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July 20, 2019
*चिन्मयी जी का तकमीना*
*सुरेन्द्र चतुर्वेदी*
चिन्मयी गोपाल ।नगर निगम की आयुक्त।आए रोज़ होने वाली मचा मच की प्रमुख किरदार ।मेयर धर्मेंद्र गहलोत की कथित सबसे प्रिय अधिकारी। पंगे बाजी करने वालों को ठिकाने लगाने को आतुर ।जैसे शहर में एक ही मर्द वो भी औरत।
फ़िल्म शोले का एक संवाद मुझे आज तक याद है ।। "अब आएगा मज़ा ...बहुत समय बाद गब्बर सिंह को कोई मिला है जो उस से आंख मिलाकर इतनी बात कर सके.".... यह डायलॉग फिल्म में धर्मेंद्र के लिए बोला गया था मगर नगर निगम में यह डायलॉग धर्मेंद्र जी अपनी आयुक्त चिन्मयी गोपाल के लिए बोलते नज़र आ रहे हैं ।आए रोज़ दोनों के बीच मच मचा मच चलती ही रहती है।
धर्मेंद्र गहलोत मेरे बेहद क़रीबी दोस्त हैं।यार बाज़ तबियत वाले इंसान।अफ़सोस बस ये कि इन दिनों उनकी पार्टी के अजमेर में दिनमान ठीक नहीं।भाजपा पार्टी का फिलहाल राज नहीं । जब भाजपा राज्य में सत्तारूढ़ थी तब गहलोत जी की तूंती तारागढ़ पर चढ़कर बोलती थी ।तब वे और उनके देव.. अधिकारियों को नानी याद दिलाते थे .देवनानी जी जैसे इष्ट देवता गहलोत के साथ थे। उन्हें जिसकी तरीके से मेयर बनाया गया सब जानते हैं। बेचारा लाला बना सब कुछ बना मगर मेयर नहीं बना ।एक वक्त था जब गहलोतबबेकाबू गजराज थे ।जिस तरफ़ चाहते थे शिकार को निकल जाते थे... मगर अब स्पीड ब्रेकर चेन्नई गोपाल उनके सामने हैं। यानी फिल्म शोले का वही डायलॉग ।
तू डाल डाल मैं पात पात ।मैडम जी ! आप जिस तरह भाजपाई नेताओं की रफ़्तार में ब्रेक लगा रही हैं वह मेरी दृष्टि में अतिरिक्त पावर फुल है। ची की आवाज आती है और व्हील जाम हो जाते हैं। आपके लिए फैसले कई लोगों का स्वाद खराब कर देते हैं ।
आज ही मैंने अख़बार में पढ़ा आप पार्षदों के विकास कार्यों का तक़मीना तैयार करवा रही हैं।पार्षदों ने अपने वार्ड में विकास कार्य के जो प्रस्ताव आपको दिए हैं आप हर वार्ड में जाकर उन कार्यों की समीक्षा कर रही हैं ।जो जरूरी लगेंगे उनके लिए बजट पारित करेंगी।अब सोचिए ताक़मीने की क्या ज़रूरत है। क्या जरूरत है पार्षदों के पेट पर हमला करने की।तक़मीना क्या होता है मैं नहीं जानता। मगर इस शब्द में कमीना शब्द भी जुड़ा है।इससे लगता है कि कमीनापन नापने वाली कोई चीज़ होती होगी तक़मीना। मैडम जी !यह तकमीना तो आप तैयार करती रहें मगर मेरा निजी अनुभव है कि कई बार पिल्ले की पूंछ पर पैर लगने पर वो काट भी लेते हैं। अजमेर के पिल्लों से शायद आप भी वाकिफ़ नहीं।सोच समझ कर क़दम बढ़ाएं।
मैडम जी जरा अजमेर के पार्षदों की प्रवर्ती भी ग़ौर से देखें।उनकी आदतों के भी तक़मीना बनाएं।उदाहरण के लिए पार्षद चन्द्रेश सांखला और पार्षद वीरेंद्र वालिया जी को ही लें।दोनों का एक सूत्री कार्यक्रम एक दूसरे की बज़्ज़ी लेना है ।दोनों को एक दूसरे की थाली में घी ज़्यादा लगता है।मेरी साड़ी भला उस से ज़्यादा सफ़ेद क्यों नहीं।मैडम जी !इन दोनों पार्षदों का समझौता करवाइए वरना ये बज़्ज़ी लेते हुए ही लहूलुहान हो जाएंगे।
में दावे के साथ कह सकता हूँ कि अजमेर के सारे पार्षद शरीफ़ और ईमानदार हैं। इन सबको साथ लेकर चलिए ।आप ने इन्हें साथ नहीं रखा तो हो सकता है कि अभी आप इनका तक़मीना बना रही हैं आने वाले समय में यह पार्षद आपका बना दें। ये अजमेर शहर है ।यहाँअदिति मेहता जैसी अधिकारी आती रही हैं।ज़्यादा झांसी रानी न बने ।ये झांसे बाजों का शहर है। यहाँ *आह भी भरने लगेगें भेड़िए, वाह भी करने लगेंगे भेड़िए।
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