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August 19, 2020
कोरोना मार कर छोड़ेगा अजमेर ज़िले के बेवकूफ़ों को
सुबह की शुरुआत 90 से: शाम तक पता नहीं क्या हो
केकडी, ब्यावर, नसीराबाद और किशनगढ़ में अस्पताल बने पशु चिकित्सालय
लॉक डाउन नहीं हुआ तो तबाह हो जाएंगे हम
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सरकार मंत्रिमंडल के विस्तार की प्रक्रिया में व्यस्त है ।इधर कोरोना पूरे राज्य में तबाही का अश्वमेध यज्ञ लेकर निकल पड़ा है ।अजमेर जिले में आज अब तक के 5 माह का रिकॉर्ड टूटेगा। ब्लॉग लिखने के समय तक सुबह आंकड़ा 90 पर पहुंच चुका है। सुबह-सुबह यह हाल है तो पूरे दिन में क्या होगा ।
बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि पहले तो किसी भी कोरोना पॉजिटिव पता चलने पर उसकी कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की जाकर कॉन्टेक्ट में आये सभी लोगो के सैंपल लिए जाते थे पर अब तो कोई कोरोना पॉजिटिव आ गया तो उसके परिजनों तक के सैम्पल लेने से मना किया जा रहा है। और यदि कोई परिजन जबरदस्ती सैम्पल चैक करवाने को कहता है तो क्वारन्टीन होने के बावजूद उसे कहा जाता है कि वैसे तो सैम्पल की कोई जरूरत है नही, ये दवाई हम दे रहे हैं वो सब घर वाले ले लो। तुम्हारे घर तो सैम्पल लेने कोई नही आएगा किसी डिस्पेंसरी में जाकर वहां पर वो टेस्ट करें तो करवा लो।
नसीराबाद , ब्यावर , केकड़ी, किशनगढ़, अजमेर सभी शहरों में विस्फोटों की गूंज सुनाई पड़ रही है।मौत ढोल नगाड़े बजा रही है प्रशासन शायद बहुत कुछ कर रहा है मगर दिखाई कुछ नहीं पड़ रहा।
नए कलेक्टर श्री प्रकाश राजपुरोहित के अजमेर आगमन पर सबसे पहले स्वागत करने वाला यह पत्रकार बड़े उदास मन से कह रहा है कि पुरोहित जी अभी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे। वह निहायत ही सुलझे हुए प्रशासनिक अधिकारी हैं लेकिन कोरोना के बढ़ते प्रभाव पर वे प्रभावी नहीं हो पा रहे।
भीलवाड़ा, जोधपुर , जयपुर , पाली, बीकानेर, कोटा , अलवर ,भरतपुर के साथ-साथ अजमेर भी कोरोना के दंश को बुरी तरह झेल रहा है। उधर सूत्रों ने साफ कर दिया है कि कोरोना का वैक्सीन आने में अभी समय लगेगा।
अस्पतालों की हालत बेहद दयनीय होती जा रही है ।महंगा इलाज़ करने वाले निजी अस्पताल भी अब नखरे दिखा रहे हैं। अजमेर से जयपुर जाकर बेहतर इलाज़ कराने के लिए जा रहे अधिकांश लोग पॉलिथीन में लिपट कर लौट रहे हैं। डॉ लौंगानी की मृत्यु के बाद तो यह सिलसिला चल ही निकला है ।वहां निजी अस्पतालों के आइसोलेशन वार्ड और आईसीयू वार्ड हाथ खड़े कर चुके हैं। स्थिति यहां तक आ गई है कि लोग अब जयपुर की जगह अजमेर में ही मरना बेहतर समझ रहे हैं ।
कोरोना अजमेर जिले में पूरी तरह बेकाबू है। जनता तो इसके लिए दोषी है ही, प्रशासन की लापरवाही भी इसके लिए जिम्मेदार है ।
एक वक्त था कि अजमेर पुलिस पर उसकी सख़्ती के कारण फूल बरसाए जा रहे थे ।गलियों में उनके पक्ष में नारे लगाए जा रहे थे मगर आज क्या स्थिति है?
पुलिस की सख्ती तो पूरी तरह आमदनी बढ़ाने में लगी हुई है ।कोरोना पर सख़्ती ना हो तो कोई बात नहीं पर उनकी सख़्ती तो अपराधियों पर भी नज़र नहीं आ रही। जिले में कोरोना कॉल की शुरुआत में अपराध न के बराबर हो गए थे जबकि पूरी पुलिस कोरोना क्षेत्र में लगी हुई थी,अब जबकि उनकी जिम्मेदारी कोरोना के क्षेत्र में नगण्य हो गई है तब भी उनके मूल काम में कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे।
कोरोना काल के शुरुआती दौर में चिकित्सा कर्मी भी जनता का प्यार पा रहे थे मगर अब वे भी जनता की नाराज़गी के नेज़े पर हैं ।लगातार लंबी सेवाएं देते देते उनका हौंसला भी जवाब दे चुका है ।आए दिन चिकित्सा कर्मी खुद कोरोना के शिकार हो रहे हैं। इससे उनमें भी भयंकर भय व्याप्त हैं । सरकारी नौकरी और मासिक वेतन के चक्कर में वे काम पर तो आ रहे हैं मगर कोरोना के मरीजों से निश्चित दूरी बनाकर चल रहे हैं ।अस्सी फीसदी चिकित्सा कर्मी मरीजों के पास तक नहीं जाते । वार्ड बॉय और सफाई कर्मचारियों से सारी व्यवस्थाएं करवाई जा रही हैं । ऐसे में नेहरु अस्पताल नर्क बन चुका है।
जिले भर के लोग अस्पताल जाने में भी डरने लगे हैं। छोटी मोटी बीमारी होने पर कोई अस्पताल नहीं जा रहा। मेडिकल स्टोर जाकर अपने स्तर पर दवाइयां खरीद रहे हैं ।गूगल डॉ बना हुआ है। गूगल से अपने लक्षणों के आधार पर दवाइयां चुनी जा रही हैं।
जिले भर में एक सा हाल है केकड़ी में कहने को तो चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा ने बेहद शानदार चिकित्सा के साधन मुहैया करा रखे हैं। ऐसी आला दर्जे की मशीन शायद ही कहीं हो ।इसके बावजूद वहां डॉक्टरों का रवैया और अस्पतालों की व्यवस्था पशु चिकित्सालय जैसी है। केकड़ी के लोगों में भयंकर आक्रोश है। सवाल सुविधाओं का नहीं ,सवाल साधनों का भी नहीं, सवाल है लोगों तक इलाज का। यह लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा।डॉ रघु शर्मा के सारे प्रयास यहाँ फेल होते जा रहे हैं।
ब्यावर के हाल तो केकड़ी से भी ज्यादा खराब हैं। यहां लोगों में जागरूकता ही नहीं ।इस शहर की व्यथा हमेशा ही यही रही है कि यहां के लोग अपने आपको बाहुबली समझते हैं। कोरोना को सभी अपनी कांख का बाल समझते हैं ।कोरोना को क्या वे तो सारी समस्याओं को इसी टाइप का बाल समझ कर चलने के मूड में रहते हैं । डिस्टेंसिंग, मास्क या लगातार हाथ धोने में उनका विश्वास ही नहीं ।ऐसे में कोरोना बाहुबलियों को चुन चुन कर गिरफ्त में ले रहा है। अगले सप्ताह यहां भयंकर विस्फोट होने वाला है ।
नसीराबाद की बात करें तो यहां भी लोग लापरवाही से ही पैदा हुए लगते हैं ।जिसे देखो कोरोना को आगे होकर ढूंढ रहा है। आ बैल मुझे मार वाला मुहावरा यहां अब "आ कोरोना मुझे मार" वाला मुहावरा गड़ रहा है।यहां के सरकारी अस्पताल अजमेर के पशु चिकित्सालय से भी बदतर हैं ।चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा को पता नहीं यहां के अस्पताल से मोहब्बत क्यों नहीं। न जानदार डॉक्टर्स हैं ना बेहतर नर्सिंग स्टाफ ।जो हैं वे अपनी नौकरी से ज्यादा फैमिली एंजॉयमेंट को तरज़ीह देते हैं। शहर की 80% जनता का इलाज़ मेडिकल स्टोर के समझदार संचालक कर रहे हैं।
यहां से भी ख़राब हाल औद्योगिक नगरी किशनगढ़ के हैं। यहाँ का कोई धणी धोरी नहीं। राजनीतिक अव्यवस्था के शिकार हुए विधायक सुरेश टांक अपनी ताक़त को फिर से संचित करने के लिए मैदान में उतरे हैं।नई पारी खेलने। जो हुआ हो गया मगर अब उन्हें अपने अपनी ताक़त यज्ञ नारायण अस्पताल पर केंद्रित कर देनी चाहिए ।यह सरकारी अस्पताल शहर के कुछ कांग्रेसी दलालों के चक्कर में बर्बाद हो चुका है । कोरोना से लड़ने की ताक़त उसमें नहीं बची। कुछ नर्सिंग कर्मी डॉक्टरों पर भारी पड़ रहे हैं । मरीजों के हाल ख़राब हैं । यदि इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया तो किशनगढ़ कोरोना के मामले में अजमेर की पहली पायदान पर पहुंच जाएगा ।
पता नहीं मुझे ही क्यों लगता है जिला कलेक्टर को इन दो चार शहरों में लॉक डाउन कर देना चाहिए। रात की ही नहीं दिन की भी चेन तोड़ने की ज़रूरत है। देखते हैं कब आंखें खुलती हैं ? खोलनी तो पड़ेंगी । बंद आखों से अजमेर को बचाया नहीं जा सकेगा।
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