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June 22, 2017
इसे अजमेर के लोगों का दुर्भागय ही कहेंगे। राजस्थान सरकार में अजमेर से दो विधायक मंत्री हैं। लोकसभा और राज्य सभा में सांसद भी अजमेर से है। इन सबके बावजूद शहर के कई हिस्सों के लोग पानी को तरस रहे हैं। इसे राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी या फिर जनता के प्रति संवेदनहीनता नहीं तो और क्या कहेंगे।
शहर के कई हिस्सों में पिछले तीन दिनों से पानी की सामान्य सप्लाई नहीं हो रही है। लोगों को निजी स्तर पर पानी के टेंकर मंगवाकर अपनी जेब ढीली करनी पड़ रही है। पानी टेंकरों की मनमानी भी लोगों को भारी पड़ रही है। जलदाय विभाग पूरी तरह नाकाम सा साबित हो रहा है।
बीसलपुर के होते हुए देखने पड़ रहे हैं ऐसे दिन
बीसलपुर बांध से जब अजमेर को जोड़ा गया था तो शहरवासियों को लगा था कि पानी नियमित होने का उनका सपना सच हो गया है। सरकार कांग्रेस थी, लेकिन पानी वहीं तीन चार दिन के अंतराल पर आता था। जब भी बीजेपी विपक्ष में होती। पानी उसका बड़ा मुद्दा होता। भाजपा नेता कभी कलेक्ट्रेट तो कभी जलदाय विभाग के बाहर पानी के मटके फोडक़र प्रदर्शन करते नजर आते। 24 घंटें में पानी की मांग को लेकर शहरवासियों ने भाजपा और कांगेस दोनों पार्टियों के कई बड़े आंदोलन देखे। लेकिन वो आंदोलन अब छलावे से लगते हैं।
सत्ता की दहलीज पर पहुंचने के बाद जैसे जनता की समस्या तो कोई समस्या रह ही नहीं जाती है। पिछले तीन दिनों से अजमेर उत्तर और दक्षिण विधानसभा के कई इलाके पानी की समस्या से जूझ रहे है। दोनों मंत्री शिविर और उद्घाटनों के कार्यक्रमों में किरदार अदा कर रहे हैं। वहीं लोग पानी की प्यास लिए उन्हें कोस रहे हैं।
कांग्रेस की खामोशी भी हैरान करने वाली
बिजली निजीकरण पर कई दिनों तक शोर मचाने वाली कांग्रेस भी पानी के मुद्दे पर खामोशी थामे हुए है। राजनीति करने और जनता से जुडऩे का कांग्रेस का पास बड़ा मौका है। लेकिन किसान आंदोलन के समर्थन में एक दिन धरने पर बैठकर कांग्रेसी नेता मानों जनता की सारी समस्याओं के प्रति संवदेना जता चुके हैं।
विधायक और मंत्री वासुदेव देवनानी और अनिता भदेल ने शहर के लोगों से 24 घंटे में एक बार पानी दिलाने का वादा किया था। लोग सवाल उठा रहे हैं। आखिर उस वादे का हुआ क्या। क्या वो केवल राजनैतिक वादा था। अगर नहीं, तो फिर हर 24 घंटें में पानी क्यूं नहीं मिल रहा है। क्या मंत्रियों का जलदाय विभाग के महकमें पर कोई नियनत्रण नहीं है। क्या शट डाउन ऐसा रोग हो चुका है जो हमेशा किसी न किसी कारण बना रहेगा।
फिर सवाल जयपुर का भी है। जयपुर को पानी देने के लिए हमसे बड़ी पाइप लाइन है। बड़े लोगों के लिए बड़ी पाइप लाइन। जयपुर को पानी मिले। इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन अजमेर के हक को मारकर पानी दिया जाए। यह जनता कैसे स्वीकार करेगी। शहर का राजनैतिक नेतृत्व कुशल और चतुर हो सकता है लेकिन ऐसी कुशलता और चतुरता किस काम की जिसमें कमजोरी नीहित हो।
जब सरकार सो रही हो तो विपक्ष की जिम्मेदारी है कि वो जनता की आवाज बने। लेकिन जब विपक्ष ही खामोशी थाम ले तो फिर जनता क्या करे। सवाल बड़ा है तो जवाब भी बड़ा होना चाहिए। ऐसे नेताओं को घेरा जाना चाहिए। जन क्रांति होनी चाहिए। जन आंदोलन होना चाहिए। किसी खामोशी के साथ या फिर पूरे आक्रोश के साथ। जो जनप्रतिनिधी जनता को अपनी जेब के वोट मात्र समझते हैं, उन्हें अहसास दिलाया जाना चाहिए कि चुनाव ज्यादा दूर नहीं है।
ठीक से समझ लें जन प्रतिनिधि, अब ये वो बीस साल पुरानी जनता नहीं जो हर बात से महरूम होती थी। अब ये जनता डिजिटल युग की मतदाता हो चुकी है। जिसके पास हर पल की जानकारी है। जो जानती है और समझती है कि उसके द्वारा चुने हुए नेता, उसकी कितनी समस्यों के प्रति गंभीर और संवेदनशील है। डिजिटल युग की यह जनता पानी के लिए चुनाव से पहले भी मतदान करने की ताकत रखती है।
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