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February 7, 2018
नरेश राघानी
आखिर किस तरह के तुगलकी फरमान सरकार द्वारा निकाले जा रहे हैं इन दिनों ? पिछले कुछ दिनों में मैंने कम से कम आठ या दस बार एक प्रमुख शासन सचिव की चिट्ठी इंटरनेट के माध्यम से WhatsApp या Facebook पर देखी है।शायद एक बार अख़बार में भी पढ़ा था , कि सरकार द्वारा अधिकारियों को लिखकर यह हिदायत दी जा रही है कि आप को सरकार की नीति के खिलाफ सार्वजनिक रूप से कुछ भी नहीं बोलना है । मेरे ख्याल में जब से मैं चीजों को समझने लगा हूं तब से लेकर आज तक तो मैंने यह कभी भी होता हुआ नहीं देखा है । मतलब यदि सरकार कोई नीति बनाती है और उसे लागू करवाती है, अपने सरकारी तंत्र कि मदद से , तो सबसे पहले ही सरकार यह सब बातें अपने अधिकारियों को ही बताएगी और अधिकारियों में से किसी को यदि कोई व्यहवारिक समस्या लगती है उस नीति को लागू करने में कोई परेशानी आती है तो सरकार का यह दायित्व बनता है कि उसे यह बताएं कि आखिर उसे करना क्या है ? ताकि अधिकारियों को जनता से सामंजस्य बिठा कर लोगों को नई नीति समझा कर आम आदमी को कानून हजम भी करवाया जा सके। ताकि जनता के बीच कहीं यह संदेश न चला जाये कि सरकार तुगलकी मनमानी कर रही है। यह तो हुई समझदारी से लोकतंत्र चलाने वाली बात।
लेकिन जब सरकार , मौजूद सरकार जैसी हो जो कि विरोध सुनने की आदि ही नहीं है, और जरा सा भी विरोध करने वाले को सख्त सख्त अंजाम देने की बातें करने लगती है । कई बातें ध्यान देने योग्य हैं मौजूदा सरकारों को समझने के लिए जैसे।
चाहे वह सोशल मीडिया पर अपनी बात कहने वाला कोई नागरिक हो जो गलती से सरकारी नीति के विषय में अपनी किसी पीड़ा को गलती से लिख दे तो एक मत विशेष के लोग उसे इतनी गालियां लिखेंगे की वह अगली बार ऐसी हिमाकत नहीं करेगा। या फिर गौरी लंकेश जैसी कोई पत्रकार हो जिसकी हत्या पर वही सोशल मीडिया पर बैठे गुंडे उसे कुतिया जैसी गाली लिख देते हैं। या फिर एक राष्ट्रीय चैनल ही क्यों न हो जिस पर रवीश कुमार द्वारा रिपोर्टिंग पर ndtv जैसे चैनल पर मनघडंत आरोप लगा कर एक दिन के लिए बंद करने की सज़ा सुनाई जाती है और फिर वही फरमान वापस भी ले लिया जाता है। राजस्थान सरकार मीडिया के खिलाफ एक काला कानून लाने की कोशिश करती है और फिर दबाव महसूस करने पर वही कानून की फाइल प्रवर समिति को सौंप के ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है ।
कहने का मतलब है कि सैकड़ों ऐसे मौके आए हैं जिन मौकों पर देश की वर्तमान सरकारों ने लोकतंत्र की हत्या करने का प्रयास किया है । आम आदमी कितना दबाव में आ सकता है ? उसकी कितनी सहनशक्ति अभी बाकी है ? जैसे प्रश्नों का शायद यह सरकार उत्तर ढूढने का प्रयास कर रही है ।
सरकार द्वारा ऐसा ही एक और प्रायोग इन दिनों किया जा रहा है । अधिकारियों को लिखित में हिदायत दी जाती है यदि आप को सरकार की नीति पसंद नहीं है तो आप सरकार की आलोचना नहीं करेंगे और यदि आप इस तरह की आलोचना सार्वजनिक रूप से करेंगे तो आप पर सख्त से सख्त विभागीय कार्यवाही होगी। यह क्या आदेश हुआ भाई ?मतलब अब अपनी बात कहने पर भी कानून लागू है ? आखिर वह अधिकारी भी सबसे पहले भारत देश का नागरिक है और संविधान से प्राप्त शक्तियों के आधार पर वह जो महसूस करेगा वह बोलने की आज़ादी उसे हासिल है ।
मतलब विपक्ष तो चलिए सरकार के अनुसार है ही गलत लेकिन क्या यह मीडिया भी गलत है ? क्या सरकार के विरोध में अपने पुरस्कार लौटाने वाले कलाकार भी गलत थे ? और अब जब अधिकारी वर्ग को भी लगने लगा है कि सरकार की नीतियों में गलती है तो अधिकारी वर्ग को भी गलत के दायरे में खड़ा कर ब्लैकमेल करके नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है। यह सत्ता की निपट नंगी दादागिरी नहीं तो और क्या है ? ऐसी सरकार की शान में दो लाइन पढ़ देता हूँ।
जो उठेगा वही कलम होगा पहले
सर तो सर है यारों आते और जाते हैं
देश के प्रधान सेवक और उनकी पार्टी को यह समझना पड़ेगा कि आखिर यह देश सिर्फ और सिर्फ उनके द्वारा प्रचारित मतविशेष और कट्टरवादियों की जागीर नहीं है। इस देश में हर व्यक्ति को अपना मत , धर्म,आस्था, तकलीफ और अपना विचार प्रचारित करने का पूरा हक है , और संविधान के तहत लोकतांत्रिक शक्तियां प्राप्त हर नागरिक सबसे पहले एक भारतीय है उसके बाद कोई सरकारी अधिकारी या हिंदू या मुस्लिम वगैरा-वगैरा इसलिए सरकार बिल्कुल भी इस नशे में ना रहे कि वह कोई भी तुगलकी फरमान सुना देगी और इस देश की जनता उन्हें भगवान मानकर मुर्दों की तरह उनके पीछे पीछे चलने लगेगी। जनता यह सब बखूबी देख समझ रही है और वक़्त आने पर जनता माफ नहीं करेगी ....
जय श्री कृष्णा
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