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January 15, 2021
ख़तरे में हैं घर के बच्चे,
अब तो दुनिया भर के बच्चे।
मेरी नज़रें देख रही हैं,
मंज़र में मंज़र के बच्चे।
बिन रोए ही दफ़्न हो गए,
नीवों में पत्थर के बच्चे।
अहसासात की तरह हैं मेरे,
जंगल में तीतर के बच्चे।
संस्कार से पता चला ये,
बादल हैं सागर के बच्चे।
ज़ुबाँ पे अपनी मत पालो तुम,
ज़हरीले नश्तर के बच्चे।
फ़ितरत से शैतान बहुत ही,
होते हैं अम्बर के बच्चे।
जाने क्यों रोने लगते हैं,
अक्सर ग़लती कर के बच्चे।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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