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October 23, 2020
52 शक्ति पीठो में
27वीं शक्ति पीठ है पुष्कर की मां चामुण्डा
27वीं शक्ति पीठ पुष्कर की मां चामुण्डा, माता रानी के कंगन गिरने के बाद बनी मणिक वैदीक पीठ
धार्मिक नगरी पुष्कर और अजमेर की सीमा नागपहाड़ का अपने आप में एक विशिष्ठ ऐतिहासिक महत्व है। पद्मपुराण में नागपहाड को पुरूहोता पर्वत के नाम से जाना जाता है। यह पर्वत ना केवल एक भौगोलिक बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से अपने आप में एक अनूठी रचना है। यहा पर ना केवल ऋषि अगस्त, विश्वामित्र मुनि सहित अनेक साधु संतो ने साधना की है। बल्कि इस पर्वत का चप्पा चप्पा पावन माना जाता है। यही पर पांच पांडवो ने अपना अज्ञात वास बिताया था। इसी पर्वत पर मां चामुण्डा विराजमान है, मां चामुण्डा के ऐतिहासिक महत्व और आस्था पर पेश है यह विशेष रिपोर्ट।
.... देवी पुराण के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। माता सती को नारद से यह बात पता चली की उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है। उन्होंने शिवजी के मना करने पर भी जि़द की और अपने पिता के यहां यज्ञ में सम्मिलत होने के लिए चली गई। वहां जाने पर जब उन्हें पता चला कि यज्ञ में शिवजी को छोड़कर सारे देवताओं को आमंत्रित किया गया है। तब उन्होंने अपने पिता से शिवजी को न बुलाने का कारण पूछा तो दक्ष ने शिवजी के बारे में अपमानजनक बातें कही। वे बातें माता सती से सहन नहीं हुई और उन्होंने अग्रिकुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहूति दे दी। जब ये समाचार शिवजी तक पहुंचा तो वे बहुत क्रोधित हुए उनका तीसरा नेत्र खुल गया। वीरभद्र ने उनके कहने पर दक्ष का सिर काट दिया। उसके बाद शिव सती के वियोग में संपूर्ण भू-मंडल में उनका शव लेकर भ्रमण करने लगे। शिव को इस वियोग से निकालने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती माता के देह को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया। पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण किया गया। इन्ही 52 शक्ति पीठो में से एक पीठ मां चामुण्ड़ा यानि मणिंक वैदिक पीठ है। यहां पर माता रानी की कलाईयो से दोनो कंगन गिरे तभी से इसे मणिक वैदिक पीठ के नाम से जाना जाता है। वही उपनिषद पुराणिक ग्रंथो के अनुसार जब देवता और मानव राक्षसो के आतंक से खोफ में थे तभी सभी ने भगवान शिव से इस संकट की घडी में सहायता मांगी। चुंकि अधिकांश राक्षस जाति भगवान शिव की साधक थी। इसलिए भगवान ने उनके संघार की जिम्मेदारी मां गौरी को सोंपी। मां गौरी ने अपनी समस्त शक्तियो को एकृत्रित करके ना केवल राक्षसो का नाश किया बल्कि लोगो में मां शक्ति की भक्ति के प्रति आस्था भी जताई। राक्षसों के संघार के बाद देवताओ ने माता अम्बे से अपना विकराल रूप छोडने की मिन्नते की। इसके बाद माता के अंग अलग अलग कट कर गिरने लगे। यह अंग 52 स्थानो पर गिरे जिन्हे 52 शक्ति पीठ के नाम से जाना जाता है। बहरहाल इस मणिक वैदिक पीठ के इतिहास के बारे में बहुत कम लोंग जानते है। लेकिन समय के साथ भक्तो की शक्ति और भक्ति की बदोलत इस स्थान की कायाकल्प होने लगी है। चारो नवरात्रो मे यहां देश के अनेक हिस्सो से आस्था का सेलाब उमडता है। हालांकि सरकार की ओर से इस ऐतिहासिक स्थान के विकास के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए है। फिर भी भक्तो की कठिन मेहनत की बदोलत यह स्थान आर्कषक और रमणीक होने लगा है।....
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