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January 30, 2018
आ गया गणतंत्र दिवस कल चला जायेगा
ग़रीब सदा छला गया है सदा छला जाएगा
नरेश राघानी
कहने को तो सरकारी छुट्टी है। बच्चे स्कूल जा कर समोसा और लड्डू लेकर घर आ जाते हैं, नेता लोग सुबह जल्दी उठकर अपने अपने कार्यालय पर पहुंचकर झंडारोहण कर लेते हैं, अधिकारी और मंत्री पटेल मैदान चले जाते हैं। जो कहीं नहीं जाता वह बस अपने घर में TV को ऑन करके राजपथ की परेड देखकर गणतंत्र दिवस की इतिश्री कर लेता है। देखा जाए तो किस तरह के गणतंत्र में जी रहे हैं हम जिस गणतंत्र में उत्तर प्रदेश में सरेआम एक बुजुर्ग महिला को गोली मार दी जाती है, TV चैनल दिखाते हैं पब्लिक बहस होती है और फिर जय हिंद ।
जिस गणतंत्र में लोग मानव श्रृंखला बनाकर मतदान को प्रोत्साहित करने तो जरूर पहुंच जाते हैं लेकिनअखबारों में तस्वीरें छपने के बाद जब मतदान का प्रतिशत देखा जाता है तो वहीं 50 प्रतिशत ही रहता है। जिस गणतंत्र में आम आदमी सुबह उठकर चाय की प्याली के साथ अपनी पत्नी से कहता है कि देश का माहौल बहुत खराब हो गया और वही आम आदमी जब सड़क पर निकलता है तो किसी सड़क दुर्घटना से ग्रस्त इंसान को देख कर उसको छूता तक नहीं । मीडिया और टीवी चैनलों के मनमाने शोर के तले ऐसा गणतंत्र रोज अपना दम तोड़ता दिखाई देता है । जब किसी समाज के ठेकेदार वहां बैठकर बेजा बातों पर बहस करते हैं और हर व्यक्ति अपने हिसाब से इस आजादी और इस गणतंत्र परिभाषित करता हुआ दिखाई देता है । जिसका टारगेट सिर्फ अपने ही समुदाय विशेष के लोगों को खुश करना वह अपनी छवि भर सुधारने तक ही सीमित रहता है । कलेक्टर की चमचागिरी करके गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित होने वालों की तो जैसे भीड़ लग गई है, सम्मानित होना भी अपने आप में एक फैशन बन चुका है। यह सब देख कर तो बड़े स्वाभाविक तौर से किसी के भी मन में यह विचार आ जाएं कि यह तथाकथित गणतंत्र वह आजादी जो हर साल लोग मनाने पहुंच जाते हैं पटेल मैदान पर , उसे हासिल करने में भी क्या इस तरह का व्यवस्था वाद हावी रहा होगा ? जिस तरह का व्यवस्था वाद इन दिनों दिखाई देता है । स्थितियां भले आज जैसी भयावह ना रही हों परंतु अपने समय काल के अनुसार उस समय भी यह व्यवस्थाऐं की जाती होंगी । राजकीय कृपा पात्रों को सम्मानित करना और राज के खिलाफ लिखने वालों को पागल का बिल्ला शायद तब भी लगाया जाता होगा ?इतनी सब बातों के बीच भी अगर सही मायने में कोई गणतंत्र दिवस मना रहा है तो चंद निश्चल बच्चे जिनको आज सुबह मैंने देखा अनासागर के बाहर किराए की साइकिल लेकर उस पर झंडा लगा आनासागर झील का चक्कर लगा रहे थे। जिन्हें देखकर मुझे महसूस हुआ कि गणतंत्र दिवस भले ही आज भी आम लोगों का पर्व नहीं बन पाया है। परंतु फिर भी आने वाली पीढ़ी के निश्चल मन में एक स्वस्थ गणतंत्र आज भी जीवित है और यह तभी जीवित रह पाएगा जब हम आज इस का मायना और उसकी कदर सच्चे दिल से करेंगे। नहीं तो यह महज एक दिन है और शाम तक खत्म हो जाएगा ।
आप सभी को मेरी तरफ से गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
9829070307
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