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August 15, 2020
तराना भी ज़रूरी था,फ़साना भी ज़रूरी था,
मुझे ख़ुद की ज़रूरत थी,ज़माना भी ज़रूरी था।
मैं अंधों की इबारत था सुनाना था मुझे पढ़ कर,
मुझे लिखना ज़रूरी था,मिटाना भी ज़रूरी था।
सफ़र मेरा अंधेरी रात से था सुब्ह होने तक
जलाना भी ज़रूरी था,बुझाना भी ज़रूरी था।
मुक़दर था जुड़ा मेरा किसी बूढ़े की लाठी से,
मुझे ख़ामोश रस्तों में बजाना भी ज़रूरी था।
मुझे क़ुर्बान करना था ख़ुदा की राह में उनको,
तो इन साँसों को मक़तल तक बचाना भी ज़रूरी था
रिहाई उसकी तय थी सिर्फ मेरे ही बयानों पर,
मेरा चेहरा अदालत को दिखाना भी ज़रूरी था।
मुन्नकिद था वहीं पर आपका जलसा कोई शायद,
जनाज़ा इसलिए मेरा उठाना भी ज़रूरी था।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी —
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