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January 23, 2018
संजय लीला भंसाली द्वारा निर्मित फिल्म पद्मावत की रिलीज से पहले सिनेमा व्यवसाइयों में जो दहशत का आलम है उस आलम का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जयपुर में बैठी फ़िल्म वितरक कंपनियों तक ने लिखित में यह स्पष्टी करण देते हुए कहा है कि उन्होंने फिल्म राजस्थान की डिस्ट्रीब्यूशन के लिए नहीं खरीदी है । साथ ही शहर के प्रमुख सिनेमा घरों के बाहर जितने भी मुख्य काउंटर हैं उन मुख्य काउंटरों पर सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी गई है। पंचशील स्थित आईनॉक्स मॉल एवं सिनेमाघर के मुख्य बुकिंग काउंटर जो मॉल के बाहर स्थित था उस काउंटर को बंद कर दिया गया है। जबकि फिल्म की रिलीज डेट अभी 2 दिन दूर है यह लोकतंत्र का मखौल नहीं तो और क्या है ? कि देश के सर्वोच्च न्यायालय की अनुशंसा के बावजूद भी किसी फिल्म का प्रदर्शन उसमें काट छांट करने के बाद यदि किया जा रहा है , तो भी एक अज्ञात सी दहशत क्यों लोगों के मन में सवार है? सन 1995 के दौर में महारानी पद्मावती के इतिहास पर दूरदर्शन में एक सीरीज चलाई गई थी।जो कि देश के प्रथम प्रदानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की किताब भारत एक खोज के अध्यायों को फिल्मांकन कर के चलाई गई थी। जिसमें भी बिलकुल वही सब कुछ फिल्म आया और दर्शाया गया था जो संजय लीला भंसाली ने इस फिल्म में दर्शाने का प्रयास किया है। और तब भंसाली उसी फिमंकन कर रही टीम में शामिल थे, और टीम के लीड निर्देशक श्याम बेनेगल थे। तब जब उस सीरीज़ का प्रदर्शन दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय चैनल पर होते हुए भी विरोध नहीं हुआ तो आज आखिर इस देश की फिजा में ऐसा कौन सा जहर घुल गया है ? जो इस फिल्म का विरोध प्रदर्शन करने वालों के सिर चढ़ कर बोल रहा है ।अब तो यह लगने लगा है कि फिल्म पद्मावती का विरोध केवल विरोध करने के लिए ही किया जा रहा है, जबकि यह फिल्म लोकतांत्रिक व्यवस्था के हर पायदान को पार करती हुई कांट-छांट के बाद प्रदर्शन हेतु जनता के बीच लगभग आ चुकी है । ऐसे वक्त यह दहशत का माहौल फैलाना क्या ठीक है ?
राजस्थान सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपील याचिका दायर कर यह साबित कर दिया है की सरकार खुद भी इसके प्रदर्शन के पक्ष में नहीं है। कोर्ट के यह अपील खारिज कर देने के बावजूद यदि सरकार यह उपद्रव रोकने में सक्रिय भूमिका नहीं निभाती है तो इस तोड़फोड़ में और उपद्रव में सरकार की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ जाएगी। केवल सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपील याचिका भर दायर कर देने से सरकार की जिम्मेदारी पूरी नहीं होती यदि सुप्रीम कोर्ट ने वह याचिका रद्द कर दी है तो अब सरकार का पूरी तरह से फर्ज बनता है कि उन सिनेमा मालिकों को सुरक्षा मुहैया कराए और किसी भी तरह के उपद्रव को सख्ती से निपट और इससे होने वाले संभावित नुकसान की जिम्मेदारी भी उठाएं अन्यथा, इस से सरकार का जो संदेश आम जनमानस में जाएगा उस संदेश का दुष्परिणाम भी भुगतने को यह सरकार तैयार रहें । क्योंकि जनता माफ नहीं करेगी ...
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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