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September 22, 2018
मधुकर कहिन
मचा क्यों चारों तरफ ग़दर यारों
क्यों लग रही शहर को नज़र यारों
नरेश राघानी
आज कल हर तरफ बड़ा शोर शराबा है । ऐसा शोर और हुल्लड़ इतने सालों में तो कभी देखा नहीं एक साथ होते हुए। अब क्या पता भाई !!! कम से कम जब से मैंने समझना शुरू किया है दुनियावी बातों को तब से तो नहीं।अब तक ऐसा केवल एक बार ही देखा है जब लगभग 20 साल पहले अजमेर में माहौल खराब हो गया था। चैन और अमन की मिसाल अजमेर जो कि अपनी गंगा जमुनई संस्कृति के लिए जाना जाता है , कुछ घंटों के लिए बहक गया था।
लेकिन तब भी ऐसा अजीब सा माहौल नहीं था जैसा कि पिछले 72 घंटों में बना है । पहले क्रिश्चियन गंज में दो समुदाय के लोगों के बीच मारपीट फिर रात दौराई में झगड़ा और हुल्लड़, अभी सांस ही ली थी कि पुलिस लाइन में एक मंदिर की प्रतिमाएं खंडित । आज सुबह अखबार पढ़ते ही देखा कि सरवाड़ में तनाव । आखिर हो क्या रहा है ये सब ? और क्यों हो रहा है ? क्या एका एक अजमेर के गृह नक्षत्र बदल रहे हैं या फिर ये सब एक प्रायोजित कार्यक्रम है।
अब एक घटना हो तो मान लें कि भाई हो जाता है , दूसरी फिर तीसरी सुबह चौथी। मतलब हद्द हो गयी ये तो। आखिर इस शहर का खुफिया प्रशासनिक तंत्र कर क्या रहा है ? क्या उन्हें दिखाई नही देता ये सब ? मुझे पुराने गीत की एक पंक्ति याद आती है जो कि फ़िल्म एक्टर प्राण पर फिल्माया गया था। "हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है "
खैर बोलना तो पड़ेगा ही क्योंकि यहां बोलना बहुत ज़रूरी है। और वो यूँ की आखिर ऐसे माहौल में संघ प्रमुख मोहन भागवत जैसे ज़िम्मेदार व्यक्ति को ऐसी क्या पड़ी है कि वो नागौर आकर 5 दिन के लिए बैठ जाएं जो कि अजमेर के इतना करीब है। क्या उन्हें अपनी बदलती हुई धर्मनिरपेक्ष छवि को सुधारने के लिए अजमेर नहीं आना चाहिए ? ताकि अजमेर में पनप रहे इस माहौल पर वो अपनी प्रतिक्रिया दें । और क्या खुफिया तंत्र को अपने अंदर की सर्च लाइट नागौर की तरफ नहीं घुमानी चाहिए ? खैर !!! बात अजमेर की है तो सबसे पहले अजमेर हित में ही सोचूंगा । क्या करूँ फितरत से मजबूर हूँ।
दिल से कह रहा हूँ इसलिए दिल पर लगी तो ज़रूर होगी । सो करबद्ध क्षमा।
जय श्री कृष्णा
नरेश राघानी
प्रधान संपादक
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