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March 9, 2021
चयनित व्यख्याताओं की नियुक्ति के लिए धरना संवेदनशील मोड़ पर
महिला दिवस पर महिला शिक्षिकाओं ने रो रो कर मांगी भीख,युवकों ने सड़कों पर लेट कर किया प्रदर्शन
सरकार नहीं चेती तो चारों मध्यावधि चुनावों के परिणाम पड़ सकते हैं ख़तरे में
पुलिस बेरहम नहीं होगी ,सिर्फ़ भाषा का संयम रखें वक्ता
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
नियुक्ति पाने के लिए अजमेर में आंदोलनरत शिक्षकों के हालात बहुत ख़राब हो चुके हैं। आंदोलनकारी आर पी एस सी के सामने पिछले 14 दिनों से धरना दिए बैठे हैं ।महिला दिवस पर महिला कल्याण की बात करने वाली अशोक गहलोत सरकार ने कई आसमानी घोषणाएं कीं , लेकिन व्यवहारिक सच यह भी है कि अजमेर में आंदोलनकारी महिलाओं ने महिला दिवस पर भीख मांगी। शर्म की बात है कि जिन शिक्षकों को सरकार सलेक्ट कर चुकी है उन्हें नियुक्ति नहीं दी जा रही। ऐसी सरकार को डूब मरना चाहिए जो 3 साल से पीड़ित स्कूल व्याख्याताओं को नियुक्ति नहीं दे पा रही ।
युवाओं को रोज़गार के अवसर देने का नारा लगाने वाली सरकार आख़िर क्यों भूल रही है कि इन व्याख्याताओं को उनकी सरकार ने 3 साल से दाने दाने के लिए मोहताज़ कर रखा है।
न केवल शिक्षा कर्मी महिलाओं ने बल्कि चिकित्सा कर्मी महिलाओं ने भी कल काली पट्टी बांध कर प्रदर्शन किया ।
महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों में राजस्थान देश की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है। ऐसे में अब गहलोत सरकार को अपने वजूद का भविष्य समय रहते ढूंढ लेना चाहिए। आने वाले दिनों में जहां मध्यावधि चुनाव होने वाले हैं वहां ये चयनित शिक्षक नियुक्ति न होने से अपने रोष का इज़हार कैसे करेंगे यह सरकार को सोच लेना चाहिए।
चुनावों से पहले यदि इन बेरोज़गार व्याख्याताओं को नियुक्ति नहीं दी गई तो तय माना जाएगा कि चार में से एक भी सीट कांग्रेस के खाते में नहीं जाएगी ।
आर पी एस सी के सामने धरना दे रहे शिक्षकों की कहानी बड़ी दर्दनाक हो चुकी है। आर पी एस सी ने 2018 में जिन को चयनित कर लिया था , 3 साल बाद भी नियुक्ति न देकर उन्हें बेरोज़गारों की श्रेणी में खड़ा कर रखा है ।युवाओं के 3 साल बर्बाद करना कोई मामूली बात नहीं। ज़रा सोचिए उनके पारिवारिक दर्द के बारे में ,उनकी मानसिक कुंठाओं के बारे में। महसूस कीजिए कि वे किन दम घोटू हालातों में अपने माता पिता के सीने पर अभी मूंग दल रहे होंगे।
बेरोज़गारी का दुख कितना दर्दनाक होता है, कैसे बेरोज़गार समाज में निराश होकर अपनी जिंदगी का बोझ ढो रहे होते हैं ,इसे अशोक गहलोत को अब तक समझ जाना चाहिए था ।अपने आप को गांधीवादी नेता कहलाने का शौक़ रखने वाले गहलोत को तुरंत इन शिक्षकों को नियुक्ति देकर अपने सच्चे गांधीवादी होने का परिचय देना चाहिए।
राजस्थान के कोने-कोने से धरनार्थी अजमेर में धरना दिए बैठे हैं। इनमें महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा है ।वे कैसे अपने शहरों से अजमेर आ कर धरना दे रही होंगी समझा जा सकता है ।
महिला दिवस पर रोती हुई शिक्षिकाओं ने जो कहा उनके वीडियो देखकर लगता है कि उनके साथ हो रही नाइंसाफ़ी अब हद से गुज़र चुकी है ।धरनार्थी कभी मुर्गा बन कर अपने दर्द की अभिव्यक्ति कर रहे हैं कभी आर पी एस सी की शव यात्रा निकालकर ! तो कभी सड़कों पर लेट कर भीख मांगते हुए ! प्रजातंत्र में ऐसी घटनाएं शर्मनाक ही कही जा सकती हैं ।हाँ चुल्लू भर पानी में डूबने वाली घटनाएं ही हैं ये।
नव चयनित व्याख्याताओं का कहना है कि 1 महीने पूर्व बीकानेर निदेशालय में काउंसिलिंग करवा कर स्कूल तक आवंटित कर दिए गए थे लेकिन फिर भी अभी तक नियुक्ति नहीं दी गई। इस नाइंसाफी के विरोध में अब नियुक्ति नहीं तो वोट नहीं अभियान की शुरुआत कर दी गई है।
राजस्थान एकीकृत महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष उपेन यादव ने राजसमंद से की इस घोषणा के बाद अब सुजानगढ़ में 10 मार्च को बेरोज़गारों की रैली निकाली जाने की घोषणा की है।
राजस्थान में बेरोज़गार युवाओं की संख्या लाखों में है ।यह चिंगारी आग बन गई तो गहलोत सरकार को इसकी कीमत किस रूप में चुकानी पड़ेगी यह उन्हें अभी से जान लेना चाहिए।
कल बहुत से फोन और वीडियो क्लिप्स मीडिया के साथियों को आर पी एस सी के बाहर से भेजे गए। चयनित व्याख्याताओं की शिकायत थी कि उन्हें पुलिस द्वारा परेशान किया जा रहा है ।उन पर धरना उठाने का दबाव बनाया जा रहा है।
मुझे नहीं लगता कि अजमेर की पुलिस इतनी बेरहमी से कभी पेश आ सकती है। पुलिस अधिकारी और पुलिस विभाग जानता है कि व्याख्याताओं को धरना देने का शौक नहीं।वे समाज में शर्मनाक और दर्दनाक हालातों का सामना कर रहे हैं। पुलिस कर्मियों के परिवार में भी निश्चित रूप से बेरोजगार संताने होंगी। वे भी जानते होंगे कि उनकी संतानें किन हालातों में भटक रही हैं। ऐसे में मुझे नहीं लगता अजमेर जिले का कोई पुलिस अधिकारी उन पर बेरहमी करेगा। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। सरकार लंबे आंदोलनों को उठाने के लिए पुलिस पर दबाव बनाती है और पुलिस विभाग को भी उनकी पालना में कार्यवाही का नाटक करना पड़ता है ,मगर इस नाटक से आंदोलनकारियों को डरना नहीं चाहिए।
अजमेर पुलिस जानती है कि धरने की इजाज़त ले ली गई थी। धरना शांतिपूर्वक चल रहा है। धरने में कोरोना की गाईड़ लाइन का पालन किया जा रहा है ।धरने में अवांछित लोग भाग नहीं ले रहे। धरना ग़लत नेताओं के हाथ में नहीं। धरने में सभी राजनीतिक विचारधाराओं को मानने वाले शिक्षक हैं। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का हक़ उन्हें संविधान में दिया हुआ है। ऐसे में लगता नहीं कि पुलिस किसी भी प्रकार का बल प्रयोग करेगी।
यदि फिर भी पुलिस बल प्रयोग करती है तो यह गहलोत सरकार के लिए कफ़न में आख़री कील का काम करेगी ।
किसान आंदोलन का समर्थन करने वाली सरकार यदि शिक्षकों के मामूली से धरने पर उग्र होती है तो इसे मैं निर्दयता और बर्बरता ही कहूंगा।
अंत में धरना दे रहे शिक्षक भाईयों और बहनों से मेरा यही आग्रह है कि वे संयम न खोएं। पुलिस के प्रति अपने भाषणों में अप्रिय भाषा का प्रयोग ना करें ।मानकर चलें कि उन पर किसी प्रकार का बल प्रयोग नहीं होगा , मगर यदि आप लोगों ने संयम खोया तो .......
ख़ैर यहां आपको बता दूं कि सरकार शीघ्र ही आपके मांगों पर विचार करके निर्णय लेने वाली है। आपकी मांगे जायज़ हैं और सरकार उन पर कार्रवाई करने का मानस बना चुकी है। मैं आपके सुखद व उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।
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