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#मधुकर कहिन: कैसे रुके हाईवे पर मौत का तांडव

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June 7, 2017

इन दिनों जिस तरफ देखो सभी ओर से हाईवे पर दुर्घटनाओं की जैसे बाड़ सी आ गयी है |सारे सोशल मीडिया पर चाहे वह फेसबुक हो या वाट्स अप्प या रोज़ सुबह आने वाला अखबार , हर रोज़  औसतन दो या चार ख़बरें पढ़ने को मिल जाती है की भीषण सड़क दुर्घटना में लोगों की तत्काल मृत्यु हो गयी | अब यह घटनाएं चाहे कहीं की भी हो या चाहे कितने भी लोग काल का ग्रास बन गए हो इन सभी दुर्घटनाओं में एक चीज़ सामान है और वह है भारी वाहन जैसे ट्रक ,ट्रोला ,डम्पर इत्यादि |

अक्सर इन दुर्घटनाओं में टक्कर किसी भारी वाहनऔर किसी छोटी गाडी में होती है |स्वाभाविक बात है की जब ऐसी टक्कर होती है तो जान से हाथ छोटी गाडी वाले को ही धोना पड़ता है |बड़ी और भरी हुई गाड़ियों के बहुत कम नुक्सान होता है जिसमें जान का नुक्सान तो मात्र  पांच प्रतिशत ही होता है

आप भी यह सोच रहे होंगे  की मैं आज यह क्या बात लेकर बैठ गया तो मैं यह बता दूँ की जानकारी के अनुसार पिछले 7 दिनों में तकरीबन इसी तरह से तेरह अकाल मौतें तो केवल उँगलियों पर ही गिनी जा सकती है यानि की औसतन रोज़ की दो मौतें | 

इसे यूँ तो कहने वाला बस  "अनहोनी को कौन टाल सकता है भाई "  कह कर भी इति श्री कर सकता है परन्तु , अनहोनी केवल इतनी सी नहीं है की यह सब न जाने कितने सालों से यूँ ही चल रहा है बिना रुके | अनहोनी तो यह भी है की हमारे देश की लचर कानून व्यवस्था में हाईवे पर दौड़ रहे वाहनों में की जाने वाली लापरवाही के विरुद्ध कड़े नीयम कायदे नहीं बने हुए है ,या फिर बने हुए भी है तो इनकी पालना सही रूप से करवाने में हमारा प्रशासनिक ढांचा पूरी तरह से फेल हो रहा है | कारण साफ़ है की जो प्रशासनिक व्यवस्था शहर के बीच बैठ कर बड़ी शिद्दत से वाहन चालकों को नीयम कायद का पाठ पढ़ाती है वही प्रशासनिक व्यवस्था हाईवे पर आकर जंगलराज का शिकार हो जाती है | स्वाभाविक बात है साहब शहर की हद ख़तम हो जाने पर जंगल शुरू हो जाता है और उस जंगल में सभी नीयम कायदे ताक पर रख जिसे जो समझ आता है वह वही करता है |

आइये आप को इस जंगल राज का कड़क उदाहरण बताते हैं | कुछ रोज़ पहले हाईवे पर ओवरलोडिंग माफिया ने अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहे आरटीओ अधिकारी की पिटाई करने की कोशिश की ,यह बात साफ़ दर्शाती है की पैसे और ताक़त के नशे में चूर यह ओवरलोडिंग और अवैध खनन माफिया सिस्टम और व्यवस्था का कितना खुल कर मखौल उड़ा रहा है |जानकारी के अनुसार आरटीओ के पास इस तरह की स्थिति से निपटने हेतु कोई भी माकूल इंतज़ाम मौके पर नहीं होता है जो की अपने आप में विभाग की बहुत बड़ी कमी दिखाई देता है |

यह माफिया भी दरअसल इसी प्रशासनिक तंत्र की पदाईश है जिसके चलते कुछ प्रशासनिक अधिकारी इन माफियाओं से मिलकर धन के लालच में अवैध खनन और ओवरलोडिंग को बढावा देते हैं और जब यह माफिया इस तरह से कमाए हुए धन से भरपूर हो जाते हैं तो अपना मौत का तांडव हाईवे पर शुरू कर देते हैं |सैकड़ों ओवरलोडेड गाड़ियाँ वाहन कर की चोरी कर सरकार को चुना लगाती है और अवैध खनन में लिप्त हो कर खनन विभाग भी इन माफियाओं की ताक़त बढ़ता है |व्यवस्था में समाये भ्रष्टाचार की वजह से इस समस्या से निजात पाना लगभग असंभव सा नज़र आने लगा है |

यदि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय व्यवस्थित रूप से इस समस्या पर गंभीर प्रसंज्ञान ले तो इस समस्या का हल निकाला जा सकता है और सैकड़ो जानें बचाई जा सकती हैं | पाया गया है की अधिकाँश भारी वाहन चलाने वाले वाहन चालको के पास या तो ड्राइविंग लाईसेंस नहीं होता या फिर गाड़ी मदिरा का सेवन कर के चलाते हैं और जब कोई दुर्घटना हो जाती है तो अक्सर गाडी चालक वहीँ गाडी छोड़ कर फरार हो जाता है |जब पुलिस मौके पर पहुँच कर अपनी कार्यवाही करती है तो गाडी मालिक पहुँच कर एक लाईसेंस धारी वाहन चालक को पेश कर देता है और न्यायालय से गाडी छोड़ दी जाती है |

यदि सरकार हर टोल नाके पर मुस्तैदी से सिस्टम में एंट्री कर वाहन चालक से लाईसेंस मांग कर चालक से मिलान करे , गाडी में कितना वज़न है इस की ऑनलाइन सिस्टम में एंट्री हो ,  चालक कि एल्कोहोल टेस्टिंग मशीन से जांच कर के आगे जाने दे ,और इन सब तथ्यों का सत्यापन टोल दर टोल होता रहे तो यह सबकुछ ऑनलाइन आ जायेगा |

फिर  शायद नशे में वाहन चलाने की प्रवृति, ओवरलोडिंग से कर चोरी और भारी दुर्घटनाओं के मामले में वाहन चालक का बच कर निकल जाना आसान नहीं होगा | जिससे सैकड़ों जानें बचाई जा सकती हैं |

सब कुछ संभव है बस चाहिए थोड़ी सी इच्छाशक्ति और यह सोच की चाहे कितना भी अँधेरा व्याप्त हो परन्तु इच्छाशक्ति और सच्चाई का एक दिया ही बहुत होता है घने अन्धकार को रौशन करने के लिए |अंत में दो पंक्तियों पर ही बात ख़त्म करना चाहूँगा –

माना अन्धेरा बहुत घना है
पर दिया जलाना कहाँ मना है ...

जय श्री कृष्णा


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