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#मधुकर कहिन: दोष केवल देवनानी का नहीं है भाई ... एक तस्वीर यह भी

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January 30, 2018

दोष केवल देवनानी का नहीं है भाई ... एक तस्वीर यह भी


नरेश राघानी


सुबह के सारे अखबार भरे पड़े  हैं शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं की झड़प वाली खबर से। जिसमें यह भी देखने को मिला कि कांग्रेस कार्यकर्ता मंत्री वासुदेव देवनानी के खिलाफ शिकायत लेकर थाने गए हैं वहीं सूत्रों के अनुसार  यह भी ज्ञात हुआ कि भाजपा कार्यकर्ता तुलसी सोनी ने भी अपनी लिखित शिकायत थाने में दी है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि देशभर में सैकड़ों चुनाव में ऐसी सैकड़ों घटनाएं घटित होती रहती हैं । कभी कोई किसी का गला पकड़ता है तो कभी कोई किसी को धक्का देता है। लेकिन यदि हर घटना में शामिल लोग जो कि निश्चित तौर पर सीधे सादे आम लोग तो होते नहीं हैं । सभी किसी न किसी राजनीतिक दल के मंझे हुए खिलाडी होते हैं। तो यदि हर घटना को लेकर यह मंझे हुए खिलाडी एक दूसरे की खोपड़ी मांझने थानों में चले जाएंगे तो हर चुनाव के बाद लगभग हर विधानसभा में सैंकड़ों ऐसे केस इस तरह से दर्ज होते हुए मिलेंगे । जो कि कहीं ना कहीं बेचारी पुलिस पर एक जिंदा नर्क भोगने जैसा होगा जिसमें पुलिस शासक और विरोधी पार्टी के बीच पिसती हुई नजर आएगी । आखिर पुलिस वाले भी इंसान है भाई उनके भी बीवी बच्चे हैं , उन पर रहम खाएं और इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो उसके लिए अपने आप पर संयम रखना सीखें राजनीतिक दलों के लोग। गलती किसकी है इस तरह की घटनाओं में इसका फैसला कहीं भी नहीं हो पाता है इसका फैसला तो बस प्रत्यक्षदर्शियों के मौखिक प्रचार और जनता की आंखों देखी जो दिखाई दिया है उससे इन राजनीतिक लोगों के चरित्र चित्रण हो जाने से ही हो जाता है। बात अगर कांग्रेसियों की मानी जाए तो वहां मौजूद कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का यह कहना कि देवनानी वहां आए क्यों ? और भारी-भरकम मीडिया के साथ खड़े होकर क्यों बयानबाजी करने लगे तो उसका जवाब तो यह है भाई ...  कि वासुदेव देवनानी उस बूथ विशेष की  वोटिंग लिस्ट में  बतौर वोटर शामिल है । वह अपना वोट डालने  आए थे , और स्वाभाविक बात है कि अगर एक मंत्री स्तर का व्यक्ति वोट डालने आएगा तो उसके साथ मीडिया कर्मी भी आएंगे । जो कि उसे वोट डालते वक्त कवरेज करना चाहेंगे। बावजूद उसके भी देवनानी मीडिया कर्मियों को अपने साथ बाहर दरवाजे तक ले गए और एक निश्चित दूरी के बाद ही मीडिया कर्मियों से बातचीत करने लगे । जिस पर दो कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने यह कह कर विरोध दर्ज किया कि आप यहां खड़े होकर यह बयान बाजी क्यों कर रहे हैं ? गौरतलब बात यह है कि वह 2 कार्यकर्ता उस बूथ विशेष के वोटर तक नहीं थे । हां कांग्रेस पार्टी द्वारा वह किसी संगठन के हिस्से में कहीं पदाधिकारी हो सकते हैं जो की कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे का अपना मामला है। देवनानी और कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़प के बाद जब दोनों कांग्रेस कार्यकर्ता वहां से चले गए और  देवनानी भी वहाँ से चले गए उसके ठीक 45 मिनट बाद जब  माहौल शांत हो चुका था उसके बाद कांग्रेस नेता डॉ गोपाल बाहेती उन दोनों कार्यकर्ताओं को वहाँ  फिर ले आए और मीडिया के सम्मुख बयानबाजी करने लगे। जबकि  कांग्रेस आलाकमान के निर्देशानुसार पिछले दिनों जो कुछ भी अखबारों में प्रकाशित होता रहा है उसके अंतर्गत किसी भी कांग्रेस कार्यकर्ता को अपना बूथ  छोड़कर किसी दूसरे बूथ पर घूमने प्रचार हेतु जाने पर रोक लगा दी गई थी। लेकिन बावजूद उसके जिसका नाम उस बूथ की वोटिंग लिस्ट में है ही नहीं उस व्यक्ति को उस बूथ पर न सिर्फ खड़े रहना बल्कि इस तरह से जनता के चुने हुए प्रतिनिधि के बूथ पर अपना वोट डालने हेतु आने पर इस तरह से माहौल बिगाड़ कर कांग्रेस की छवि को आम जनता के बीच बिगाड़ना गैर अनुशासनात्मक नहीं लगता है ? दूसरी बात जो की आम लोगों के ध्यान देने योग्य है वह यह है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता का 45 मिनट बाद उन दोनों कांग्रेसियों  को वहां फिर लाकर मीडिया के बीच बयानबाजी कर बात को और बड़ा चढ़ा कर प्रचारित करना क्या आम आदमी को समझ नहीं आता है ?  जो शोर शराबा किया जा रहा है वह महज़  राजनीतिक भावना से प्रेरित एवं प्रायोजित कार्यक्रम के सिवा और कुछ नहीं है । आप यदि किसी आम आदमी से भी अगर तू तड़ाका करके बात करेंगे तो वह भी आपके विरोध में अपना आपा खो सकता है । तो वासुदेव देवनानी तो इस प्रदेश के शिक्षा मंत्री होने से पहले एक इंसान ही तो हैं भाई वह क्यों किसी ऐसे व्यक्ति की गलत भाषा सुनने के लिए बाध्य हैं ? वह भी उस व्यक्ति के मुंह से जो कि खुद उस बूथ का वोटर ना होने के बावजूद भी वहां खड़ा होकर अपनी पार्टी का बिल्ला लगाकर खुद कानून तोड़ रहा हो और चुनाव दौरान वर्जित परिसर में  अंदर घूमकर नेतागिरी चमकाने का प्रयास कर रहा हो । यदि दोष देवनानी का है तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं का भी कम दोष नहीं है । अतः अब प्रशासन और जनता का इस मुद्दे को लेकर और समय बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए।


एक बड़ी तस्वीर के हिसाब से दोनों राजनीतिक दलों के लोगों को यह सोचना चाहिए कि वह जो व्यवहार करते हैं एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए , यह सब सिर्फ उन लोगों के आपस के मान अपमान तक सीमित नहीं रहता है। अपितु यह सारे दृश्य देखने वाली जनता इन राजनेताओं के बारे में क्या सोचती है? यह ज्यादा महत्व रखता है । अपनी छवि बचाए रखना ही एक राजनेता का सबसे बड़ा गुण है , एक दूसरे को नीचा दिखाने के होड़ में नेता यह भूल जाते हैं कि जनता की आंखें बंद नहीं है । जनता वही देखती और सोचती है जो जनता का विवेक उन्हें दिखता है। साथ-साथ यह भी सोचने की आवश्यकता है कि बेचारी पुलिस का क्या दोष है इसमें जिसे जबरदस्ती इस तरह की घटनाओं में जिनका कोई अंत नहीं है , मोहर बना कर खड़ा कर दिया जाता है जिसके बीच पुलिस पीसता हुआ महसूस करती है।

 कोई घटना घटित हुई वह घटना दिखाना मीडिया कर्मियों का तो कर्तव्य बन ही जाता है। परंतु इन बेवजह की घटनाओं को हो जाने के बाद चित्रण करते ही रहने से सिस्टम पर पड़ने वाले भोज का भी ख्याल मीडिया को ही रखना पड़ेगा क्योंकि इस सिस्टम का वैसे भी ख्याल अब न राजनेता रखते है न ही अधिकारी सब बस अपनी अपनी विवशताओं से घिरे हुए मजबूर दिखाई देते है। सिवाय मीडियाकर्मियों के अलमस्त जमात के किसी और कि क्या हिम्मत की इस सिस्टम का ख्याल रखे। इस लेख के माध्यम से किसी की भी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मंतव्य नहीं रखता हूं । परंतु इस प्रकार की घटनाओं से आम जनमानस का न  सिर्फ राजनीतिक दलों से निर्वाचित नेताओं या विपक्ष में बैठे पार्टी के कार्यकर्ताओं से अपितु लोकतंत्र से भी भरोसा उठता हुआ नजर आता है । जिसका दुख सिर्फ मुझे ही नहीं इस देश के हर वोटर वह आम नागरिक को भी होना चाहिए।


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