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February 23, 2018
नरेश राघानी
अभी कुछ समय पहले ही भाजपा नेता अनीश मांगीलाल मोयल के मासूम पुत्र की एक कृषि वाहन के नीचे आने की वजह से दर्दनाक मृत्यु हो गई थी । सारा शहर उस हादसे से बहुत आहत था। थोड़े समय के लिए पब्लिक की नाराजगी देखते हुए उस प्रकार के सभी वाहनों को शहर में आने पर रोक भी लगा दी गई।ट्रैफिक पुलिस कुछ दिनों के लिए सक्रिय भी हुई , परंतु घुमा फिरा के बात वहीं की वहीं आकर पहुंच गई । ज़िले के ब्यावर शहर के पुराना मसूदा रोड स्थित बांके बिहारी मंदिर के पास नगर परिषद का निर्माण कार्य चलने के दौरान एक बजरी से भरे डंपर ने दंपत्ति को कुचल दिया और अमानवीयता की हद देखिए चलने के बाद खलासी जोर-जोर से चिल्ला कर कह रहा था - *दो नीचे आ गए है जल्दी भगा ले*
मेरे समझ में नहीं आता शहर के बीच अगर निर्माण कार्य कराया भी जाना है कृषि वाहनों के आने और जाने का समय फिक्स क्यों नहीं किया जाता ? इन वाहनों को शहर के घनी आबादी क्षेत्र में घुसने की इजाजत ही क्यों दी जाती है ? शहर के विभिन्न आवासीय इलाकों और भारी आबादी के बीच बड़े-बड़े मालगोदाम बने हुए हैं , जिन गोदामों पर दिनभर भारी वाहन लोडिंग गाड़ियां आती और जाती रहती है। चाहे पड़ाव क्षेत्र हो आगरा गेट हो या फिर मदार गेट अथवा वैशाली नगर ही क्यों ना हो हर जगह और घनी आबादी क्षेत्रों के बीच लोडिंग गाड़ियां और कृषि वाहन डंपर इत्यादि बेखौफ घूम रहे हैं , और हमारी पुलिस ट्रैफिक के नाम पर केवल गांधी भवन चौराहा पर खड़ी चालान काटती हुई दिखाई देती है।
हद तो उस दिन देखी मैंने जब जयपुर रोड़ से लोहागल जाते हुए MDS यूनिवर्सिटी वाली सुनसान सड़क पर कुछ पुलिसकर्मी खड़े हुए यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्रों की गाड़ियों के चालान काट रहे थे , जैसे टारगेट पूरा करके देना हो वर्ना नौकरी चली जाएगी। वहीं खड़े हुए उन लोगों को भारी वाहन गाड़ियां बिल्कुल नहीं दिखाई दे रहीं थी जो शहर की तरफ बिंदास चली जा रही थीं।
गांधी भवन से लेकर क्लॉक टॉवर तक अगर आप दो पहिया वाहन पर चल रहे हैं तो इतना भारी भरकम और मनमाना किस्म का ट्रैफिक दिखाई देगा कि आप तंग होकर सोचेंगे इससे तो अच्छा मैं पैदल ही चल लूँ। मेरे ख्याल में अधिकांश लोग जिनके पास फोर व्हीलर गाड़ियां हैं उन्हें बड़ी भारी नफरत है इस रोड से गुजरने से , क्योंकि हमारी पुलिस गांधी भवन पर खड़े होकर चालान तो काटती है लेकिन स्टेशन के बाहर खड़े हुए अव्यवस्थित टेंपो वह ऑटो रिक्शाओं को स्मार्ट सिटी के अनुरूप ढालने में नाकाम साबित हो रही है।
सैकड़ों भारी वाहन व लोडिंग गाड़ियां रोज़ शहर के बीच से गुजर रही है। स्कूल क्षेत्र हो या भरे बाजार ट्रैफिक कर्मियों को किसी भी नागरिक की जान की फिक्र नहीं है। फिक्र है तो बस चालान काटने की। हो सकता है मेरे कुछ दोस्त यह सोच रहे हो कि आज मैं ट्रैफिक पुलिस के इतना पीछे क्यों पड़ गए हूँ? तो भाई मैं सच्चे मन से बहुत दुखी हूँ उन पति पत्नी के लिए जिनको डंपर बेदर्दी से कुचलकर भाग गया , ट्रैफिक पुलिस की नाकामी की वजह से ऐसी सैकड़ों जानें खतरे में है । जाने कब किस का नंबर लग जाये ?
*खैर ... हमनें आज एक प्रण लिया है कि रोज खबरों के माध्यम से ही सही। ट्रैफिक पुलिस चाहे इसका रिकॉर्ड रखे या ना रखे लेकिन टीम होराइजन हिंद अजमेर में होने वाली सभी एक्सीडेंटल मौतों का आज की तारीख से रिकॉर्ड रखना शुरू कर रही है और यह रिकॉर्ड हर महीने हमारी वेबसाइट पर साझा किया जाएगा। जिस से हम आप मिलकर बदलाव की ओर एक कदम ही सही लेकिन आगे तो बड़ें।
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