूसरी थीं यातायात विभाग की सुनीता गुर्जर । इसके अलावा नगर निगम की तत्कालीन आयुक्त चिन्मयी  गोपाल भी कई स्थानीय छिछोरे राजनेताओं की साजिशों में घिर कर भी जनता की भरपूर सेवा में लगी हुई थीं।
                   दोस्तों !!! आप भी सोच रहे होंगे कि हर रोज़ किसी न किसी मुद्दे पर अधिकारियों को भजन सुनाने वाला सुरेंद्र चतुर्वेदी आज किस कुँवर राष्ट्रदीप के  सुंदरकांड में लग गया। ज़िले में जब पुलिस सिस्टम पर हज़ारों हज़ार सवाल उठाए जा रहे हों, रिश्वतखोरी की शिक़ायतें सुनाई दे रही हों, आपराधिक घटनाओं की बाढ़ आ रही हो तब मेरे जैसा आक्रामक पत्रकार कहां कुंवर राष्ट्रदीप सिंह के नाम की माला जपने लगा।
                हो सकता है आपका सोच सही दिशा में हो मगर मैं इसे सकारात्मक नहीं कहूंगा।
              *पलिस सिस्टम में जो आधारभूत बुराइयां होती हैं ,उन्हें अकेले एक ज़िले से खत्म नहीं किया जा सकता। यदि मासिक चौथ वसूली की एक परंपरा बनी हुई है तो वह हर जिले में है और कई दशकों से है ।वह देशभर में लागू है ।बड़ी ईमानदारी से चल रही है ।चौथ देने वालों और वसूलने वालों के बीच स्थाई समझौता है ।लेने वाला जितना राज़ी है देने वाला उससे कहीं ज्यादा ख़ुश है ।प्रजातंत्र में प्रजातांत्रिक तरीके से यह सब चलता है और चलता रहेगा।
                             सवाल यह उठता है कि इस प्रचलित सिस्टम के बावजूद ऐसा क्या है जो कुंवर राष्ट्रदीप सिंह को अन्य अधिकारियों से अलग करता है। मेरा अध्ययन उनको लेकर बहुत साफ़ है। वे दुर्दांत, बेरहम और भ्रष्ट पुलिस अधिकारी नहीं। उनका पूरा सिस्टम अभी भी आम जनता को न्याय दिलाने के प्रति समर्पित है ।उनकी वर्दी में एक दिल है जो ख़ाकी रंग का नहीं ।जिसमें संवेदनाएं पुरवाई बनकर बहती हैं। वह इंसानी दर्द के लिए धड़कता है। वह किसी को किसी का हक़ मारने नहीं देता। निर्दयता से भावनाओं को कुचल देना जिसकी फितरत में नहीं ।
                   उनके दिल का यही गुण ऐसा है जिसे मेरा दिल सलाम करता है।
                      पिछले दिनों एक ख़बर मीडिया में प्रमुखता के साथ  छापी जानी चाहिए थी , मगर सुशांत सिंह , रिया चक्रवर्ती और कंगना रनोत के साथ चंबल में नाव डूब गई ।लोगों ने उसका नोटिस ही नहीं लिया। मीडिया ने भी उस ख़बर को हार्ड न्यूज़ बनाकर पेश कर दिया ।
                              बिहार भागलपुर की मां से अजमेर का क्या लेना-देना सोशल मीडिया पर हर रोज़ अपने खोए हुए बेटे को तलाश करती माओं की वीडियो क्लिप पोस्ट होती रहती हैं। हर रोज़ लोग देखते हैं और नज़र अंदाज़ कर देते हैं ।राज्य पुलिस के कितने ऐसे  अधिकारी हैं जो उन्हें देखने का कष्ट उठाते हों।एक भी नहीं। वे इस तरह की खबरों को चींटी मारे जाने की ख़बर जैसा समझते हैं, मगर कुंवर राष्ट्रदीप सिंह ने भागलपुर की इस बदनसीब मां का वीडियो देखा तो उनकी आंखें नम हो गईं। दिल भर आया ।खोए हुए बच्चे में वे ख़ुद तब्दील हो गए ।भागलपुर की रोती हुई माँ में उन्हें अपनी मां नज़र आई ,और उन्होंने तुरंत ज़िले की पुलिस को सक्रिय कर दिया। दरगाह पुलिस को ख़ास तौर पर निर्देश दे दिए। उनका दिल यह सोचता रहा कि काश !खोया हुआ बच्चा अजमेर में ही मिल जाए !! आत्मा जब पवित्र हो, दिल जब यकीन से भरा हो तो मालिक उस पर नूर बरसाता है । रहमतों की बारिश करता है। यही हुआ भी।खोया हुआ बच्चा दरगाह पुलिस को ही मिल गया।
               कोरोना में लॉकडाउन से पहले वह दरगाह आ गया था ।लॉकडाउन के बाद जा नहीं सका ।एक गेस्ट हाउस के मालिक ने उसे बाल मजदूर बनाकर जाने नहीं दिया ।अब गेस्ट हाउस का मालिक पुलिस गिरफ्त में है। बिहार पुलिस और बदनसीब मां को खुशखबरी सुना दी गई है । पुलिस कप्तान कुँवर साहब खुश हैं कि उनकी ज़रा सी नेकी ने कितनी बड़ी पाकीज़गी को सहारा दे दिया ।
            दोस्तों!! ज़रा  एक बार, सिर्फ एक बार कल्पना करिए कि आपका बेटा 6 महीनों से ग़ायब है।आपकी पत्नी उसे दर दर ढूँढ रही है। पुलिस ने ख़ाना पूर्ति के लिए ग़ुमशुद्गी की रिपोर्ट लिख ली है।कहीं बच्चे का पता नहीं चल रहा।आप ज़िन्दा तो हैं मगर मुर्दे की तरह।सारी दुआएँ बेकार जा रही हैं।
                  ऐसे में अचानक आपको बेटे के मिलने की ख़बर मिलती है। बस !! इसी मानसिकता से जुड़ कर ये ब्लॉग पढ़ें ।शायद आपके मन भी वर्दी वाले मसीहा कुँवर साहब को सलाम कर सके।


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