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#मधुकर कहिन: मन की बात

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February 7, 2018

नरेश राघानी


आप मन ही मन में मुझ पर हंस रहे होंगे , और सोच रहे होंगे कि ये क्या हुआ है मुझे आज ? क्यों भाई !!! मन की बात कहने का अधिकार सिर्फ देश के प्रधानमंत्री को ही  है क्या ?  क्या आम आदमी अपने मन की बात नहीं कह सकता क्या ? 


आज सुबह जब से मैं नींद से उठा हूँ तो मन में एक विचार बार बार आ रहा है । सोचा आप लोगों से मैन की बात शेयर करूँ।बात यह है कि मुझे लगता है कि मैं कहीं ना कहीं अपना मूल स्वरूप खोता जा रहा हूं । अभी कुछ साल पहले ही की तो बात है , मैं बड़े आराम से मन की शांति लिए लिखा करता था। जिसमें कविताएं और ग़ज़लें भी शामिल होती थीं । जो कि मेरे मित्रों को सुनना बहुत अच्छी लगती थीं। मेरे एक प्रशंसक मित्र ने तो मुझे मधुकर का उपनाम तक दे दिया। मेरे उस मित्र से मधुकर का अर्थ पूछने पर उसने मुझे बताया कि मधुकर का अर्थ होता है भंवरा और दूसरा अर्थ होता है शहद में डूबे हाथ अर्थात वह हाथ जिनसे शहद टपकता हो। मुझे उपनाम बहुत अच्छा लगा और मैंने इसी उप नाम को मेरा साहित्यिक सरनेम बना लिया, और नरेश मधुकर के नाम से अपनी कविताएं और गज़लें लिखकर नेट पर अपलोड करना शुरू किया ।धीरे धीरे पाठकों का एक वर्ग बनने लगा । एक किताब *जज़्बातनाम* भी प्रकाशित हुई और भाई मधुकर की तो मानो निकल पड़ी।एक नया रास्ता मिला था अंतर्मन खाली करने का जिसमें मधुकर बहुत संतुष्टी से जीने लगा।

परंतु पिछले कुछ दिनों से मुझे एक अजीब अपराध बोध सा लगने लगा है । मुझे लग रहा है कि जब से मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया है तब से नरेश मधुकर सिर्फ एक कवि नहीं रहा। सत्य की निश्चल अभिव्यक्ति करते करते मुझे कई ऐसी बातें भी  लिखनी पड़ी है , जो शायद कई लोगों को नागवार गुजरी होंगी और उनका कहीं न कहीं मैंने दिल दुखाया होगा। सुबह से मेरे मन को बार बार यही सवाल सता रहा है कि मधुकर के शहद में डूबे हाथों से अचानक विष क्यों टपकने लगा? मधुकर  विष वमन कैसे करने लगा ?  शायद एक कवि हृदय को अपने आसपास गुजर रही दुनयावी बातोँ से कुछ ज्यादा ही तकलीफ पहुंच रही है । इसलिए उसको जो कुछ भी दिखाई या सुनाई दे रहा है वह विचारों अभिव्यक्ति के तौर पर वैसा का वैसा लिखे जा रहा है । आज मैंने उन सब लोगों से माफी मांगने के लिए ब्लॉग लिखा है । जिनका कहीं ना कहीं मेरे पिछले लेखों में मैंने बहुत दिल दुखा दिया है। सच मानिये मेरा आप लोगों का दिल दुखाने का कोई मंतव्य नहीं है। इसे केवल एक आम आदमी की विचार अभिव्यक्ति माने और अपने मन में मधुकर के लिए कोई रंज ना रखें । क्योंकि मधुकर खुद भी अपने बदलते स्वरूप से परेशान है।वह मूलतः एक कवि है और उसे लिख कर झूठ बोलना नहीं आता। जिसके लिए वो क्षमा प्रार्थी है।


जय श्री कृष्णा


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