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#मधुकर कहिन: दुख के सारे पर्वत जिसनें सिर पर लिए उठाए विष सारे संसार का पीकर नीलकंठ कहलाये

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February 23, 2018

आज महाशिवरात्रि है। भगवान शिव की स्तुति और आराधना का यह पर्व सारा संसार आज के दिन मनाता है। शिव अपने आप में त्याग का प्रतीक हैं। हमारी सभ्यता,संस्कृति और भारत के अध्यात्म में सृजन भाव के लिए ब्रह्मा जी को, संचालन भाव के लिए भगवान विष्णु को, और त्याग भावना हेतु भगवान शिव को पूजा जाता है। अर्थात हमारी सभ्यता में भाव का सम्मान है। भगवान शिव की आराधना इसलिए कि जाति है कि जब जब भी मानवता पर किसी भी तरह का विष हावी हुआ है या कोई तकलीफ आयी है वह तकलीफ भगवान शिव ने अपने आप पर ले कर मानवता की रक्षा की है।

पुराणों अनुसार समुद्र मंथन के दौरान बहुत सारी दिव्य वस्तुएं सागर से निकली।जो सभी देवताओं ने अपनी अपनी सुविधा और कर्तव्य स्वरूप ग्रहण कर ली।परंतु जब विष निकला तो वह भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया ताकि मानवता को उस विष से हानि न हो। संसार के सभी सुख छोड़कर लोक कल्याण हेतु विष पान कर लेने का साहस केवल शिव ही कर सकते थे।उनके इसी साहस और त्याग के भाव को लोग सदियों से पूजते आ रहे हैं। 

आज कलयुग में लोग भगवान शिव की आराधना करते हुए तो दिखाई देते हैं , परंतु त्याग का वह भाव कहीं खो सा गया है।

लोग खुद विष पीकर औरो की रक्षा करना तो दूर अपितु खुद के फायदे के लिए पूरे जग को विषपान करवान पर तुले हैं।

धर्म ,मंदिरों और मस्जिदों के ऐसे ऐसे ठेकेदार पैदा हो गए है, जिनको यह ख्याल नहीं आता कि वह जिस मंदिर या मस्जिद के बाहर खड़े हो कर अपने धर्म का प्रचार कम और नफरत का विष ज्यादा उगल रहे हैं, उसी  के भीतर बैठे भगवान भी इन ठेकेदारों के कर्म यह देख कर शर्म और इन लोगों के प्रति घृणा महसूस करते होंगे । उन्हें खुद के भगवान होने पर अफसोस भी होता होगा क्योंकि उन्होंने भी यह नहीं सोचा होगा कि उन्ही का बनाया हुआ इंसान एक दिन उन्ही को इस तरह से कभी अपनी कुर्सी के लिए तो कभी धन के लिए बेचता फिरेगा।

सच यही है कि आज इन सभी धर्म के दुकानदारों ने कही पैसे के लिए तो कही रुतबे या राजनीति के लिए धर्म पताका पकड़ रखी है । जबकि त्याग या अध्यात्म से इन लोगों का कोई लेना देना नहीं है। परंतु यह भी सच है कि मृत्यु उपरांत नरक के द्वारपाल सबसे पहले इन्हीं के स्वागत के लिए खड़े मिलेंगे। फिर भी आज महाशिवरात्रि के दिन मैं दो पंक्तियों से मेरी बात खत्म करूँगा -


*जिसने मरना सीख लिया है जीने का अधिकार उसी को* 

 *जो कांटों पर चलकर आए फूलों का उपहार उसी को* 


आप सभी को त्याग के इस महा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं 

ईश्वर आप सभी को इस वर्ष विष पीकर अमृत बांटनें की भावना और शक्ति प्रदान करें।


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