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February 7, 2018
यह डायलॉग फ़िल्म शोले में जैसी परिश्थिति में बोला गया था लगभग वैसी ही स्थिति आज के दिन की लग रही है।जब हारने वाले हार चुके हैं और जीतने वाले जीत कर जा चुके हैं।
कुछ बाकी बच गया है तो यह सन्नाटा। जो कि जनता का सदा से ही साथी रहा है, आम आदमी जो वोट देता है और जिसके वोट से सत्ता बनती है उसके हिस्से में सदा सिर्फ यह सन्नाटा ही आता है।
यह वही खाता हुआ सन्नाटा है जो पिछले कई वर्षों से सिस्टम को खा रहा है इस सन्नाटे के तले पता नहीं कितने ईमानदार लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का जुगाड़ करने के लिए सिर्फ एक नियमित दिनचर्या में बंधे सुबह से लेकर रात तक कालचक्र के पाटों में पिसते रहते हैं । उनकी रोजी रोटी और बच्चों की जरूरते उन्हें और कुछ सोचने का समय ही नहीं देती है। कौन नेता जीतने के बाद क्या कर रहा है ? और कौन नेता हारने के बाद किस षड्यंत्र में व्यस्त है ? वाकई उसने जिसे चुना है वह उसके हित में काम कर भी रहा है या नहीं ? इन बातों से आम आदमी का कोई लेना-देना ही नहीं है ।
आम आदमी की इसी कमजोरी का फायदा धनाढ्य , चालाक और सत्तासीन वर्ग उठाता है जिसके पास अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ या तो पुश्तैनी कृपा से है, अथवा अपने लंबे चौड़े रिमोट पर चलते कारोबार और धन से अर्जित बाहुबल की वजह से।
इसीलिए बड़े से बड़े विचारक और बड़े से बड़े योग्य व्यक्ति केवल धन के अभाव में अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में फंसे सब कुछ देखते हुए और सभी स्थितियों का आकलन करते हुए भी चुपचाप अपना काम करते रहते हैं । और बड़ी से बड़ी लड़ाई धन के अभाव में छोड़कर किनारे पर बैठ जाते हैं । और जब ऐसे व्यक्ति किनारे बैठ जाते हैं तब वही व्यक्ति आगे आते हैं जिनके पास विचार भले ना हो बस धन और बाहुबल की उपलब्धता होती है। ऐसे लोग धनबल के सहारे सत्ता में आने का प्रयास करते रहते हैं । फिर जो प्रयास करेगा उसी में से किसी ने किसी को कुछ मिल भी जाता है । अतः यह तो निश्चित हो गया की सत्ता और परिवर्तन लाने का अधिकार इस सिस्टम में केवल धनाढ्य, बाहुबली और घर से बिल्कुल बेफिक्र व्यक्ति को ही है।जब इस तरह के लोग सत्ता में आते हैं तब वह लोग सिटम में ज्यादा कुछ सकारात्मक बदलाव नहीं ला पाते हैं । क्योंकि वह धन से तो परिपूर्ण होते हैं तामसिक और विचार शून्य होते हैं। और इसी विचारशून्य तामसिक नेतृत्व की वजह की वजह से व्यवस्थाओं का पतन शुरू होता है।
खैर !!! में भी आज क्या लेकर बैठ गया सुबह सुबह।आप लोग सोच रहे होंगे कि आज और कुछ नहीं मिला लिखने को तो कुछ भी लेकर शुरू हो गया मैँ ।
लेकिन सच मानीये तो चुनाव कोई जीते या कोई हारे , सरकार चाहे किसी की भी बने ,आम आदमी के हिस्से तो आखिरकार यह सन्नाटा ही आना है
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