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February 7, 2018
नरेश राघानी
परिवार के साथ रणथंबोर गया हुआ था । रणथंबोर राजस्थान में साक्षात टाइगर दर्शन हेतु जिला सवाई माधोपुर में एक जगह है जो कि रणथंबोर नेशनल पार्क के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है ,बंगाल टाइगर को अपनी स्वाभाविक मुद्राओं में देखने के लिए। यहां पूरे विश्व से पर्यटक जंगल सफारी के लिए पहुंचते हैं। लगभग 7 घंटे की ड्राइव कर के वहां पहुंचा और क्योंकि रिसोर्ट पहले ही बुक करा रखा था तो कोई खास परेशानी नहीं हुई । शहर में घुसते ही ऐसे लगा कि भैया यह शहर तो चल ही टाइगर बाबा के जलाल से रहा है। आपको हंसी आ रही होगी लेकिन यकीन मानिए यह बिल्कुल सही है। अमूमन सड़क पर चलते हुए टाइगर कार डेकोर, टाइगर टी स्टाल , टाइगर मेडिकल्स, टाइगर हिल फैमिली रेस्टोरेंट,टाइगर गारमेंट्स, टाइगर ड्राई क्लीनर्स बस टाइगर- टाइगर- टाइगर मतलब चारों तरफ जंगल सफारी करके टाइगर देखने से पहले आप इतने प्रकार के टाइगर से मिल लेते हैं की पूछिये मत । माहौल इतना टाइगर मय है वहां की यदि रास्ते के दौरान कीसी गली में से अगर कोई आवारा पशु भी निकलता दिखे तो वह भी एक बार तो टाइगर जैसा दिखाई देने लगता है । लेकिन साहब कुछ भी कहो लोगों ने टाइगर को जिस तरह का बिजनेस बना रखा है वह तारीफ के काबिल है । टाइगर के छापे वाले कपड़े , टाइगर के पंजे के निशान वाले जूते , टी शर्ट्स ,टाइगर की तस्वीरें इतना तामझाम खड़ा किया गया है एक बेचारे जानवर के आसपास की टाइगर खुद भी सोच में पड़ जाता होगा इससे तो अच्छा मैं इंसान ही होता , तो कम से कम मेरे नाम से यह इतने सारे लोग लोग जो कमा खा रहे हैं उनसे अपना हिस्सा तो मांग लेता ताकि शिकार की मेहनत किये बगैर कम से कम आराम जी लेता ।
सरकार इन टाइगर्स पर क्या खर्चा करती है क्या नहीं करती है वह तो भगवान ही जाने लेकिन बेचारे टाइगर के साथ बड़ी नाइंसाफी है। उसे तो एक जगह विशेष के अंदर संरक्षित कर के रख दिया गया है, जहां उसे खुद ही शिकार की मेहनत करनी पड़ती है जबकि सारे सवाई माधोपुर में टाइगर के नाम से इतने पर्यटकों का शिकार हो रहा है कि वहां की पुश्तें पूरी तरह से आर्थिक रूप से संरक्षित हो गयी हैं। आसपास इतने सारे रेस्टोरेंट और इतने सारे होटल और रिजॉर्ट बने हुए हैं जितने शायद इस वन में टाईगर भी नहीं होंगे । कैसी अजीब विडंबना है कि जहां बेचारा टाइगर खुद के वजूद को बचाये रखने की जंग लड़ रहा है और वही पूरा गांव उसके नाम पर टाइगर टाइगर खेल रहा है । मुझे मालूम नहीं कि आखिर रणथंबोर में बसी टाइगर फैमिली का आखिर क्या किस्सा है ? परंतु जब आज सुबह मैंने नेट पर एक रणथंबोर में बसे टाइगरों की वंशावली का चार्ट निकाला जो कि पूर्व वन मंत्री बिना काक के समय में बनाया गया था, उसके अनुसार अधिकांश टाइगर या तो मर चुके हैं या फिर उनका अता पता नहीं है। बहरहाल वह चार्ट 2013 का निकला और इस वक्त क्या स्थिति है वह तो टाइगर बाबा खुद ही जानते हैं की उनकी कितनी संतानें शेष हैं या फिर जानते हैं हमारे वन विभाग के ईमानदार वनकर्मी। ऑनलाइन वेबसाइट पर टाइगर फैमिली ट्री के नाम से पेज तो बनाया गया है परंतु उस पर कोई भी जानकारी अपडेट नहीं की गयी है । गौरतलब है कि कुछ समय पूर्व राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के महासचिव रुपेश कांत व्यास ने वनकर्मियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अभियान चलाया था जिसके तहत उन्होंने सरकार से मांग की थी कि टाइगर नंबर T24 यानी कि उस्ताद नाम का टाइगर रणथंबोर में केवल इन रिसोर्ट मालिकों की कमाई कराने के लिए वहां रख दिया गया है। अब उस प्रकरण का क्या हुआ यह तो विभाग ही जानें लेकिन इस वक़्त उस्ताद को उदयपुर के चिड़ियाघर में लाकर रख दिया गया है। इसी तरह यदि टाइगर्स की संख्या कम होती रही तो वो दिन दूर नहीं है कि हम लोग अपने बच्चों को बिल्ली दिखाकर कहेंगे कि बेटा **एक था टाइगर और टाइगर अब ज़िंदा नहीं हैं...*
जय श्री कृष्णा
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