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January 9, 2021
रंग से मैं आसमानी हो गया हूँ,
जाने किस दरिया का पानी हो गया हूँ।
क्यों मुझे अल्फ़ाज़ झूंठे लग रहे हैं,
क्यों मैं इतना बेज़ुबानी हो गया हूँ।
ख़्वाब मुझको ढूँढ़ते रहते हैं दिन भर,
क्या मैं उनकी तरज़ुमानी हो गया हूँ।
हर तरफ़ सांपों के बिल क्यों दिख रहे हैं,
मैं भी क्या अब रातरानी हो गया हूँ।
कल तलक तो लिख रहा था वक़्त को मैं,
वक़्त की अब ख़ुद कहानी हो गया हूँ।
लग रहा है अब पसीना भी महकने,
यानी अब मैं जाफ़रानी हो गया हूँ।
घर मेरे तुम अब तो मुझको भूल जाओ,
याद मैं कितनी पुरानी हो गया हूँ।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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