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#मधुकर कहिन: मित्तल अस्पताल के डॉक्टर विनोद शर्मा की उपेक्षा की वजह से गई एक डॉक्टर के परिजन की जान* *डॉक्टर दीपक अग्रवाल ने ब्लॉग लिख कर जाहिर की आप बीती*

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May 30, 2018

डॉ दीपक अग्रवाल नया बाजार अजमेर के निवासी हैं। कल उन्होंने वॉट्सएप्प पर एक ऐसी बात लिखी जो पढ़कर मैं बहुत व्यथित हुआ, और *मैंने महसूस किया आम आदमी के साथ तो डॉक्टर जो कुछ भी करते होंगे सो करते होंगे लेकिन एक डॉक्टर अपने ही सहयोगी के साथ इस तरह का उपेक्षित व्यवहार कैसे कर सकता है ?* जब की बात उस डॉक्टर के अपने परिजन की हो। घटनाक्रम के दौरान डॉक्टर दीपक अग्रवाल की मामी को कुछ दिन पूर्व मित्तल अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। *क्योंकि मित्तल अस्पताल अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन देकर अक्सर यह प्रचारित करता है कि उसके पास हर तरह की आधुनिक सुविधा उपलब्ध है, और लगभग हर गंभीर रोग के लिए चिकित्सक उपलब्ध है । स्वाभाविक बात है की इस  मार्केटिंग के जाल में फंसकर सैकड़ों शहरवासी मित्तल अस्पताल उपचार के लिए जाते हैं । जहां पर बड़े-बड़े पोस्टर लगे हुए हैं और चिकित्सकों की तस्वीरें भी । जिनमें से अधिकांश चिकित्सक केवल 2 दिन ही उपलब्ध होते हैं। जबकि नियमानुसार इमरजेंसी नेचर की बीमारियों के लिए सदैव डॉक्टर उपलब्ध होना अनिवार्य है* । यहां न्यूरो सर्जरी जैसी गंभीर चिकित्सकीय विधा की बात हो रही है। जिसके चलते मित्तल *अस्पताल ने जयपुर के डॉक्टर विनोद शर्मा को अपने साथ संलग्न कर रखा है। जो की अधिकांश उपलब्ध नहीं होते हैं और जिनकी बस केवल नाम मात्र संलग्नता है* । परंतु *मित्तल अस्पताल न्यूरो सर्जरी के नाम पर बिना यह सोचे कि वह समय पर डॉक्टर उपलब्ध करवा भी पाएगा या नहीं ? मरीज भर्ती कर देता है और बस ऑक्सीजन और वेंटिलेटर पर रखकर पैसों की वसूली करता है* । और कुछ समय बीत जाने के बाद कह देता हैं की अन्य कहीं ले जाइए । कुछ ऐसा ही  हुआ डॉक्टर दीपक अग्रवाल की मामी के साथ। उन्हें भर्ती तो किया गया परंतु डॉ विनोद शर्मा से संपर्क साधने पर *डॉ विनोद शर्मा* ने फ़ोन पर ही दो टूक जवाब दे दिया की - *क्या आपको मालूम नहीं है कि मैं उपलब्ध नहीं रहता हूं यहां पर फिर आपने भर्ती क्यों कराया अपने परिजन को ?* अंततः डॉक्टर अग्रवाल ने एक अन्य अस्पताल में अपनी मामी को पुनः भर्ती करवाया जहां पर दौराने जांच ज्ञात हुआ कि जिस समय सीमा में इलाज सटीक रुप से किया जा सकता था वह समय सीमा मित्तल अस्पताल अपने यहां पर भर्ती करके समाप्त कर चुका है। आखिर मित्तल अस्पताल के इस रवैया की वजह से डॉक्टर अग्रवाल की मामी की मृत्यु हो गई । *जिस बात से व्यथित होकर डॉक्टर अग्रवाल ने अपने ब्लॉग में लिखा कि मुझे गर्व है कि मैं एक डॉक्टर हूं ,परंतु डॉक्टर प्रोफेशन में कुछ डॉक्टर विनोद शर्मा जैसे लोग और मित्तल अस्पताल जैसे व्यवसायिक लोग मेडिकल प्रोफेशन को बदनाम कर रहे हैं। अग्रवाल ने यह भी लिखा कि मेडिकल प्रोफेशन से हो रहे इस खिलवाड़ को देख कर बतौर डॉक्टर मैं बहुत दुखी हूँ।अस्पताल को पैसे कमाने चाहिए लेकिन लोगों का इलाज करके न कि किसी के जीवन से खिलवाड़ करके।* 

 मुद्दे की बात यह है कि अजमेर में करोड़ों रुपया विभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल को मिलता है जहां पर न्यूरो विभाग में पूरी सुविधाएं और उपकरण उपलब्ध नहीं है जिसके अभाव में लोगों को मित्तल हॉस्पिटल जैसे जिंदा नर्क की तरफ मजबूर करके धकेला जा रहा है । समस्या दरअसल यह है कि जेएलएन अस्पताल में डॉक्टर तो उपलब्ध है परंतु तकनीकी उपकरण और सुविधाओं का अभाव है वही मित्तल हॉस्पिटल में तकनीकी उपकरण तो मौजूद है परंतु डॉक्टर सिर्फ नाम के लिए संलग्न है । *मरीजों को लुभाने हेतु तस्वीर छाप के मित्तल अस्पताल केवल मरीज भर्ती कर लेता है और चिकित्सा सुविधा समय पर मुहैया नहीं करवा पाता है* । यह दुर्भाग्य है अजमेर जैसी स्मार्ट सिटी के लिए कि कहने को करोड़ों रुपया अजमेर को स्मार्ट सिटी के नाम पर मिल रहा है परंतु उसी अजमेर में सुपर स्मार्ट *स्वास्थ्य विभाग इस तरह की अनियमितताएं देख कर अपनी आंखें मूंद कर बैठा है* । यह नजारा केवल अजमेर में ही नहीं अपितु पूरे राजस्थान में है क्योंकि *राजस्थान सरकार हॉस्पिटल लाइसेंस प्रणाली का अनुसरण नहीं करती है । जबकि अन्य राज्यों में इस तरह का निजी अस्पताल खोलने हेतु सीएमएचओ ऑफिस से लाइसेंस प्रक्रिया हेतु गुजरना पड़ता है। जिससे इन निजी अस्पतालों पर थोड़ी बहुत लगाम कसी जा सकती है* । परंतु अजमेर तो अजमेर है साहब सालों से ही ऐसा है !!!

 *फिर भी मैं डॉक्टर दीपक अग्रवाल की हिम्मत की दाद देता हूं कि उन्होंने एक डॉक्टर होते हुए भी  इस बात का खुलासा करने की हिम्मत की जिसके लिए डॉ अग्रवाल बधाई के पात्र हैं* ।


जय श्री कृष्णा


नरेश राघानी

प्रधान संपादक

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