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#मधुकर कहिन: मतदान आखिर क्यों करे कोई क्यों न बनें वोटर राइटस एक्ट

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January 30, 2018

मतदान आखिर क्यों करे कोई

क्यों न बनें वोटर राइटस एक्ट


नरेश राघानी 


 आप ने सैकड़ों लेख पढ़े होंगे इस बात पर। कई विचारक इस विषय पर अपने विचारों की वर्षा करते आये है । लेकिन फिर भी मेरे मन में कुछ ऐसा आया जो मैं आप लोगों के साथ साझा किए बिना नहीं रह सका । पहले तो मैंने समझा कि आप मुझे मंदबुद्धि न समझ ले ? वैसे भी आप अगर मुझे मंदबुद्धि समझ लेंगे तो भी कौन सा बहुत बड़ा परिवर्तन आ जाएगा व्यवस्था में ? या मुझे समझदार मान लेंगे तो ऐसी कौन सी क्रांति आ जायेगी ? तो मैं इस चीज को लेकर बिल्कुल ही निश्चित हूं कि मेरे पाठक मेरे बारे में क्या सोचेंगे ? कुछ ऐसा ही आलम है मतदान को लेकर लोगों की सोच में भी। कोई जीते कोई हारे हमें क्या ? कुछ ऐसी ही उदासीनता के शिकार लोग वोट डालने नहीं जाते।इसका क्या इलाज है ? आखिर कैसे बदलेगी सोच ? इसका उत्तर तो मुझे भी नहीं मालूम लेकिन एक विचार है जो शायद इस उदासीनता को खत्म कर सकता है ।


अब कहने को तो देखा जाए शब्द मतदान ही अपने आप में गलत है, इस का संधि विच्छेद करें तो दो शब्दों से बना है यह शब्द और मत यानी कि वोट और *दान* यानी दान। *वही दान जो  हम सकरात के रोज़ करते हैं हमारे बुजुर्गों की पुण्यतिथि पर करते हैं* । अब भाई दान तो दान है आपकी इच्छा है आप करें या ना करें !!!  इसमें कोई अनिवार्यता थोड़ी ना है .... और ऐसा भी नहीं है कि आप जिसको यह दान दे रहे हैं वह कृतज्ञ महसूस करने हेतु बाध्य है। या फिर आपके इस दान  का आप पारितोषिक चाहने के अधिकारी हैं। जब बात मतदान की आती है तो यह दान लेने दानपात्र उठाकर हर 5 साल बाद नेता लोग आपके दरवाजे पर आ जाते हैं और बड़े शरीफ होकर हाथ जोड़कर घुटनों के बल बैठ कर  मेरी माता जी , मेरी बहन जी , मेरे पिताजी , मेरे भैया जी, मेरे काका जी और न जाने कौनसे कौनसे  संबोधन करके आप से मत का दान मांगते हैं । अब यह बात और है कि वह इस बात को बखूबी समझते है की एक बार सामने वाले वोटर को पटा लो तो वह दान दे देगा और फिर खेल खत्म । उसके  बाद नेता बाध्य नहीं है उस दानदाता को पहचान ने के लिए भी। चाहे  चुनाव जीत जाने के बाद वोटर नेता के पास मिलने भी पहुंच जाएगा तो हमारा सिस्टम ने कुछ अजीब तरह की आजादी नेताओं को दे रखी है कि नेता दान मांग तो सकता हैं , दान ले भी सकता हैं परंतु जिस से दान लेता हैं उसका कभी खुदा ना खास्ता नेता में कोई काम पड़ जाए तो उस वक्त वही दानदाता वोटर अपने नेता को दिए हुए दान की याद दिलाना तो दूर , नेता के दफ्तर के दरवाज़े पर खड़ा खड़ा उसके अर्दलियों और चमचों के सामने बेइज़्ज़त होता हुआ खुद को दान और दया का पात्र महसूस करता है।

दरअसल दान देने वालों का महत्व सतयुग का किस्सा है अभी तो हम लोग प्रलय और घोर कलियुग के बीच चल रहे है , तो  दान शब्द को गंभीरता से फिलहाल कोई नहीं ले रहा है । तो नेता भी भला मत *दान* करने वालों को क्यों seriously लेगा भाई?

सो इन नेताओं को मत दान करने वाले दानदाताओं के प्रति कृतिज्ञता का भाव जगाने के लिए पहले तो इस दान शब्द का प्रयोग हटाना होगा। और नई व्यवस्था लागू करनी होगी जिसमें वोटर के अधिकार की रक्षा हेतु वोटर अधिकार कानून बनाया जाए जिसके तहत नेता भी चुनाव जीतने के बाद काम करने हेतु बाध्य हो।और यदि काम न कर सके तो वोटर को नेताओं के दफ्तर में अपना काम लेकर आते वक्त कम से कम सम्मान का अधिकार प्राप्त हो। कुछ अनिवार्यताएं चुने हुए जन प्रतिनिधि के जनता के प्रति आचरण पर भी लगाई जाएं , जिनके सुचारू रूप से पालन न करने पर जनप्रतिनिधियों पर भी एक धारा विशेष में वोटर से बदतमीज़ी को लेकर  शिकायत दर्ज की जा सके। जिसकी अनुपालना सख्ती से हो , और नेता पर इस धारा में जांच खुल जाने और निर्णय होने तक के काल के बीच विधान सभा या लोकसभा की सदस्यता से  प्राप्त शक्तियां तुरंत प्रभाव से जांच अवधि तक निलंबित कर दी जाएं। ताकि नेता भी अपने आप पर कुछ अंकुश और बाध्यता महसूस करें और चुनाव जीत जाने के पश्चात खुद को भगवान न समझ बैठे।

मेरे कई मित्र मेरी इस बात को पढ़कर मुझ पर हंसते होंगे उनको यह सुनने में अजीब भी लग रहा होगा , पर जरा सोच कर देखिए यदि यह हो जाएगा तो को काफी हद तक हमारे सिस्टम में पसरी गंदगी पूरी तरह साफ हो ना हो मगर उसमें सुधार जरूर आएगा। 


फिर भी फिलहाल जब तक ऐसी कोई व्यवस्था हमारे देश के किसी क्रांतिकारी नेता को या किसी बुद्धिजीवी को समझ में आये और वह व्यवस्था लागू की जाए तब तक तो भैया इसी सिस्टम में चलना पड़ेगा। तो  सुबह आप लोगों से करबद्ध निवेदन है कि कल मतदान केंद्र पर जाकर इन 5 साल में एक बार दान मांगने वालों में से किसी को भी दान जरूर कीजिएगा ताकि आपके दान का फल आपको चाहे मिले या न मिले परंतु आपके इस दान का पुण्य इस व्यवस्था को एक नया मोड़ जरूर दें।


 *और हां !!!*  मत दान शब्द के बिल्कुल खिलाफ हूं क्योंकि  दान में दी हुई चीज का  हम  पारितोषिक  नहीं चाह सकते हैं इसीलिए मतों के दानदाताओं के गौरव की रक्षा हेतु आप लोगों में से अगर किसी को मतदान की जगह दान शब्द हटाकर कोई और शब्द सूझता हो जिससे नेताओं को बाध्यता और  कृतिज्ञता का एहसास करवाया जा सके, तो आप मुझे अवश्य मेरे भ्रमणभाष (मोबाइल) पर संपर्क करके बताइएगा !!!! 

मुझे इंतेज़ार रहेगा आप के फ़ोन का।


जय श्री कृष्णा


नरेश राघानी

प्रधान संपादक

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